शाबाश ग्रामीण विकास

By: Jun 26th, 2020 12:05 am

हिमाचल में ग्रामीण विकास कार्यों की निरंतरता को प्रमाणित करते राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार गौरवान्वित करते हैं। पुरस्कारों की शृंखला में प्रदेश की करवटें और सतत प्रगति का बोध इसलिए भी होता है, क्योंकि ग्रामीण विकास के मायनों में यह प्रदेश मॉडल बनता है। उदाहरण के लिए दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण योजना से लाभान्वित हमीरपुर जिला परिषद ने अपनी समस्त 229 पंचायतों में विकास के हर मजमून को सफल किया, तो धर्मशाला विकास खंड ने मनरेगा के तहत सारे काम निपटा कर उत्तर भारत में नाम कमाया। इसी फेहरिस्त में भोरंज ब्लॉक की पंचायत उखली, रोहड़ू की कूई और पच्छाद की लाना भल्टा को अलग-अलग विषयों में सम्मान हासिल हुआ है। इसके अलावा कांगड़ा, शिमला व सिरमौर की कुछ पंचायतों को पुरस्कारों के एवज में धनराशि का आबंटन होगा। ग्रामीण स्तर पर मूल्यांकन की परिपाटी से तैयार हो रही प्रतिस्पर्धा तथा युवा जनप्रतिनिधियों का जोश रेखांकित होता है। इतना ही नहीं ग्रामीण बदलाव के मायनों में महिला सशक्तिकरण व उसकी भागीदारी का अवलोकन भी होता है। राष्ट्रीय स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी के बेहतर व सक्ष्म इस्तेमाल के लिए ई पंचायत-2020 हासिल करके हिमाचल अपनी अलग श्रेणी रेखांकित करता है। यह पुरस्कार केवल पंचायती राज का सशक्त पहलू ही नहीं, बल्कि प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तृत विवरण सरीखा है। प्रदेश की 3226 पंचायतों तक पहुंची इंटरनेट सेवा का कमाल है और इसके माध्यम से अनेक ऑनलाइन सेवाओं का संचालन सोने पे सुहागे जैसा है। पुरस्कारों की उपर्युक्त खेप से राज्य की ग्रामीण तासीर में प्रगतिशीलता, जागरूकता व सतत विकास की मांग की आपूर्ति का दृश्य उभरता है। इसे हम दो तरह से परख सकते हैं। इसे पंचायती राज की समीक्षा में देखें, तो तमाम जनप्रतिनिधि भी ऐसे पुरस्कारों के चितेरे हैं, क्योंकि हर विकास के पीछे विजन दिखाई देता है। दूसरे विभागीय तौर पर ग्रामीण विकास मंत्रालय की कारगुजारी में संबंधित मंत्री वीरेंद्र सिंह कंवर की मेहनत, नेतृत्व व क्षमता का इससे बेहतर और प्रमाणिक आकलन नहीं हो सकता। इससे पूर्व पंचवटी परियोजना के मार्फत मनरेगा को जिस तरह की आकृति में बैठाया जा रहा है, उसकी प्रशंसा हुई है। अतीत में ग्रामीण विकास के तयशुदा मुहावरे केवल सीमित अर्थ में चिन्हित होते थे, जबकि अब हिमाचल जैसे राज्य का वास्तविक मुआयना गांव की हसरत में होता है। विकास की हर संभावना में गांव की बतौर एक इकाई उम्मीद परवान चढ़े, तो राज्य का नक्शा बदल जाएगा। जाहिर है ग्रामीण विकास मंत्री की भूमिका में योजनाओं-परियोजनाओं का वर्तमान शृंगार, उत्प्रेरक की भूमिका में पसंद किया जाएगा। हम एक विभाग के नेतृत्व में ग्रामीण आस्था देख रहे हैं, तो सवाल कई अन्य विभागों के दायरे को बड़ा करते हैं। उदाहरण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपने लक्ष्यों और योजनाओं-परियोजनाओं के कार्यान्वयन में जिस शिद्दत से सूरत बदली है, क्या शहरी विकास मंत्रालय इस दिशा में निकम्मा साबित हुआ। कम से ऐसी कोई योजना-परियोजना सामने नहीं आती, जो वर्तमान सरकार के कार्यकाल में शहरी विकास के मायने बदल दे। कोई नई शहरी बस्ती या उपग्रह शहर की परिकल्पना दिखाई नहीं दे रही है। न नए शहरी निकायों की स्थापना और न ही इनके सीमा विस्तार का कोई खाका पुष्ट हुआ है। कुछ इसी तरह कृषि व बागबानी विभाग भी अपने लक्ष्यों में नई ऊर्जा नहीं भर सके। कहना न होगा कि जमीन से जुड़े विभागों  का सियासी नेतृत्व जब तक कर्मठ न होगा, विकास की तासीर नहीं बदलेगी। बेशक ग्रामीण विकास विभाग की सफलताओं का सेहरा वर्तमान सरकार पहन सकती है, लेकिन इस तराजू में जो अन्य विभाग असफल हैं उनके कान खींचने पड़ेंगे।


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