हठलोग के लाभ व लक्षण

By: Jul 18th, 2020 12:16 am

आरडी धीमान

अतिरिक्त मुख्य सचिव, हिमाचल सरकार

हम सब जानते हैं कि पूरे विश्व में योग का प्रचार बढ़ रहा है और हर कोई योग को अपनाना चाहता है। पश्चिमी देशों में तो हर शहर में कई संस्थाओं के द्वारा चलाए जा रहे योग केंद्र मिल जाते हैं व उनमें लोगों की रुचि भी बढ़ती जा रही है। योग के प्रति सब के आकर्षण के पीछे एक मुख्य धारा है कि योग से शरीर स्वस्थ रह सकता है और मन शांत हो जाता है।

जहां तक शरीर को स्वस्थ रखने का व रोगों को ठीक करने का प्रश्न है, तो हठयोग के सात अंगों में से जो आरंभिक अंग हैं षट्कर्म आसन, प्राणायाम व मुद्रा के अभ्यास का ज्यादा प्रभाव शरीर की तंदुरुस्ती व मन की स्थिरता से संबंधित है। मतलब यह कि षट्कर्म जिसमें नेती, धौति, नौली, बस्ती, त्राटक व कपालभाती क्रियाएं आती हैं, से शरीर का शोधन होता है और जब शरीर में मल एकत्रित नही होता, तो कोई रोग नहीं लगता और रोग हो तो भी ठीक हो जाता है। जिन रोगों पर एकदम षट्कर्मों का प्रभाव पड़ता है वे हैं, नजला, जुकाम, एलर्जी, दमा, पेट के रोग, आंखों के रोग, गले के रोग, थाइराइड आदि। इसी प्रकार आसनों से शरीर में दृढ़ता आती है और हमारे सभी अंग स्वस्थ रहते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर साधक 5 घड़ी तक एक आसन जैसे सिद्धासन या पद्मासन में बैठने का अभ्यास दीर्घकाल तक करता है, तो उसका प्राणायाम का उद्देश्य सिद्ध हो जाता है। भाव यह है कि उसकी प्राणवायु इड़ा व पिंगला नाडि़यों  से नाता तोड़ कर सुषुम्ना नाड़ी से बहने लगती है और षटचक्रों को प्रभावित करके कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक होती है। यहां पर ये बताना भी तर्कसंगत होगा कि हठयोग का लक्ष्य कुंडलिनी शक्ति का जागरण व उसे साधनों द्वारा मूलाधार से सहस्रार तक ले जाना होता है, जो हठयोगी के लिए मोक्ष की स्थिति होती है। ये शक्ति मूलाधार चक्र के पास सुप्त अवस्था में होती है और जब जागृत होती है तो वहां से उठ कर स्वाधीष्ठान,मणिपुर चक्र, (नाभि के पीछे) अनाहत चक्र, (हृदय के पीछे) विशुद्ध चक्र, (कंठ के पीछे) और फिर आज्ञाचक्र, (माथे के पीछे) से होती हुई सहस्रार तक पहुंच जाती है और ये ही हठयोग का परम लक्ष्य है। ये सभी चक्र मेरुदंड में स्थित हैं और चक्रों में प्राण और मन का मिलन होने से लंबे अभ्यास के बाद ही गुरुकृपा से यह शक्ति जागृत होती है। जब कुंडलिनी जागृत होती है, तो सभी कमलों को व ग्रंथियों को भेद देती है ओर ऊर्ध्व गमन करती है। किंतु ये भी जान लेना चाहिए कि ये सब कठिन योगाभ्यास व तपश्चर्या से ही संभव हो सकता है

इसके आगे बढ़ें, तो प्राणायाम मन को शांत करने का एक कारगर उपाय है ही। साधारण अवस्था में व्यक्ति का प्राण इड़ा नाड़ी व पिंगला नाड़ी से चलता रहता है और हमारे जीवन व आयु का नाश होता जाता है, किंतु प्राणायाम के अभ्यास से जब प्राण सुषुम्ना नाड़ी बहने लगता है, तो ये क्रम रुक जाता है और व्यक्ति को भक्ति प्राप्त होती है, क्योंकि सुषुम्ना नाड़ी को भक्ति व ज्ञान की नाड़ी मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि मन और प्राण का बहुत गहरा संबंध है दोनों को एक गांठ में बंधा हुआ मानते हैं। इसलिए प्राण पर प्राणायाम के माध्यम से नियंत्रण पा कर मन को भी वश में लाया जा सकता है किंतु इसका दीर्घकाल तक सतत अभ्यास करना चाहिए तभी इस उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है। प्राणायाम के अभ्यास से शरीर का भारीपन और स्थूलता भी खत्म होती है।


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