बुद्ध के समीप

By: Jun 26th, 2020 11:05 am

ओशो

बुद्ध का अर्थ है गहराई। हम जितनी गहराई में डूबते हैं उतने ही बुद्ध के समीप आ जाते हैं। आजकल प्रत्येक मनुष्य शक्तिशाली बनना चाहता है, अकसर लोग शक्ति का प्रयोग दुस्साहस के रूप में करते हैं। एक बार भगवान बुद्ध के एक शिष्य ने उनसे पूछा, भगवान क्या इस चट्टान पर किसी का शासन संभव है? बुद्ध ने कहा, पत्थर से कई गुना शक्ति लोहे में होती है इसलिए लोहा पत्थर को तोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर देता है। फिर शिष्य ने पूछा, लोहे से भी कोई वस्तु श्रेष्ठ होगी? फिर बुद्ध ने कहा, क्यों नहीं। अग्नि है जो लोहे के अहं को गलाकर द्रव रूप में बना देती है। इस पर शिष्य ने कहा, क्या अग्नि की विकराल लपटों के सम्मुख किसी की क्या चल सकती होगी? बुद्ध ने कहा, केवल जल है जो उष्णता को शीतल कर देता है। फिर शिष्य ने पूछा जल से टकराने की फिर किस में ताकत होगी। बुद्ध ने समझाया, ऐसा क्यों सोचते हो वत्स। इस संसार में एक से एक शक्तिशाली पड़े हैं। वायु का प्रवाह जल धारा की दिशा बदल देता है। संसार का प्रत्येक प्राणी वायु के महत्त्व को जानता है, क्योंकि इसके बिना उसके जीवन का महत्त्व ही क्या है। जब वायु ही जीवन है फिर इससे अधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु के होने का प्रश्न ही नहीं उठता।  एक बार बुद्ध बोधिवृक्ष को साष्टांग दंडवत कर रहे थे, शिष्यों ने आश्चर्य से पूछा, आप तो पूर्ण हैं फिर इस तुच्छ वृक्ष को इतना सम्मान क्यों दे रहे हैं। बुद्ध ने कहा, आप सबको यह बोध कराने के लिए जो नमती है सो बड़ा होता है ऐसा न हो आप लोग अहंकारी बनकर नमन की परंपरा को भुला दें। मगध में एक व्यापारी था, उसने बहुत सारा धन कमाया जिसके फलस्वरूप वह बहुत अहंकारी हो गया था। बच्चे भी उसी का अनुकरण करने लगे, जिसके कारण घर का परिवेश नरकमय हो गया। भागा-भागा वह बुद्ध की शरण में गया, भगवान मुझे नरक से बचा लीजिए। बुद्ध ने कहा जो तुम स्वर्ग आनंद की कल्पना करते हो, घर में ही विकसित करो, अपने अंतःकरण को स्वच्छ बनाओ तुम्हें स्वर्ग मिल जाएगा। व्यापारी आया उनका अनुकरण करने लगे, घर का परिवेश ही बदल गया घर स्वर्ग बन गया। भगवान बुद्ध पाटन नगर में पहुंचे जो कि दुर्जनों के लिए विख्यात था। एक व्यक्ति ने कहा, भगवान इतने बड़े नगर में आपको यही जगह मिली, आपके लिए यह स्थान उपयुक्त नहीं है। बुद्ध मुस्कराए उन्होंने कहा वत्स, वैद्य रोगियों को देखने जाता है कि स्वस्थ व्यक्तियों को, इनके आचरण के अंदर जो रोग व्याप्त है मुझे उसकी चिकित्सा तो करनी पड़ेगी। भगवान बुद्ध के आने की खबर से अपरिचित एक निर्धन मोची को, घर के पीछे के गंदे तालाब में एक सुंदर कमल का फूल खिला दिखाई दिया। वह उसे तोड़ लाया, सोचा कि बेचकर कुछ पैसे मिल जाएंगे। उस व्यक्ति को पहले नगर सेठ, फिर मंत्री एवं फिर राजा ने इस कमल के फूल को जो उस ऋतु में कहीं और नहीं था उसे एक मोटी राशि के बदले देने का आग्रह किया। इतनी बढ़ी हुई कीमत देखकर वह स्तब्ध रह गया कारण पूछा कि इतनी अधिक राशि उस छोटे से फूल के लिए क्यों?

पता चला कि भगवान बुद्ध आ रहे हैं, सभी उनका स्वागत करना चाहते हैं। उसने फूल बेचने से मना कर दिया और उसे भगवान बुद्ध के चरणों में चढ़ा दिया। बुद्ध ने उस साधारण से भक्त से कहा, इतने ग्राहक थे, तुझे फूल बेच देना चाहिए था। तेरी निर्धनता मिट जाती, वह भक्त बोला, भगवान संसार में धन संपत्ति ही सब कुछ नहीं है इससे भी बढ़कर कुछ और है, जो आपके दर्शन और सत्संग से मिल गया।


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