गरीबों को फिर मुफ्त राशन

By: Jul 2nd, 2020 12:03 am

प्रधानमंत्री मोदी ने पांच और महीनों के लिए गरीब कल्याण अन्न योजना को विस्तार दिया है। अब जुलाई से 30 नवंबर तक करीब 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन मिलता रहेगा। हर परिवार के हरेक सदस्य को प्रति माह पांच किलोग्राम गेहूं या चावल और एक किलो चना मुफ्त मुहैया कराया जाएगा। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत जो भी लाभार्थी होंगे, उन्हें ‘गरीब’ माना जाएगा। उनके अतिरिक्त भी गरीब हो सकते हैं। कोरोना वायरस का मनोवैज्ञानिक और आर्थिक प्रभाव अब भी शेष है। इस दौर ने असंख्य लोगों को बेरोजगार किया है। हालांकि आर्थिक गतिविधियों की दोबारा शुरुआत ने देश में बेरोजगारी दर 7-8 फीसदी तक कर दी है, जो बढ़कर 25 फीसदी से ज्यादा हो गई थी। फिर प्रधानमंत्री ने खुद कबूल किया है कि जुलाई से बारिश, बीमारियों और त्योहारों का मौसम भी शुरू हो रहा है, लिहाजा जरूरत और खर्च बढ़ने स्वाभाविक होंगे। उसी विचार के मद्देनजर सरकार ने अन्न योजना को विस्तार देने का फैसला लिया है। यकीनन योजना की भावना मानवीय और गरीबोन्मुखी है, प्रधानमंत्री की इच्छा है कि देश का कोई भी भाई-बहन भूखा नहीं सोना चाहिए, गरीब के घर का चूल्हा भी हररोज जलता रहे, लेकिन योजना में निहित विसंगतियों को दूर करने का क्या प्रयास किया गया है? यदि एक भी गरीब और भूखा परिवार सार्वजनिक तौर पर कहता है कि उसे राशन नहीं मिला। राशनवाला उसके चक्कर कटवा रहा है या राशन की कालाबाजारी की खबरें भी आती हैं, तो उनसे इतनी महत्त्वपूर्ण और मानवीय योजना नाकाम साबित होने लगती है। गरीब और भूखे लोगों का क्रंदन और सरकार के प्रति रोष ऐसी योजना के सही वितरण पर सवाल और संदेह चस्पां कर देते हैं। बेशक प्रधानमंत्री ने इस आपदाकाल में भी देश के नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य की चिंता की है, क्योंकि प्रधानमंत्री ने एक व्यक्ति के तौर पर गरीबी को झेला और जिया है। लिहाजा हमारी चिंता राशन की वितरण-व्यवस्था को लेकर है, क्योंकि वातानुकूलित कक्षों में बैठे नौकरशाहों की संवेदना यह नहीं होती कि खाद्यान्न हर गरीब तक पहुंचे। अप्रैल से लेकर जून तक के तीन महीनों में यह अन्न योजना ऐलानिया तौर पर लागू थी, लेकिन भूखी जमात की हकीकत कई मौकों पर बेनकाब हुई है। राशन कार्ड भी एक बहुत बड़ी तकनीकी और पेशेवर बाधा रही है। यदि किसी गरीब और भूखे का पारिवारिक राशन कार्ड गांव में है और वे महानगर में मजदूरी करने को अभिशप्त हैं, तो क्या प्रधानमंत्री की घोषित योजना उन्हें भूखा ही मरने देगी? प्रधानमंत्री ने ऐसे अनुभवों को जरूर महसूस किया होगा और ऐसी रपटें उन तक भी पहुंची होंगी! हम उसी संवेदनहीनता को विसंगति मानते हैं। बेशक सरकार के भंडार-गृह खाद्यान्नों से लबालब भरे हैं। देश का नाममात्र वर्ग है-करदाता। वह नियमित रूप से अपना कर चुकता करता ही है। बेशक प्रधानमंत्री ने इन दोनों वर्गों का अभिनंदन किया है और नमन भी किया है, लेकिन उनके समर्पण और योगदान के बावजूद गरीब और भूखे तबके को राशन नसीब न हो, तो यह राष्ट्रीय त्रासदी से कमतर  नहीं आंका जाएगा। प्रधानमंत्री इस बार नौकरशाहों को कड़े आदेश दें कि प्रत्येक गरीब और भूखे को पांच माह का राशन प्राथमिकता के स्तर पर मुहैया कराएं। ऐसा होगा, तो यह योजना सार्थक साबित होगी, नहीं तो राजनीतिक तमाशा बनकर रह जाएगी। बेशक इसी अंतराल में बिहार में चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री के दल और गठबंधन को फायदा मिल सकता है, लेकिन शेष भारत के लिए यह योजना सिर्फ सियासी घोषणा है क्या? हैरानी है कि जब प्रधानमंत्री ने ऐसी घोषणा की, लगभग उसी दौरान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य के लोगों को जून, 2021 तक मुफ्त राशन देने का ऐलान किया। क्या प्रधानमंत्री की योजना के दायरे में पश्चिम बंगाल के लोग शामिल नहीं किए गए थे? ममता की घोषणा राजनीतिक है, क्योंकि मई, 2021 से पहले बंगाल में चुनाव होने हैं और वह अपने वोटरों को इसी तरह बांधे रखना चाहती हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री ने अन्न के साथ-साथ कोरोना काल में जीवन जीने का संदेश भी दिया और अनलॉक-2 के दौर में भी वही सावधानियां बरतने की अपील की है, जो लॉकडाउन के दौरान हमने बरती थीं। बेशक इस घोषणा के जरिए गरीबों को यह एहसास दिलाने की कोशिश भी की गई है कि यह सरकार उन्हीं की है। यथार्थ क्या है, इसका विश्लेषण लगातार किया जाना चाहिए, क्योंकि उसी से लोकतंत्र सशक्त होता है।


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