डे केयर में बुजुर्ग
वरिष्ठ नागरिकों के प्रति हिमाचल सरकार अपनी योजनाओं के अग्रिम चरण में सुविधा केंद्रों की श्रृंखला का प्रारूप तय कर रही है, तो ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि कुछ पन्ने फिर जीवन की जिल्द बन जाएंगे। सामाजिक उथल-पुथल के मुहानों पर बंजर होते रिश्ते इस ताक में हैं कि किसी तरह वरिष्ठ नागरिक भी किनारे लग जाएं और ऐसा होने भी लगा है। भले ही भारत की वर्तमान आबादी में युवाओं का प्रतिशत अधिक है,लेकिन साठ साल से ऊपर 8.6 प्रतिशत नागरिकों की देखभाल अब सामाजिक बदलाव की राष्ट्रीय चुनौती बन चुकी है। यह इसलिए भी अगले तीस सालों में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या कुल आबादी का बीस प्रतिशत होगी,अतः इस वर्ग की जरूरतों को ऐसी छत मुहैया करवाई जा रही है ताकि जीवन का अकेलापन और शारीरिक अक्षमता को किसी तरह दूर किया जा सके। हिमाचल सरकार भी इस संकल्प में कुछ ऐसे केंद्र विकसित करना चाहती है जिन्हें ‘वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्र’ का नाम दिया गया है। इन केंद्रों में वरिष्ठ नागरिक सामूहिक तौर पर अपनी जिंदगी के बेहतरीन पलों को साझा करेंगे तथा एक-दूसरे के अकेलेपन में सामुदायकि नजदीकियां जोड़ पाएंगे। मनोरंजन के अलावा योग व स्वास्थ्य जांच की सुविधाओं से ये केंद्र, सामाजिक परंपराओं के सारथी बन सकते हैं। सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के वर्तमान दौर में जीवन की भागदौड़ के विराम, जब ढलती उम्र के साथ जुड़ते हैं तो राज्य की भूमिका में ऐसे आश्रय स्थलों की जरूरत बढ़ जाती है। जाहिर है हिमाचल में वरिष्ठ नागरिक सुविधा केंद्रों के जरिए पुनः जीवन की कोंपले खिल सकती हैं और इनके अभिप्राय से जुड़कर कई सामाजिक संस्थाएं श्रेय बटोर पाएंगी। समाज के बुजुर्ग सदस्यों के प्रति सम्मान व सहयोग की दृष्टि अभिलषित है। ऐसे में हिमाचल जैसे राज्य के लिए ऐसी पहल का फायदा निश्चित रूप से समाज के हर वर्ग से जुड़ेगा। हिमाचल में सेवानिवृत्त कर्मचारी और अधिकारियों का एक बड़ा वर्ग वरिष्ठ नागरिकों के रूप में चिन्हित है, अतः इन केंद्रों के साथ कुछ और मूल आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं। खास तौर पर पेंशन भुगतान से जुड़ी हर प्रकार की औपचारिकताएं अगर इन्हीं केंद्रों के मार्फत पूरी हों तथा बैंकिंग जैसी सुविधाएं भी जुड़ें, तो काफी राहत मिलेगी। वरिष्ठ नागरिकों के प्रति हिमाचल की संवेदना सदा उत्तम रही है और इस दिशा में माता-पिता भरण पोषण जैसी कानूनी पहल से प्रदेश ने काफी पहले से प्रयत्न शुरू किए हैं ताकि जीवन के अंतिम पड़ाव में किसी तरह का शोषण न हो। इसी के साथ बुजुर्गों की सुविधा को देखते हुए यह भी जरूरी है कि शहरी परिवहन सेवाओं को इनके अनुकूल बनाया जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रमुख बाजारों में वाहनों का आवागमन न हो। कुछ समय पहले गांवों के लिए पेश की गई पंचवटी परियोजना भी सामुदायिक उद्देश्यों में इजाफा करती हुई दिखाई देती है। कहना न होगा कि हिमाचल में समाज और परिवार के अलावा बुजुर्ग नागरिकों के लिए सरकार भी ऐसे संदर्भ जोड़ने जा रही है, जो उम्र की अंतिम पायदान को सुरक्षित तथा प्रफुल्लित करने के लिए सहायक होंगे। पंचवटी और वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्रों के मार्फत ग्रामीण व शहरी जनता के लिए यह आश्वासन मिल रहा कि जीवन को साझा करने के लिए बस एक पहल चाहिए।
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