गजब का धान, गजब की खुशबू

बासमती चावल की घरेलू बाजार के अलावा विदेशी बाजार में भी बहुत अच्छी मांग है। पूसा-1121 और पूसा-1718 किस्मों के चावल में अनाज और खाना पकाने के गुणों का संयोजन होता है। आसान पाचनशक्ति और अच्छी सुगंध के कारण ये किस्में जीआई के तहत भी संरक्षित है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू -कश्मीर और पश्चिमी राज्यों के इंडो-गैंगेटिक भागों में इनकी भरपूर खेती होती है। प्रदेश  में पूसा बासमती-1121 ने खरीफ 2019 के दौरान 3500 हेक्टेयर (लगभग 20 प्रतिशत) बासमती क्षेत्र को कवर किया था। अच्छी सुगंध व खाना पकाने के बाद उच्च विस्तार वाली पूसा बासमती-1121 एक असाधारण किस्म है जिसमें चावल पकाने के बाद दाने की लंबाई 22 मिमी तक होना इसकी  प्रमुख विशेषता है। पारंपरिक बासमती की 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की तुलना में इसकी औसत उपज 4.5 टन प्रति हेक्टेयर है। पूसा-1121 बासमती पर शोध में अभी भी कीटों और रोगों के प्रतिरोध पर कार्य प्रगति पर है ताकि कीटनाशक अवशेषों की समस्या का स्थायी रूप से समाधान हो सके और इसके उत्पादन को टिकाऊ बनाया जा सके। इसके अलावा उच्च क्षेत्रों में कम तापमान की शुरुआत से पहले इसकी परिपक्वता को आगे बढ़ाने के लिए छोटी अवधि के जीन भी उपयोग में लाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूसा बासमती 1121 का ही एक उन्नत संस्करण जो कि पूसा बासमती-1718 है।

प्रो सरयाल को जाता है श्रेय

दुनिया की सबसे लंबी अनाज बासमती किस्म पूसा-1121 विकसित करने का श्रेय प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल को जाता है। उन्होंने बताया कि यह बासमती किस्में अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा अर्जक हैं। पूसा बासमती-1121 का देश के कुल बासमती एकड़ क्षेत्र के 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में बीजी जाती है और प्रतिवर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 18000 करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा अर्जन का योगदान देती है।