डीनू नाग बाबा मंदिर

By: Jun 14th, 2020 11:06 am

हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा, विकास खंड नगरोटा बगवां की पंचायत सिहुंड में लगभग 1000 वर्ष प्राचीन डीनू नाग बाबा का मंदिर है। जानकारी के अनुसार डीनू नाग बाबा सतयुग में पाताल लोक से मृत्यु लोक में भ्रमण के लिए निकले, कई वर्ष भ्रमण करने के बाद नाग बाबा नगरोटा बगवां की सिहुंड नाम की पहाड़ी पर पहुंच गए और इस पहाड़ी को अपना स्थान बना लिया। इस पहाड़ी पर आसपास के गांव के ग्वाले अपनी गउओं को चराने के लिए आते थे तथा कुछ दिनों से उनकी गउओं ने दूध देना बंद कर दिया था, तो ग्वालों ने एक बैठक का आयोजन किया तथा तय किया कि गउओं को पहाड़ी पर चराने के लिए छोड़ कर पहरा डालेंगे तथा देखेंगे कि गउओं का दूध कहां जा रहा है। ग्वालों ने देखा कि एक सांप नाग के रूप में  दूध पी रहा था, तो ग्वालों ने उस नाग को घेर लिया, तो नाग देवता ने मनुष्य रूप धारण कर लिया तथा ग्वालों को बताया कि मैं डीनू नाग देवता, वाकशी नाग का लड़का हूं तथा मुझे यह पहाड़ी पसंद आ गई है तथा यहां मैं अपना स्थान बनाना चाहता हूं। तब ग्वालों ने नाग देवता से प्रार्थना की कि आप इस तरह गउओं का दूध पीते रहेंगे, तो हमारे परिवार भूखे मर जाएंगे। ग्वालों ने नाग बाबा से प्रार्थना की कि हम सभी आपको एक ही स्थान पर दूध, दहीं व घी रख दिया करेंगे तथा आप इस तरह से हमारी गउओं का दूध न पिया करें। तब नाग देवता ने ग्वालों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वहां अपना निवास स्थान बना कर रहने लगे। अंग्रेजों ने वनेर नदी पर सिहुंड नाम की पहाड़ी को जोड़ने के लिए एक पुल का निर्माण कर दिया तथा पुल पर अंग्रेज घूम रहे थे, तो वहां पर सांप रूप में नाग देवता निकले। वहां पर मजदूर भी थे और मजदूरों ने कहा यह हमारे डीनू नाग बाबा हैं, लेकिन अंग्रेजों ने मजदूरों की बात नजरअंदाज करके नाग देवता पर लाठी का जोरदार प्रहार कर दिया तथा नाग देवता उसी समय अदृश्य हो गए। पुजारी सुभाष चंद भोजकी के अनुसार रात को जोरदार दूध की वारिश अढ़ाई घड़ी (एक घंटे तक) हुई तथा अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पुल को तहस-नहस कर दिया। जैसे ही सुबह अंग्रेजों ने देखा कि पुल का नामोनिशान मिट चुका है, तो अंग्रेज इस जगह को छोड़ कर चले गए। पुजारी के अनुसार आज भी उस पुल के दोनों तरफ  के निशान मौजूद है। पुजारी के अनुसार डीनू बाबा ने कहा था कि जो पुजारी मेरे इस स्थान पर पूजा अर्चना करेगा, वह पुजारी हर रोज रोजगार के रूप में मेरी पूंछ को एक जौं के दाने के बराबर काटेगा, तो वह जौं सोने का बन जाएगा तथा उसी से पुजारी अपने परिवार का पालन पोषण कर सकेगा कई वर्षों तक यह सिलसिला जारी रहा। लेकिन कुछ समय बाद पुजारी के मन में लालच आ गया तथा उसने सोचा आज मैं ज्यादा पूंछ काटूंगा, तो मुझे ज्यादा सोना मिल जाएगा। उसी दिन से पूंछ से सोना मिलने वाली प्रथा वंद हो गई। पुजारी के अनुसार डीनू नाग बाबा उसी समय से पूंछ रहित हो गए। डीनू नाग बाबा हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण करते हैं। एक बार गद्दी जाति से संबंधित परिवार के घर में कोई संतान नहीं थी। उन्होंने डीनू नाग बाबा से प्रार्थना की कि अगर मेरे घर लड़का होगा, तो मैं परिवार सहित आपके दर्शन करने आऊंगी तथा आपकी आंखों में काजल लगाऊंगी। कुछ समय बाद उनके यहां पुत्र पैदा हुआ तथा परिवार सहित डीनू नाग बाबा के स्थान पर पहुंच गईं। उसने जैसे ही एक आंख में काजल लगाया, तो उसके मन में  गरूर पैदा हो गया कि मैं बहुत ताकतवर हूं। तभी डीनू नाग बाबा अपने भंयकर रूप में आ गए तथा वह औरत डर गई। उसी समय से नाग बाबा की एक आंख काली और एक आंख सफेद नजर आती है। इस पहाड़ी पर विशाल सिंवल का पेड़ था और उस पेड़ के अढ़ाई चक्कर लगा करके लगभग 500 मीटर दूर वनेर नदी में पानी पीते थे। अप्रैल माह में हर साल एक विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। जो कि सदियों से चली आ रही प्रथा थी और उसे आज भी कायम रखा गया है। पुराने समय में सड़कें नहीं होती थी और समय देखने के लिए घडि़यां भी नहीं होती थी। लोगों को पैदल ही आना जाना पड़ता था। समय का अंदाजा ही लगाया जाता था और देर रात लोग घरों में पहुंचते थे। कई बार नाग देवता ने मनुष्य के रूप में विशाल काया में और सफेद कपड़ों में लोगों को दर्शन दिए हैं तथा उन्हें कहा कि डरो मत मैं डीनू नाग बाबा आपके साथ हूं।

 —  संजय सोनी, गोपालपुर


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