आर्थिक भूमि पर कोरोना के पांव

By: Jul 16th, 2020 12:05 am

कोरोना की रफ्तार से आहत बंदोबस्त कभी इस करवट बैठते हैं, तो कभी उस। राज्य की दृष्टि से देश और देश की दृष्टि से राज्य को देखने के दो अलग-अलग कारण हो सकते हैं और यही वजह है कि हिमाचल का कोरोना पॉजिटिव आंकड़ा तेरह सौ के पार होने को बेताव है। अब प्रतिबंधों के घूंघट हटे, तो प्रदेश की आर्थिक गतिविधियों ने भी परोस दिए खतरे। बीबीएन में एक ही दिन 69 मामलों का आगमन उस प्रदेश पर सवाल खड़े करता है जो आर्थिक मसलों का हल है, बेहतरीन तरीका नहीं। हिमाचल के जिलाबार आंकड़ों को अगर उपमंडल स्तर पर देखा जाए, तो आर्थिक भूमि पर कोरोना के पांव स्पष्ट हैं। अब तक बीबीएन क्षेत्र की सुर्खियों में कोरोना के चिन्हित खतरे इसीलिए बढ़े, क्योंकि वहां प्रवेश के मुख्य बिंदुओं की आजादी ने आधारभूत शर्तें और सोशल डिस्टेंसिंग की मूल भावना छोड़ दी। हालांकि आर्थिकी के मकसद को पूरा करने का प्रयत्न बार-बार कोरोना की परिक्रमा में घुस रहा है, फिर भी जीवन और संघर्ष में एक पलड़ा तो भारी रखना ही पड़ेगा। बहरहाल हिमाचल सरकार ने पुनः प्रवेश के दामन में कुछ शर्तें चस्पां करते हुए यह तय किया है कि प्रदेश आना अब खुली छूट नहीं, फिर से एक प्रक्रिया है। अब हिमाचली भी अपने राज्य में पर्यटक की तरह 72 घंटे पहले कोविड टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट के आधार पर या प्रस्थान से आगमन तक के स्थायी पते में अनुमति हासिल करेंगे। औद्योगिक मजदूरों को अब सशर्त लाने के लिए क्वारंटीन व कोविड टेस्ट की एक नई व्याख्या हुई है, लेकिन बढ़ते मामलों के बावजूद घटती सामाजिक सतर्कता को कैसे मजबूत किया जाए। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के पहरे में अब तक प्रदेश चल रहा था, लेकिन अब ग्रामीण अंचल या शहरों के सार्वजनिक माहौल में लोग आजाद हैं। यह इसलिए भी कि अब सामाजिक-पारिवारिक समारोहों में न वांछित तादाद का बंधन है और न ही भीड़ के व्यवहार में दूरी बनाए रखने का महत्त्व। यह इसलिए भी कि जो व्यक्ति बस में सोशल डिस्टेंसिंग से महरूम व्यवस्था का सहचरी है, वह घर में कैसे अलग तरह से व्यवहार करेगा। यह विकट परिस्थिति है कि एक तरफ आर्थिक कंगाली से बाहर निकलने का रास्ता चाहिए, तो दूसरी ओर कोरोना के कुप्रभाव को सीमित बनाए रखने की स्थिति को बरकरार रखने की चुनौती है। पर्यटन राज्य के मौजूदा संकट में यही ऊहापोह देखी जा सकती है। यहां पर्यटक शिनाख्त में कोविड टेस्ट का सुरक्षा चक्र भी फिलहाल काम नहीं आ रहा है, तो पूरी अर्थ व्यवस्था को सहेजना-समेटना और भी कठिन है। जहां आर्थिकी कोविड खतरों से भयभीत है, वहां सरकार का दखल भी क्या करेगा। निजी बसों की वर्तमान स्थिति भी कुछ इसी तरह का वृत्तांत है। हिमाचल में समूह गतिविधियां जिस तरह अग्रसर हैं, वहां हर मानवीय चूक खतरनाक है। जहां भी समूह बनकर लोग आ जा रहे हैं, वहां प्रशासनिक ढील का असर दिखाई देने लगा है। खतरे पुनः प्रदेश आगमन के दस्तावेजों पर भारी पड़े, तो सरकार ने अपनी चाबियां फिर से प्रशासन को सौंप दीं। अगर सतर्कता की गश्त नहीं, तो कम से कम यह तो खबर रहे कि कोरोना के चिन्ह हमारे इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। प्रशासनिक व सामाजिक तौर पर हिमाचल आगमन के समीकरण एक सरीखे हो सकते हैं, लेकिन व्यवस्थागत फैसलों में यह ध्यान रहे कि सारे आंकड़े बाहर से ही आयात हो रहे हैं। प्रदेश आगमन की छूट का यह अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि अंदरूनी चिंताएं बढ़ाई जाएं। दूसरी ओर कोविड जांच के दायरे अगर निरंतर बढ़े, तो मामलों की वृद्धि एक ऐसा यथार्थ है जिसे जीवन के हर रंग में कबूल करना पड़ेगा। कुछ आर्थिक क्षेत्र अपनी मेहनत के मुताबिक भले ही अपना सफर पूरी तरह हासिल नहीं कर पा रहे, लेकिन धीरे-धीरे कोरोना के खिलाफ यह साहस तो पैदा हुआ कि अब यही रास्ता आगे ले जाएगा।


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