योग, अनंत से एकत्व

By: Jun 26th, 2020 11:04 am

श्रीश्री रवि शंकर

परम सत्य की खोज करने वालों के लिए योग एक ऐसा मार्ग है, जो साधक को मानव क्षमता की संपूर्णता प्राप्त करने की अनुभूति प्रदान करता है। यह एक ऐसा रास्ता है, जो मनुष्य को अनंत के साथ एकाकार होने का उच्चतम ध्येय प्राप्त करने में सहयोग करता है…

योग का अर्थ जीवन में लयात्मकता लाना है। यह अंतर्दृष्टि के अध्ययन और सामंजस्य बनाने की विधा है। यह स्वस्थ जीवन कौशल किसी के जीवन और परिवेश की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। यह आंतरिक शक्ति और बाह्य सामंजस्य में सुधार लाता है। योग किसी के व्यक्तित्व में पूर्ण संतुलन ला सकता है। यह संपूर्ण जीवन कौशल व्यक्ति के जीवन और उसके आसपास के माहौल का उन्नयन कर सकता है। योग लोगों के व्यक्तित्व में पूर्ण संतुलन लाता है, यह जीवन की जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान करता है। यह उन बहुत सी समस्याओं का समाधान है जिसकी तलाश आज के व्यवहार विज्ञान में की जा रही है। परम सत्य की खोज करने वालों के लिए योग एक ऐसा मार्ग है, जो साधक को मानव क्षमता की संपूर्णता प्राप्त करने की अनुभूति प्रदान करता है। यह एक ऐसा रास्ता है, जो मनुष्य को अनंत के साथ एकाकार होने का उच्चतम ध्येय प्राप्त करने में सहयोग करता है। योग सूत्र विस्तार रूप में नहीं लिखे गए हैं, इन सूत्रों में योग का संपूर्ण दर्शन बहुत ही संक्षिप्त रूप में समाहित किया गया है, इन सूत्रों को किसी विशेषज्ञ गुरु के निर्देशन से ही समझा जा सकता है। जब कोई व्यक्ति अभ्यास के द्वारा आत्मा की चेतनता की गहराइयों में उतरता है, तो ये सूत्र उसके लिए दिशा निर्देशक और मील के पत्थर के समान कार्य करते हैं। तथापि अपने स्थूल रूप में भी योग मानव जीवन को अकल्पनीय रूप से परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। यहां तक कि यदि लोग आसनों को केवल शारीरिक व्यायाम के रूप में करना शुरू करते हैं तब भी यह एक उत्साहवर्धक लक्षण है। महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंग बताए हैं। बहुत से लोग प्रायः समझते हैं की ये अष्टांग, योग के क्रमबद्ध आठ चरण हैं। तथापि ये अंग क्रमिक नहीं हैं, बल्कि ये मानव शरीर के समान एक संपूर्ण पद्धति के आठ भाग हैं। संपूर्ण शरीर एक साथ विकसित होता है। शरीर के सारे अंग एक साथ ही विकसित होते हैं, परंतु वे सब अपनी-अपनी गति से बढ़ते हैं।

महर्षि पतंजलि यह भी कहते हैं कि योग का उद्देश्य कष्टों के आने से पूर्व ही उनका निराकरण करना है। चाहे वह लोभ, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या या हताशा कोई भी नकारात्मक भावना हो, उसे योग के माध्यम से समाप्त अथवा परिवर्तित किया जा सकता है। जब हम प्रसन्न होते हैं तो, अपने भीतर कुछ है जिसके विस्तार का हम अनुभव करते हैं। जब हम असफल होते हैं अथवा जब कोई हमारा अपमान करता है, तो हमें भीतर कुछ संकुचित होने का अनुभव होता है। योग हमारे भीतर इस कुछ को खोजने में हमारी सहायता करता है, जो हमारे खुश होने पर विस्तृत तथा दुखी होने पर संकुचन का अनुभव करता है।


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