मक्की और धान की फसल संकट में, समय पर खेप न पहुंची तो बर्बाद हो जाएगी फसल
हिमाचल में मक्की और धान की रोपाई लगभग मुकम्मल हो चुकी है। रोपाई के बाद मक्की और धान की फसल के लिए यूरिया की जरूरत होती है,लेकिन इन दनों प्रदेश के कई इलाकों में किसानों को यूरिया नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में बेहद अहम फसल पर संकट गहरा गया है। अब चाहे इसे सरकार की नाकामी समझ लें या फिर किसानों की फूटी किस्मत कि उन्हें हर सीजन में ऐसी मुश्किलें सामने आ रही हैं। कभी पानी नहीं मिलता,तो कभी बीज। कभी खाद नहीं मिलती,तो कभी थ्रेशिंग के लिए ट्रैक्टर। अपनी माटी टीम ने प्रदेश के कई इलाकों में किसानों से बात की। ज्यादातर किसानों का कहना था कि वे करीब 20 दिनों से खाद के लिए भटक रहे हैं।
ऐसे में किसानों किसानों का सरकार व हिमफेड के अधिकारियों पर बेहद आक्त्रोश देखने को मिल रहा है। हिमफेड कि अधिकारी कभी सरकार व् सम्बन्धित खाद बेचने वाली कम्पनियों के बीच एग्रीमेंट समाप्त होने की दुहाई दे रहे हैं, तो कभी खाद कम्पनियों के पास चल रही कामगारों के अभाव की बात कर रहे हैं। किसान सुबह होते ही अपनी नजदीकी सहकारी सभाओं या फिर निजी डिपो होल्डरों के समक्ष चक्कर काट रहे है। लेकिन उन्हें आज,कल या फिर परसों की डेट देकर टरकाया जा रहा है। झूठे आश्वासनों को सुन किसान शाम ढलते ही मुँह लटकाए बेरंग घर लौट आते है। कृषि विभाग के गोहर स्थित विषयवाद विशेषज्ञ डॉ0 धर्म चंद चौहान ने भी खाद की चल रही किलत को स्वीकार किया है। उनका कहना है कि गोहर क्षेत्र में आजकल यूरिया खाद के करीब 5 ह?ार बैग की आवश्यक्ता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मक्की की फसल को आजकल यूरिया खाद डालने का उपयुक्त समय है। फिलहाल कृषि मंत्री रामलाल मारकंडेय और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से लाखों किसानों को उम्मीद है कि वह इस मसले पर जल्द कार्रवाई करेंगे।
रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता,गोहर
बंगाणा में 12ः32ः 16 के भी लाले
रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, बंगाणा
खेगसू मंडी में आने लगा अर्ली वैरायटी का सेब
आनी । कोरोना वायरस हर दिन हमारे सामने नई दिक्कतें पैदा कर रहा है,लेकिन हम हार मानने वाले नहीं हैं। अब कुल्लू जिला में आनी क्षेत्र की सेब मंडी खेगसू को ही ले लीजिए। यहां कारोबारियों ने कोरोना की काट खोज ली है। मंडी में बाहर से आने वाले मजदूरों को चौदह दिन के लिए क् वारंटाइन किया जा रहा है। इसी तरह इस सब्जी मंडी ने किसान-बागबानोें से अपील की है कि हर घर से एक ही व्यक्ति मंडी में आना चाहिए। इससे मार्केट मे सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने में मदद मिलेगी। इन दिनों सेब की अली वैरायटी मंडी में आ रही है,वहीं नाशपाती की भी भरमार है।
एक बेल पर लगी 100 लौकी गोमूत्र की स्प्रे ने किया कमाल
किसानों की मददगार बनी शिवा परियोजना, अगस्त में रोपे जाएंगे अनार-लीची के हजारों बूटे
हिमाचल में तीन महकमों ने मिलकर लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की है। ये विभाग हैं ग्रामीण विकास, उद्यान तथा जल शक्ति । इन विभागों के जरिए शिवा परियोजना चल रही है। शिवा प्रोजेक्ट एशियन विकास बैंक के सौजन्य से बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी और कांगड़ा के 17 क्लस्टरों में पायलट आधार पर चल रहा है। इन क्षेत्रों में किसानों की मांग के अनुसार लाभदायिक फलों के बगीचे विकसित किये जा रहे हैं। इन जि़लों के 170 हैक्टेयर क्षेत्र में जुलाई और अगस्त माह में अमरूद, लीची, अनार और सिट्रस के हज़ारों बेहतर किस्म के पौधे रोपित किए जाएंगे। पालमपुर के घड़हूं. का चयन भी क्लस्टर के रूप में किया गया है। इस क्षेत्र के 50 किसान परिवारों के दस हैक्टेयर क्षेत्र में लीची के तीन हज़ार पौधे रोपित किये जा रहे हैं। योजना को लेकर अपनी माटी टीम ने किसानों से बात की। घड़हूं के सुरेंद्र कुमार पिछले 20 वर्षों से लुधियाना में कार्यरत थे। कोविड़.19 के चलते उन्हें नौकरी छोड़कर घर आना पड़ा। लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते वह पिछले दो.तीन माह से घर पर ही हैं। मौजूदा हालत में उन्हें नौकरी पर फिर लौटना मुश्किल लग रहा है। उन्होंने अब बागवानी को ही स्वरोज़गार के रूप में अपनाने का फैसला किया है। रमेहड़ पचायत के जगदीश चंद, रमेश चंद, कुशल कुमार, मेहताब सिंह और विधि चंद जैसे लगभग 50 परिवार जंगली और लावारिस पशुओं के आंतक के कारण खेतीबाड़ी छोड़ चुके थे। अब वे इस योजना से अपने सुनहरी भविष्य के सपने बुन रहे हैं। उधर, उपायुक्त कांगड़ा राकेश कुमार प्रजापति ने कहा कि इस परियोजना में किसानों के शेयर 20 प्रतिशत निर्धारित है। सरकार ने इसे कम करने के लिए ज़मीन सुधार तथा अन्य कार्यों को मनरेगा के साथ जोड़ा है।
