न टमक की थाप, न छिंज सिर्फ पूर्जा-अर्चना से बाबा को निमंत्रण, आज अदा होगी झंडा रस्म
कांगड़ा –न टमक की थाप थी और न छिंज, लेकिन सोमवार को बाबा वीरभद्र को निमंत्रण जरूर हुआ मंगलवार को झंडे की रस्म अदायगी भी जरूर होगी । वैसे बाबा वीरभद्र मेला में हर साल खूब ढोल नगाड़े बजते हैं जश्न भी होता है और छिंज का लुत्फ भी लोग उठाते हैं, लेकिन इस मर्तबा कोरोना महामारी के संकट के चलते हुए लॉकडाउन ने सब खेल बिगाड़ दिया है। अलबत्ता यह है बाबा वीरभद्र मंदिर का स्थल ऐसा है, जहां 1905 में आए विनाशकारी भूकंप की भविष्यवाणी भी इसी बाबा के धुनें पर हुई थी । ऐसा इतिहासकार ओसी शर्मा बताते हैं। इस पावन मंदिर के प्रति स्थानीय लोगों व राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों से आए हुए लोगों की गहरी श्रद्धा और आस्था है । वीरभद्र का मेला भी इसी श्रद्धा और आस्था की वजह से मनाया जाता है । गेहूं की फसल कटाई के बाद यह मेला पहली से चार जून तक आयोजित होता है । पहले यहां लोग बाबा के दर गेहूं भी चढ़ाते थे। अभी भी कुछ लोग ऐसी परंपराओं का निर्वहन करते हैं । पहले यह मेला छोटे स्तर पर मनाया जाता था, लेकिन अब यह विशाल हो गया है। बड़े-बड़े पहलवान दूसरे राज्यों के यहां आकर अपनी पहलवानी के जौहर दिखाते हैं । खाने-पीने की वस्तुओं के स्टाल भी यहां लगाए जाते हैं । मिट्टी के बरतन भी लोग यहां बेचते हैं, लेकिन इस मर्तबा सब कुछ बंद है । मंगलवार को यहां ध्वजारोहण होगा एक ध्वज बाबा के मंदिर पर चढ़ाया जाएगा दूसरा अखाड़े वाले स्थल पर लगेगा, लेकिन छिंज नहीं होगी, जो झंडा अखाड़ा वाले स्थल पर लगेगा उसे चार तारीख को हटा दिया जाएगा। मेला कमेटी के प्रधान अशोक कुमार कहते हैं कि सोमवार को बाबा वीरभद्र को निमंत्रण दिया गया और प्रसाद चढ़ाया गया। बाकायदा पानी का लौटा वहां से भरकर पुजारियों ने दिया उसका छिड़काव हर साल की भांति इस बार भी पीपल के नीचे किया गया । मेला कमेटी के प्रधान राज कुमार जसवाल ने बताया कि लॉकडाउन के चलते मंदिर के कपाट बंद हैं। इसलिए केवल पदाधिकारी ही यहां इकट्ठा हुए हैं और मंदिर के पुजारी से पूजा-अर्चना करवा कर रस्म अदायगी की की गई है । वीरभद्र मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पंडित वेद प्रकाश शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से नियमों के तहत मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद किया गया है और बाकायदा यहां नोटिस लगाया गया है कि भक्तों के प्रवेश पर पाबंदी है। अगर कोई वहां प्रवेश करता है, तो उसकी जिम्मेदारी पुजारियों पर होगी। मेला की रस्मों को निभाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए मंदिर के पुजारी केवल कुछ लोगों की बाहर से पूजा करवाएंगे मंदिर के भीतर जाने की इजाजत नहीं होगी ।