बहन से मिलकर अपने मूल स्थान लौटीं मां शूलिनी

By: Jun 22nd, 2020 12:21 am

सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता को समर्पित मेले का समापन, कोरोना के चलते पुजारी व कारदारों ने निभाई पारंपरिक रस्में

सोलन-शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता को समर्पित शूलिनी मेले का समापन रविवार को हुआ। कोरोना वायरस के खतरे के बीच मां तीन दिवसीय राज्य स्तरीय मेले का भव्य रूप तो नहीं देखने को मिला, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा मंदिर के पुजारी व कारदारों के साथ माता की पारंपरिक रस्मों को निभाया गया।  रविवार को सूर्य ग्रहण के बाद सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी मां शूलिनी तीन दिन के बाद अपनी बहन से मिलकर अपने मूल स्थान लौट आई। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (कोविड-19) के खतरे के बीच मेले का यह सूक्ष्म रूप देखने को मिला है। ऐसा पहली बार हुआ है कि लोगों को माता के दर्शन ऑनलाइन हुए। इस बार मेले के दौरान भंडारे व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया गया है। बता दें कि कोरोना वायरस के खतरे शुक्रवार को मां शूलिनी अपने स्थान से अपनी बहन को मिलने के लिए आई थी। मेले के पहले शहर में लोगों की भीड़ एकत्र न हो इसको लेकर शहर के कुछ हिस्सों में धारा 144 लगाई गई थी। मंदिर के आसपास सुरक्षा बल तैनात किया गया था। रविवार को भी इसी तरह का माहौल सोलन में देखा गया और धारा 144 लागू की गई थी। रविवार को प्रशासन व कड़ी सुरक्षा के बीच मां शूलिनी को उनके मूल स्थान पर लाया गया।  मेले का इतिहास मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। मां शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुल देवी मानी जाती हैं। मां शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन का नामकरण हुआ है। रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी का मेला आयोजित किया जा रहा है।

मेले की परंपरा आज भी कायम

लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता है बल्कि खुशहाली आती है और मेले की यह परंपरा आज भी कायम है। हालांकि, कोरोना वायरस (कोविड-19) के चलते मेले का सूक्ष्म रूप देखने को मिला है। इसी परंपरा के तहत इस बार भी 19 से 21 जून तक सोलन में मेला होना था। राज्यस्तरीय शूलिनी मेले के आयोजन को लेकर स्थानीय लोगों सहित अन्य राज्यों के लोगों को इंतजार रहता है। लेकिन कोरोना के कारण राज्य स्तरीय मेला नहीं हो सका। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।


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