क्या चीन की दुकान बंद?

By: Jun 27th, 2020 12:05 am

भारत-चीन सरहद पर तनाव ‘चरम’ पर है और आपसी विश्वास खत्म हो चुका है। बेशक सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत में सेनाओं को पीछे हटाने और पुरानी स्थिति बहाल करने पर बुनियादी सहमति बनी थी। सहमति और सैन्य व्यूह-रचना में बड़े, गहरे फासले होते हैं, लिहाजा रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि लद्दाख के ही डेप्सांग इलाके में चीनी सैनिक करीब 18 किलोमीटर अंदर घुस चुके हैं और हमारे सैनिकों को बेदखल करने पर आमादा हैं। इस संबंध में सेना की तरफ  से कोई अधिकृत बयान नहीं आया है, लेकिन विशेषज्ञ भी ऐसे हैं, जो लगभग सर्वोच्च पदों पर काम कर चुके हैं। उपग्रहों के जो चित्र सार्वजनिक किए गए हैं, उनमें साफ है कि गलवान घाटी के क्षेत्र में चीन के 12-14 टैंक और उतने ही तोपखाने तैनात हैं। आखिर उनके निशाने पर कौन है? पैंगोंग झील और निकटवर्ती इलाकों में चीन ने अच्छे-खासे कैंप बना रखे हैं। चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों की गश्त को भी बाधित कर रहे हैं। अब दलीलें दी जा रही हैं कि सेनाओं के पीछे हटने और अस्त्र-शस्त्र को वापस ले जाने में वक्त लगता है। चीन ने तो एलएसी के आसपास वह मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी तैनात कर दिया है, जो उसने रूस से खरीदा था। वही सिस्टम हमें 2021 तक मिल जाए, तो गनीमत होगी। नौबत यहां तक आ गई है कि अमरीका का आकलन है कि चीन भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और दक्षिण चीन सागर इलाके के लिए गंभीर खतरा बन रहा है, लिहाजा टं्रप प्रशासन ने अपनी सेना के एक हिस्से को एशिया में भेजने का निर्णय लिया है। बहरहाल एक तरफ  चीन की सैन्य रणनीति है, तो दूसरी ओर चीनी कंपनियां गुहार कर रही हैं कि भारत में उन्हें संरक्षण दिया जाए, ताकि वे वहां कारोबार कर सकें। भारत में करीब 100 चीनी कंपनियां अस्तित्व में हैं और खूब धंधा करती रही हैं। चीनी राजदूतों ने भारत सरकार के स्तर पर आग्रह किया है कि व्यापार को रोका न जाए, लेकिन सिर्फ इतना कहा जा रहा है कि एलएसी के करीबी इलाकों में चीन की जो मंशा दिख रही है, आर्थिक चुनौतियां भी उसी के परिप्रेक्ष्य में हैं और इसी आधार पर भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों की दिशा और दशा तय होगी। एलएसी पर चीन ने जो किया है और जो करने की उसकी नीयत दिख रही है, उसके मद्देनजर देश आहत और आक्रोशित है। ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने सर्वदलीय बैठक के बाद अपने बयान में कहा भी था, लिहाजा कारोबार स्तर पर चीन का विरोध होना या उसकी दुकानों को बंद कराने की प्रक्रिया जारी रखना स्वाभाविक है। यह बहिष्कार और प्रतिबंध भावुक नहीं हो सकता कि राजधानी दिल्ली के 3000 होटलों और गेस्ट हाउस के करीब 75,000 कमरों में किसी भी चीनी शख्स को प्रवेश नहीं मिलेगा। यह फैसला संगठन ने सामूहिक तौर पर लिया है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने आदेश दिया है कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने सामान पर मोटे अक्षरों में लिखेंगी कि उत्पाद किस देश का बना है। चीनी सामान से लदे एक जहाज को आने की अनुमति नहीं दी गई। हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर चीनी सामान की जांच हुआ करेगी। बदले में चीन भी हांगकांग में ऐसा ही कर सकता है। लेकिन कारोबार का एक तबका ऐसा भी है, जो चीनी सामान और कच्चे माल पर पूरी तरह प्रतिबंध के खिलाफ  है और इस कवायद को अर्थव्यवस्था-विरोधी मान रहा है। हमारा फार्मा सेक्टर ऐसा ही है, जो कई करोड़ रुपए का कच्चा माल चीन से खरीदता रहा है और फिर दवाइयां बनाकर कई देशों को सप्लाई करता रहा है। यह अरबों का व्यापार है। बेशक मोनोरेल से जुड़ी दो चीनी कंपनियों का ठेका रद्द किया गया है, लेकिन मशीनरी, आधारभूत ढांचा, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, हार्डवेयर व ऑटो आदि क्षेत्रों में चीन का बड़ा निवेश है और योगदान भी है। एकदम पाबंदी थोपने से बाजार ठप्प हो सकता है। क्रिकेट की प्रतियोगिता आईपीएल की अधिकृत प्रायोजक वीवो कंपनी है और उसने यह करार 2200 करोड़ रुपए में किया था। इस चीनी कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाने का निर्णय बीसीसीआई अभी तक नहीं ले सका है। बेशक ‘आत्मनिर्भर भारत’ हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, लिहाजा पहले हम अपने ही उत्पाद बनाएं या विकल्प के तौर पर अन्य देशों के साथ करार करें। चीन की दुकान तभी बंद करना मुनासिब होगा।


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