शिक्षा को जगाने का प्रयास

By: Jun 25th, 2020 12:05 am

मसला स्कूल खुलने के बजाय शिक्षा का है, जहां लॉकडाउन के विराम के बाद माहौल लंबी तान कर सो गया है। अनलॉक होते हिमाचल में शिक्षा को जगाने के लिए स्कूलों के ताले खोलने पर विचार चल रहा है। एक जुलाई को अठारह हजार स्कूलोें के ताले खुलते हैं, तो यह शिक्षा के हस्ताक्षर सरीखा प्रयास है, जहां शिक्षक अपनी हाजिरी में नए दस्तावेज तैयार करेंगे। स्कूल प्रांगण में शिक्षक  को मिल रहा न्योता दरअसल एक नई परिपाटी और शिक्षा के नए बिंदुओं पर विमर्श का सलीका लेकर आ रहा है। पहली बार हर स्कूल अपनी व्यवस्था में शिक्षा के नए संबोधन की तैयारी कर सकता है, बशर्ते केंद्रीय स्तर पर सारे देश के हालात और सिलसिले इससे जुड़ जाएं। बहरहाल हिमाचल का शिक्षा विभाग अपने तौर पर कसरत शुरू करके अनुमान लगा रहा है कि भविष्य की परिपाटी होगी कैसी और शिक्षा के चबूतरे पर कोरोना काल की बंदिशों का सामना करते हुए चिकित्सा संबंधी जरूरतें किस तरह पूरी होंगी। स्कूल में अब छात्रों का आगमन न तो साधारण रहेगा और न ही शिक्षक केवल पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी तक सीमित रहेगा, बल्कि उसकी भूमिका अभिभावक सरीखी भी होगी। यह दीगर है कि स्कूल न तो कोरोना से पूर्व स्थिति में फिलवक्त लौट पाएंगे और न ही छात्रों को पहले जैसा जीवंत माहौलमिल पाएगा। ऐसे में निर्णयों की स्पष्टता में हर स्कूल का वास्ता केवल अध्यापक की हाजिरी से पूरा नहीं होगा, बल्कि शिक्षा प्रबंधक, प्रशासन, अभिभावक, छात्र तथा चिकित्सा व सोशल वर्कर भी पूरे अभियान के पात्र बनें, तो ही स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का संतुलन बनेगा। स्कूलों को खोलने का कोई भी अंदाज अब सामाजिक खतरों व मानवाधिकारों के सम्मान की कद्र करेगा, जबकि सामाजिक दूरी बनाने की अनिवार्यता के बीच समूह के रूप में अध्ययन की परिपाटी को नए स्वरूप में पेश करेगा। पिछले करीब चार महीनों में शिक्षा की जरूरतों से दूर रही व्यवस्था ने हालांकि ऑनलाइन के विकल्प को आजमाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन सरकारी स्कूलों में इसे अपनाने के लिए अभी जमीन तैयार नहीं हो पाई। ऐसे में शिक्षा विभाग फिर से शिक्षकों को बुलाकर स्कूली फेहरिस्त में कितना ऑनलाइन दायित्व जोड़ पाता है, यह प्रशिक्षण, तकनीक, साधन व सुविधाओं पर निर्भर करेगा। सरकारी स्कूलों के छात्रों की पृष्ठभूमि, भौगोलिक व आर्थिक परिस्थितियां तथा सामाजिक प्राथमिकताओं के बीच एकतरफा फैसलों के वांछित परिणाम नहीं आएंगे। राष्ट्रीय स्तर पर ‘जीरो अकादमिक ईयर’ की अवधारणा में समय और परिस्थितियों को समझने की कोशिश जारी है, तो क्या हिमाचल में अध्ययन व अध्यापन की सीमित परिधि को एक संभावना तक देखा जा रहा है और जहां बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों का मूल्यांकन नहीं होगा। ऐसे समय में जबकि हिमाचल के कमोबेश हर जिला से कोरोना पॉजिटिव मरीज बढ़ रहे हैं, शायद ही अभिभावक खुले मन से स्कूलों का पूरी तरह खुलना स्वीकार करेंगे। देखना यह भी होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देश पर किस तरह स्कूलों में थर्मल स्क्रीनिंग, सोशल डिस्टेंसिंग, सफाई, फर्नीचर की सेनेटाइजेशन और बच्चों द्वारा मास्क पहनना मुकर्रर होता है। अब तक की समीक्षाओं में बच्चों पर कोविड-19 के खतरे तथा मानसिक दबाव की स्थिति को असामान्य ही ठहराया जा रहा है, तो यह शायद ही मुमकिन हो कि स्कूल अपनी पूर्ण क्षमता में शिक्षा के प्रति अपने दायित्व को पूरा कर सकें। ऐसे में ई-लर्निंग की तरफ झुकते विकल्प को कैसे स्वीकार व सफल किया जाए, इस पर कई अड़चने दिखाई देती हैं। देखना यह होगा कि हिमाचल सरकार शिक्षा के बंद दरवाजों को खोलने के लिए किस चाबी का इस्तेमाल करती है और यह कितनी सक्षम होती है।


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