रोजगार के रूप में कृषि बेहतर विकल्प, जीवन धीमान, लेखक नालागढ़ से हैं

By: Jun 29th, 2020 12:05 am

jeevan_dhiman

कोरोना का कहर लगातार बढ़ता ही जा रहा है। लोग घरों में कैद हैं। इस संकट में घर से काम पर निकलना किसी खतरे से खाली नहीं है। कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ती जा रही है। सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में कहा कि कोविड-19 संकट के चलते देश में बेरोजगारी की दर तीन मई तक बढ़कर 27.11 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर 23.52 प्रतिशत दर्ज की गई है, जो कि मार्च में 8.74 प्रतिशत थी। कोरोना के कारण बेरोजगार लोगों की संख्या और बढ़ सकती है। एक रिपोर्ट में कहा गया कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। इनमें फेरीवाले, सड़क किनारे दुकानें लगाने वाले विक्रेता, निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिक और रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल हैं। राज्यवार देखा जाए तो अप्रैल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर पुड्डूचेरी में 75.8 फीसदी रही। इसके बाद तमिलनाडु में 49.8, झारखंड में 47.1, बिहार में 46.6, हरियाणा में 43.2, कर्नाटक में 29.8, उत्तर प्रदेश में 21.5 और महाराष्ट्र में 20.9 फीसदी दर्ज हुई है। पर्वतीय राज्यों में बेरोजगारी दर बाकी राज्यों की तुलना में कम रही। उत्तराखंड में बेरोजगारी की दर 6.5, सिक्किम में 2.3 और हिमाचल प्रदेश में 2.2 फीसदी रही है। आजकल के दौर में युवा खेतीबाड़ी नहीं करना चाहते हैं। हर कोई गांव से शहर की तरफ  भागना चाहता है। कोरोना ने युवा पीढ़ी को काफी कुछ सिखा दिया। कृषि हिमाचल प्रदेश का प्रमुख व्यवसाय है। यह राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह 69 प्रतिशत कामकाजी आबादी को सीधा रोजगार मुहैया कराती है। कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र से होने वाली आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पाद का 22.1 प्रतिशत है। कुल भौगोलिक क्षेत्र 55673 लाख हेक्टेयर में से 9.79 लाख हेक्टेयर भूमि के स्वामी 9.14 लाख किसान हैं। मंझोले और छोटे किसानो के पास कुल भूमि का 86.4 प्रतिशत भाग है। राज्य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है। लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा-सिंचित है और किसान इंद्र देवता पर निर्भर रहते हैं। हिमाचल प्रदेश में कुल फसल उत्पादन का 91 प्रतिशत खाद्यान्न है। इनमें से 85 प्रतिशत धान्य फसलें हैं तथा पांच या सात प्रतिशत दलहन फसले हैं। कुल उत्पादन का सात प्रतिशत सब्जियां व मसाले हैं तथा मात्र तीन प्रतिशत भाग में अखाद्य फसलों का उत्पादन होता है। इस प्रदेश में गेहूं, मक्का, जौ व धान खाद्यान्न फसलें प्रमुख रूप से उत्पादित होती हैं। प्रदेश में बोए जाने वाले खाद्यान्नों में गेहूं का प्रथम स्थान है। गेहूं लगभग सारे हिमाचल में बोई जाती है। हिमाचल में जौ के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत लाहुल-स्पीति तथा किन्नौर जिला में उत्पादित होता है। कुल कृषि उत्पादन में जौ की भागीदारी पांच प्रतिशत है। प्रदेश के उच्च क्षेत्रों में प्रमुख रूप से जौ की खेती होती है। हिमाचल प्रदेश में गन्ने का उत्पादन ऊना, सोलन, कांगड़ा व सिरमौर जिलों में किया जाता है। थोड़ी मात्रा में अन्य जिलों में भी इसका उत्पादन किया जाता है। गुड़ या शक्कर बनाने के अतिरिक्त अभी तक गन्ने का प्रदेश में कोई व्यवसायीकरण नहीं हुआ है। गन्ने के उत्पादन के लिए मिट्टी का उपयुक्त मान 7.00 होता है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले बजट में 28 नई योजनाएं शुरू की थीं। इनमें हर वर्ग और समुदाय का उत्थान सुनिश्चित करने का प्रावधान किया गया है। इन योजनाओं को आरंभ करने के साथ बजट का भी अलग से प्रावधान रखा गया है। बजट में सामुदायिक भवन बनाने से लेकर कृषि और बागबानी के सुदृढ़ीकरण के लिए छह नई योजनाओं को शुरू करने की घोषणा की गई है। ग्रामीण लोगों के विकास के लिए दो नई योजनाओं को शामिल किया गया है। स्वावलंबन व आत्मनिर्भरता की डगर और भी आसान हो जाती है जब कुछ कर दिखाने का जज्बा मन में पैदा होता है। बहुत से लोगों ने सेवानिवृत्त होने के बाद खेतीबाड़ी को अपने परिवार की रोजी-रोटी का साधन बनाया। सब्जी उत्पादन से तकदीर और आर्थिक तस्वीर बदली जा सकती है। विभाग की ओर से पानी के टैंक के निर्माण के लिए भी सबसिडी दी जाती है और केंचुआ खाद भी उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अतिरिक्त हाई टैंक ग्रीन हाउस के निर्माण के लिए भी सबसिडी उपलब्ध करवाई जाती है। कुल मिलाकर कहें तो प्रदेश में कृषि को रोजगार के रूप में अपनाने की व्यापक संभावनाएं हैं।

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-संपादक


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