रिपोर्टः कार्यालय संवाददाता, पालमपुर
करसोग में लो-हाइट सेब का पहला बागीचा तैयार
रिपोर्टःकार्यालय संवाददाता, करसोग
किसानों को पल भर में पता चलेगा मौसम का हाल
हिमाचल के किसानों व बागवानों के लिए प्रदेश सरकार व चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की ओर से राहत की खबर आई है। प्रदेश के किसानों व बागवानों को समय-समय पर रवि व खरीफ की फसलों के अलावा अन्य नकदी फसलों के लिए मौसम से संबंधित जानकारी व अन्य मौसम वैज्ञानिकों की सलाह के लिए चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं,मंडी व बिलासपुर में जिला कृषि मौसम इकाई (डीएएम्यु) परियोजना स्थापित की गई है । कृषि विश्वविद्यालय की इस नई पहल से अब जिला सिरमौर के किसानों को मौसम के बारे में व मौसम से जुड़ी तमाम जानकारियां हर पल मिलती रहेंगी। कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुंआ में पहले कृषि मौसम विशेषज्ञ के रूप में गजेंद्र सिंह ने कार्यभार संभाला है।
बड़े काम का है यह ऐप
कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं के कृषि मौसम विशेषज्ञ डॉक्टर गजेंद्र सिंह ने बताया कि आकाशीय बिजली गिरने से होने वाले जानमाल के नुकसान से बचाव हेतु भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विभाग पुणे द्वारा निर्मित दामिनी एंड्रॉयड ऐप किसान डाउनलोड कर सकते हैं । यह ऐप किसानों की 20 से 40 किलोमीटर के दायरे के अंदर गिरने वाली आकाशीय बिजली का हर 15र्15 मिनट बाद अपडेट देता रहेगा। रिपोर्टः दिव्य हिमाचल ब्यूरो, नाहन
सेब को ऐसे बचाएं रोग से, नौणी से बागबानों के लिए एक्सपर्ट कमेंट
निम्न ऊंचाई वाले क्षेत्र
स्कैब के प्रबंधन के लिए प्रोपीनेब 0.3 प्रतिशत (600 ग्राम/200 लीटर पानी) के स्प्रे की सलाह दी जाती है, जबकि समय से पहले पत्ती गिरने के प्रबंधन के लिए टेबुकोनाज़ोल 50 प्रतिशत + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी 0.04 प्रतिशत (80 ग्राम/ 200 लीटर पानी) की सिफारिश की जाती है।
ऊंची एवं मध्य पहाडि़यों वाले क्षेत्र
प्रोपीनेब के स्प्रे 0.3 प्रतिशत (600 ग्राम / 200 लीटर पानी) या डोडिन 0.075 प्रतिशत (150 ग्राम / 200 लीटर पानी) या मेटिरम 55 प्रतिशत + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5 प्रतिशत डब्ल्यूजी 0.150 प्रतिशत (300 ग्राम /200 लीटर पानी) या टेबुकोनाजोल 8 प्रतिशत + कप्तान 32 प्रतिशत एससी (500एमएल/ 200 लीटर पानी) ऐप्पल स्कैब के प्रबंधन के लिए सिफारिश की जाती है।मेटिरम 55 प्रतिशत + पाइरक्लोस्ट्रॉबिन 5 प्रतिशत डब्ल्यूजी 0.150 प्रतिशत (300 ग्राम/200 लीटर पानी) या फलक्सापाइरोकसाड + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 500 ग्राम / लीटर एससी 0.01 प्रतिशत (20एमएल/200लीटर) का असामयिक पतझड़ व अल्टरनेरिया धब्बा रोग के प्रबंधन के लिए अनुशंसित हैं। रिपोर्टः निजी संवाददाता-नौणी
क्या है स्कैब रोग
लक्षण : यह रोग वेंचूरिया इनैक्वैलिस नामक फफूंद द्वारा उत्पन्न होता है। इस रोग का आक्रमण सर्वप्रथम सेब की कोमल पतियों पर होता है। मार्च-अप्रैल में इन पत्तियों की निचली सतह पर हल्के जैतूनी हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में भूरे तथा काले हो जाते हैं। बाद में पत्तों की ऊपरी सतह पर भी ये धब्बे बन जाते हैं जो अक्सर मखमली भूरे से काले रंग वाले तथा गोलाकार होते है। कभी-कभी संक्रमित पत्ते मखमली काले रंग से ढक जाते हैं जिसे शीट स्कैब कहते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां समय से पूर्व (गर्मियों के मध्य में ही) पीली पड़ जाती है। इस रोग के धब्बे फलों पर भी प्रकट होते हैं।
सीध खेते से
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