एकांतमय जीवन

By: Jul 3rd, 2020 11:08 am

मनुष्य वास्तव में अकेला है। अकेला ही आया है और अकेला ही जाएगा। इच्छा करके वह अकेला बहुत हो जाता है। एकोऽहं बहुस्याम। एकांत मय इसका जीवन है। जीवन में जो सुख-दुख प्राप्त होते हैं, वह अकेले को ही होते हैं, कोई दूसरा उसमें भागीदार नहीं होता। जिस समय हम रोगी होते हैं, किसी पीड़ा से व्यथित होते हैं, क्या उस समय का कष्ट कोई बांट लेता है? कोई प्रेमी बिछुड़ गया है, किसी के द्वारा सताए जा रहे हैं, अपनी वस्तुएं नष्ट हो गई हैं, परिस्थितियों में उलझ गए हैं, उस समय जो घोर मानसिक वेदना होती है, उसका अनुभव अपने को ही करना पड़ता है, दूसरे लोगों की सहानुभूति और कभी-कभी सहायता भी मिल जाती है, पर वह बाह्य उपचार मात्र है। किसी भौतिक अभाव का कष्ट हुआ और बाहर की मदद मिल गई, तब तो दूसरी बात है अन्यथा उन दैवी विपत्तियों में जिनमें मनुष्य का कुछ वश नहीं चलता, मनुष्य को एकांत कष्ट ही भोगना पड़ता है। सुख भी एकांत ही मिलता है। मैं विद्वान हूं इसका फल तुम्हें किस प्रकार मिल सकता है? परस्पर सहयोग और दान, त्याग दूसरी बात है। इससे धर्म के अनुसार किसी को भिक्षा दी जा सकती है, किंतु वास्तविक सुख उसी को होता है जिसके पास साधन एकत्रित हैं। मनुष्य का सारा धर्म, कर्म एकांत मय है। उसे अपनी परिस्थितियों पर स्वयं विचार करना पड़ता है अपने लाभ-हानि का निर्णय स्वयं करना पड़ता है। इस संघर्षमय दुनिया में जो अपने पांवों पर खड़ा होकर अपने बलबूते पर चलता है, वह कुछ चल लेता है और अपना स्थान प्राप्त करता है। किंतु जो दूसरों के कंधे पर अवलंबित है, दूसरों की सहायता पर आश्रित है, वह भिक्षुक की तरह कुछ प्राप्त कर ले, तो सही अन्यथा निर्जीव पुतले या बुद्धि रहित कीड़े- मकोड़ों की तरह ज्यों त्यों करके अपनी सांसें पूरी करते हैं। मनुष्य के वास्तविक सुख- दुःख, हानि-लाभ, उन्नति, पतन, बंधन, मोक्ष का जहां तक संबंध है, वह सब एकांत के साथ जुड़ा हुआ है। खेलने की वस्तुओं के साथ मोह बंधन में बंधकर वह खुद खिलौना बन गया है। वस्त्रों और औजारों पर मोहित होकर उसने अपने की वही समझ लिया है, परंतु वास्तव में वह ऐसा है नहीं। रुपए, पैसे, जायदाद, स्त्री, कुटुंब आदि हमें अपने दिखाई देते हैं, पर वास्तव में हैं नहीं। यह सब चीजें शरीर की सुख सामग्री हैं, शरीर छूटते ही इनसे सारा संबंध क्षण मात्र में छूट जाता है फिर कोई किसी का नहीं रहता। भ्रमवश मनुष्य अपना मान कर उनमें तन्मय होता है। सूर्य की धूप और चंद्रमा की चांदनी में बैठकर उन्हें हम अपना बताते हैं। चार खेतों को जोत कर किसान उन पर अपना आधिपत्य जमाता है। दार्शनिक विज्ञानी इन मूर्खों से कहता है। बच्चो तुम भूल रहे हो यह संपूर्ण वस्तुएं एक महान लाभ पर अवलंबित हैं और अपना जीवन क्रम पूरा कर रही है। तुमसे उनका केवल उतना ही संबंध है जितना कि उनसे संबंध रखते हो। असल में वे सब स्वतंत्र हैं और तुम स्वतंत्र। हर चीज अकेली है, इसलिए तुम भी अकेले हो, बिलकुल अकेले हो। इसलिए नित्य अभ्यास करो।


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