स्वामी जी का स्वागत

By: Jun 1st, 2020 10:55 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

यहां स्वामी जी ने उपस्थित जनता को कहा कि यह यत्र जीवः तत्रः शिव यह सच्ची शिव पूजा है। उस दिन स्वामी जी के आने के उपलक्ष्य में सैकड़ों दरिद्र नारायणों को भोजन कराया गया। विदेश से लौटकर भारतभूमि के जिस स्थान पर स्वामी जी के प्रथम चरण पड़े थे, उस स्थान पर रामनद नरेश ने चालीस फुट ऊंचा एक समृति स्तंभ बनवा दिया। इसके बाद स्वामी जी ने रामनद की तरफ रवाना होने की सोची। राजा महोदय की इच्छा से उनके प्रियजनों ने स्वागत अभिनंदन के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी। जैसे ही स्वामी जी वोट से नीचे उतरे , राजभवन में तोपें दाब कर सलामी दी गई। रथ पर बैठकर स्वामी जी राजमहल की ओर बढ़ रहे थे। राजा और राजपरिवार के अन्य सदस्य रथ के पीछे-पीछे चल रहे थे। विविध वाद्य वृंद के साथ यह शोभा यात्रा सभा स्थल पर आ पहुंची। वहां श्रद्धालुओं की भीड़ पहले से ही इंतजार कर रही थी। जय-जयकार के साथ पूरा वातावरण गूंज रहा था। स्वागत सभा का आरंभ राजा जी के भाषण से हुआ। राजा के भाई दिनकर वर्मा सेतुपति ने अभिनंदन पत्र पढ़कर सुनाया। बीच में स्वामी जी का भाषण हुआ। अन्य नगरों से होते हुए स्वामी जी कुंभकोणम पहुंचे। दो बार उनका अभिनंदन हुआ। स्वामी जी जानते थे कि मद्रास में उनका व्यस्त कार्यक्रम रहेगा और विश्राम के लिए अवकाश नहीं मिलेगा। यह सोचकर कुंभकोणम में तीन दिन पूरी तरह आराम किया। इसके बाद स्वामी विवेकानंद मद्रास की ओर रवाना हो गए। यह खबर आंधी तूफान की तरह पूरे शहर में फैल गई। स्वागत की तैयारियां बड़े जोर-शोर से होने लगीं। न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम अय्यर की अध्यक्षता में स्वागत समारोह की तैयारियां होने लगी। ध्वजों, तोरण, वंदनवार और पुष्पों से सारा नगर सजा हुआ था। 6 फरवरी को स्वामी जी वहां पहुंचने वाले थे। हजारों की तादाद में लोग रेलवे स्टेशन की ओर चल पडे़। गाड़ी के पहुंचते ही जय-जयकारों के नारे शुरू हो गए। स्वामी जी जैसे ही गाड़ी से नीचे उतरे, फूलों की मालाएं सबने पहनानी आरंभ कर दीं। फिर वे स्टेशन से बाहर आकर गाड़ी में बैठे। सुब्रह्मण्यम अय्यर स्वामी गिरजानंद, स्वामी शिवानंद, स्वामी विवेकानंद जी के साथ ही गाड़ी में बैठे थे। फिर गाड़ी स्वामी जी को लेकर निश्चित स्थान कैसाल कर्नान नामक स्थान की ओर चल दी। थोड़ी दूर चलने पर उत्साही युवकों ने घोड़ों को गाड़ी से अलग कर दिया और खुद गाड़ी को खींचकर आगे की ओर ले जाने लगे। पूरे रास्ते दोनों तरफ से फूलों की वर्षा हो रही थी, सभी लोग नारियल अन्य उपहार भेंट कर रहे थे। कई स्थानों पर औरतें दीपक लेकर आरती उतारने खड़ी थीं। अगले दिन रविवार को स्वागत सभा में अभिनंदन पत्र भेंट किया गया। खेतरी के महाराज द्वारा प्रेषित अभिनंदन पत्र समर्पित होने के बाद अनेक सभा समिति संगठनों की तरफ से विविध भाषाओं में प्रस्तुत कोई बीस अभिनंदन पत्र पढ़े गए। सभा भवन लोगों से खचाखच भरा हुआ था। इसलिए बहुत से लोगों को बाहर ही खड़ा रहना पड़ा। इनके कहने पर स्वामी जी बाहर आकर एक गाड़ी पर खड़े हो गए ताकि सभी लोग दर्शन कर सकें।


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