दुखों का कारण

By: Jun 22nd, 2020 11:14 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

इस धरती पर हर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वो क्या कर रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वो अपना जीवन भी किसी को दे रहा हो, वो इसीलिए ऐसा करता है क्योंकि इससे उसे प्रसन्नता मिलती है। उदाहरण के लिए आप लोगों की सेवा करना क्यों चाहते हैं? बस इसलिए कि सेवा करने से आप को खुशी मिलती है…

प्रसन्न या अप्रसन्न रहना मूल रूप से आप का ही चुनाव है। लोग इसलिए दुःखी रहते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि दुःखी रहने से उन्हें कुछ मिलेगा। यह पढ़ाया जा रहा है कि अगर आप पीड़ा भोग रहे हैं, तो आप स्वर्ग में जाएंगे, पर यदि आप दुःखी इनसान हैं तो आप स्वर्ग में जा कर भी क्या करेंगे? नरक आप के लिए ज्यादा घर जैसा होगा। जब आप दुःखी ही हैं, तो आप को कुछ भी मिले, क्या फर्क पड़ेगा? ये कोई दार्शनिक बात नहीं है, आपका सच्चा स्वभाव है। मैं आप को कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं, खुश रहो, तुम्हें खुश रहना चाहिए। हर प्राणी आनंदित रहना चाहता है। हर वो काम जो आप कर रहे हैं, वह किसी न किसी रूप में खुशी पाने के लिए ही कर रहे हैं। इस धरती पर हर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वो क्या कर रहा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वो अपना जीवन भी किसी को दे रहा हो, वो इसीलिए ऐसा करता है क्योंकि इससे उसे प्रसन्नता मिलती है। उदाहरण के लिए आप लोगों की सेवा करना क्यों चाहते हैं? बस इसलिए कि सेवा करने से आप को खुशी मिलती है। कोई अच्छे कपड़े पहनना चाहता है, कोई बहुत सारा धन कमाना चाहता है, क्योंकि इस से उनको खुशी मिलती है।  खुशी जीवन का मूल लक्ष्य है। आप स्वर्ग जाना क्यों चाहते हैं?

सिर्फ  इसलिए कि किसी ने आप को बताया है कि अगर आप स्वर्ग जाएंगे तो खुश रहेंगे। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उस सब को कर लेने के बाद भी अगर आप को खुशी नहीं मिलती है, तो इसका अर्थ यही है कि जीवन की किन्हीं मूल बातों से आप चूक गए हैं। आप जब बच्चे थे, तो आप ऐसे ही खुश रहते थे। फिर, आगे के रास्ते में, कहीं ये आप से खो गया। आप ने इसे क्यों खोया? आप ने अपने आसपास की बहुत सारी वस्तुओं से अपनी पहचान बना ली, आपका शरीर, आप का मन। आप जिसे अपना मन कहते हैं, वो कुछ और नहीं है, बस वे सारी सामाजिक बातें हैं जो आप ने अपने आसपास की सामाजिक परिस्थितियों में से ले ली हैं। आप जिस प्रकार के समाज में पले, बढ़े हैं, उस प्रकार का मन आपने प्राप्त कर लिया है।

इन सब दुःखों का आधार ये है कि आप झूठ के बीचोंबीच खड़े हैं। आप बहुत गहराई से उसके साथ पहचान बनाए हुए हैं, जो आप नहीं हैं। अभी, जो कुछ भी आप के मन में है, वह सब आप ने बाहर से उठाया है। आप इसके साथ इतना ज्यादा जुड़ गए हैं कि अब ये आप को दुःख दे रहा है। आप किसी भी तरह का कचरा इकट्ठा कर सकते हैं, ये ठीक है। जब तक आप इससे अपनी पहचान नहीं जोड़ते, तब तक कोई समस्या नहीं है। ये शरीर आप का नहीं है, आप ने इसे इस धरती से लिया है। आप एक छोटे से शरीर के साथ पैदा हुए थे, जो आप के माता-पिता ने आप को दिया था। आप को कुछ देर के लिए  इसका उपयोग करना है, तो आनंद लीजिए और जाइए। पर आप ने इसके साथ इतनी गहराई से पहचान बना ली है कि आप यही समझते हैं कि ये शरीर ही आप हैं। इन सब दुःखों का आधार ये है कि आप झूठ के बीचोंबीच खड़े हैं। आप बहुत गहराई से उसके साथ पहचान बनाए हुए हैं जो आप नहीं हैं।


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