ऑनलाइन शिक्षा कितनी उपयोगी

By: Jun 1st, 2020 12:05 am

प्रियंवदा

लेखिका सुंदरनगर से हैं

हालांकि सरकार ने तो दूरदर्शन पर भी कार्यक्रम चलाकर बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया जो सराहनीय है। परंतु यह कितनों को लाभान्वित करने वाला है, यह भी विचारणीय होना चाहिए। जिन लोगों के पास मोबाइल नहीं हैं, टेलीविजन या अन्य प्रकार की सुविधाएं नहीं हैं, वे छात्र कुंठित हैं और जिनके पास हैं, वे पूर्ण लाभ उठाने से वंचित हैं। वास्तव में शिक्षाविदों को कोई भी योजना चलाने से पहले उसके फायदे तो देखने चाहिए, परंतु उससे होने वाले नुकसान का आकलन पहले अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए। शिक्षण संस्थान कब खुल पाएंगे, यह अनिश्चित है। ऐसी स्थिति सरकार के लिए परीक्षा का समय है…

कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के मद्देनजर सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को कायम रखने के लिए ऑनलाइन कक्षाएं चला दी हैं क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को अपनाना ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है। इस विकट परिस्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने जूम ऐप, गूगल क्लासरूम तथा और भी विभिन्न प्रकार के यूट्यूब, व्हाट्सऐप आदि को ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम के लिए वैकल्पिक रूप से अपना लिया है। इसी संदर्भ में यदि हम हिमाचल प्रदेश को ही लें तो यहां भी सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कटिबद्ध होकर अन्य राज्यों की तर्ज पर प्रयास करने का भरसक प्रयास कर रही है। वहीं शिक्षक भी अपनी पूर्ण क्षमता और दक्षता का परिचय देते हुए ऑनलाइन पढ़ाई करवाने में जुटे हैं। परंतु निःसंकोच हमें कहना होगा कि यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे जैसा ही है। ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें यहां ऑनलाइन शिक्षण के फायदे और नुकसान दोनों पर ही ध्यान केंद्रित करना होगा।  ‘हर घर पाठशाला’ योजना के तहत हिमाचल सरकार ने सभी अध्यापकों और छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ने का सराहनीय प्रयास किया है। यह प्रयास कितने बच्चों को और किस प्रकार लाभान्वित कर पाया, यह विचारणीय है। उदाहरण के तौर पर किसी कक्षा में कुल 70 विद्यार्थी हैं जिनमें से 30 विद्यार्थी व्हाट्सऐप पर जुड़ पाए, परंतु केवल मात्र 10 ही विद्यार्थी लाभान्वित हो सके।

कारण हैं नेटवर्क समस्या, नेट पैक न होना, एक ही फोन से घर के बहुत से बच्चों का पढ़ाई में संलग्न होना आदि। इसके अतिरिक्त कई बच्चे ऐसे भी पाए गए जो इस माध्यम का दुरुपयोग करते हैं जैसे अध्यापकों के साथ व्हाट्सऐप द्वारा अनावश्यक बातें करना, मना करने पर अभद्र भाषा का प्रयोग जैसी स्थितियां भी देखने को मिलीं। बात यहीं तक सीमित रहती तो गनीमत थी, परंतु जिन कारणों को ध्यान में रखकर जिस फोन को स्कूलों में प्रतिबंधित किया गया था, वही जब शिक्षा का आधार बनकर सामने आया तो परिणाम यह भी देखने को मिले कि कम उम्र के बच्चों का शारीरिक और मानसिक पतन हुआ है। नैतिकता में भारी गिरावट आई है। छात्र स्कूलों में छह घंटे का समय बिताते थे और बच्चे अध्यापकों के निरीक्षण में अनुशासन में रहने के लिए प्रतिबद्ध थे। घरों में रहकर कितने अभिभावक अपने बच्चों पर नियंत्रण रख पाते हैं। यह स्थिति ऑनलाइन शिक्षा ने उजागर कर दी है। इतना ही नहीं, मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग ने बच्चों के स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव डालना शुरू कर दिया है जैसे आंखें खराब होना, पाचन संबंधी समस्याएं, तनाव, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिससे निजात पाना भविष्य में आसान नहीं होगा। शिक्षकों के द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई करवाते हुए उनके अभिभावकों व स्वयं छात्रों से मिली जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से एक फीसदी भी बच्चे लाभान्वित नहीं हो पाए हैं।

हालांकि सरकार ने तो दूरदर्शन पर भी कार्यक्रम चलाकर बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया जो सराहनीय है। परंतु यह कितनों को लाभान्वित करने वाला है, यह भी विचारणीय होना चाहिए। जिन लोगों के पास मोबाइल नहीं हैं, टेलीविजन या अन्य प्रकार की सुविधाएं नहीं हैं, वे छात्र कुंठित हैं और जिनके पास हैं, वे पूर्ण लाभ उठाने से वंचित हैं। वास्तव में शिक्षाविदों को कोई भी योजना चलाने से पहले उसके फायदे तो देखने चाहिए, परंतु उससे होने वाले नुकसान का आकलन पहले अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए। 23 मार्च से बंद शिक्षण संस्थान पहले 31 मई तक बंद किए गए और आगे भी कब तक बंद रहेंगे, यह सुनिश्चित नहीं है। ऐसी अनिश्चितता की स्थिति सरकार और शिक्षाविदों के लिए परीक्षा का समय है क्योंकि यह प्रश्न देश की भावी पीढ़ी को बचाने का है। सरकार को सख्ती के साथ प्रदेश हित में निर्णय लेने चाहिए व छात्र हितों के लिए आवश्यक रूप से सोचना चाहिए। सरकार ने पैरा, पैट, अनुबंध, एसएमसी आदि कई वर्गों के शिक्षकों की सेवाओं पर मंडरा रहे संकट को हल करके उन्हें तत्काल बहाल कर अपने तारणहार होने का परिचय दिया, साथ ही छात्रों को भी तुरंत अगली कक्षाओं में प्रमोट करके अपनी करुणा दिखाई। परंतु ऐसे शिक्षक जिन्हें योग्यता होते हुए भी उनका उचित पदनाम नहीं दिया गया या ऐसे छात्र जो योग्य होते हुए भी गधे-घोड़े बराबर कर दिए गए, क्या वे सरकार से न्याय की गुहार नहीं करेंगे? बहरहाल सरकार को जल्द ही शिक्षण संस्थाओं को खोलने की व्यवस्थाएं बनाने की योजना पर कार्य करना चाहिए।


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