हमारी न्याय व्यवस्था

By: Jul 11th, 2020 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

एक समय था जब न्यायपालिका परेशान लोगों के लिए सांत्वना का माध्यम थी, निराश लोगों के लिए आशा की किरण थी, गलत काम करने वाले लोगों के लिए भय का कारण थी तथा कानून का पालन करने वाले लोगों को राहत देती थी। यह बुद्धिमान और संवेदनशील लोगों के लिए एक घर के समान थी, एक ऐसी शरण स्थली हुआ करती थी, जहां गरीब और अमीर दोनों को ही आसानी से न्याय मिलता था और न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों के लिए यह एक सम्मान और गर्व का स्थान हुआ करता था। पर आज के समय में गरीब लोगों की न्यायालय में पहुंच बहुत कम है, दुष्ट लोग इसकी परवाह ही नहीं करते, चालाक लोगों ने इसे मजाक बना रखा है और कानून का पालन करने वाले लोग ही इससे डरते हैं। आज स्थिति यह हो चुकी है कि धूर्त लोग न्यायालयों का दुरूपयोग समाज के सम्मानित लोगों के विरुद्ध हथियार के रूप में कर रहे हैं। उन्हें बस इतना करना है कि वे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ  सच्चा या झूठा मुकदमा दायर कर देते हैं और मुकदमा झेलने वाला व्यक्ति सारा जीवन स्वंय को निर्दोष सिद्ध करने में लगा देता है। पहले के समय में, आप तब तक निर्दोष माने जाते थे, जब तक कि आप पर दोष सिद्ध न हो जाए, परंतु आज स्थिति यह है कि आप तब तक दोषी माने जाते हैं, जब तक कि आप स्वंय को निर्दोष सिद्ध न कर दें। निर्दोष साबित करने की यह प्रक्रिया किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत ही लंबी और खर्चीली हो गई है। चाहे आपने कुछ किया है या नहीं, आप पर लगने वाले आरोप ही आपकी प्रतिष्ठा को तार-तार कर देते हैं। किसी भी नामी व्यक्ति के खिलाफ  केस दर्ज करके मिलने वाली प्रसिद्धि की लालसा में भी इस व्यवस्था का दुरुपयोग किया जाता है। भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश के अनुसार, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय  के बहुत से निर्णयों का पालन नहीं किया है। जब सरकारें खुद ही सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान नहीं करती हैं, तो एक आम आदमी उसका सम्मान करने के लिए कैसे प्रेरित हो सकता है। इन सबसे ऊपर, इस सारी प्रक्रिया के पक्षपातपूर्ण होने का भी भय बना रहता है। आजकल हालत यह है कि केस के सभी गुण, दोषों के बावजूद, उस पर होने वाला वाद-विवाद पूरी तरह से न्यायाधीश के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि न्यायाधीशों की वकीलों से निकटता पर खुल कर चर्चा होती है कि कौन सा वकील किस न्यायाधीश के ज्यादा निकट है। इस दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति ने न्याय तंत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है, जिससे लोगों में इस व्यवस्था के प्रति विश्वास कम हुआ है। परंतु इसके साथ ही भारत ने विश्व के महान न्यायाधीश भी निर्माण किए हैं, जो कि सत्यनिष्ठा, बुद्धिमता, स्पष्ट विचार एवं दया के प्रतीक रहे हैं। राजनीति, अर्थ तंत्र, न्यायपालिका, मीडिया और आम लोगों के बीच की यह स्थिति बहुत जटिल है। इतनी जटिल स्थिति में इस समस्या का समाधान निकालना बहुत कठिन है, क्योंकि इसके लिए बहुत से स्तरों पर सुधार की आवश्यकता होगी, पर सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके लिए एक बहुत ही सजग समाज की आवश्यकता होगी।


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