जब शिव ने तीसरी आंख खोली

By: Jul 11th, 2020 12:20 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

शिव ने अपनी तीसरी आंख कैसे खोली, इसकी एक कहानी है। भारत में प्रेम और वासना के देवता को कामदेव कहते हैं। काम का अर्थ है, इच्छा, वासना। वासना एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में लोग सीधे-सीधे बात करना नहीं चाहते। वे इसे किसी और सुंदर रूप में बताना चाहते हैं, तो प्रेम का नाम दे देते हैं। कहानी कहती है कि कामदेव ने एक पेड़ के पीछे छुप कर शिव के हृदय पर बाण छोड़ा। शिव थोड़ा अशांत हो गए। उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली जो गुस्से वाली है। इससे उन्होंने काम को जला कर राख कर डाला। आम तौर पर यही कहानी हर किसी को सुनाई जाती है, पर जरा आप अपने आप से पूछिए। आपकी वासना आपके अंदर जगती है या किसी पेड़ के पीछे? सही तो यही है कि ये आपके अंदर ही जगती है। वासना सिर्फ  वही नहीं है जो इनसान के लिए है। हर इच्छा वासना ही है, चाहे वो शारीर की हो या सत्ता की या फिर पद, हैसियत की या कोई और। मूल रूप से वासना का मतलब यही है कि आपके अंदर अधूरेपन का एक एहसास है, जिसके कारण आपको लगता है,अगर मेरे पास वो नहीं है तो मैं अधूरा हूं, मुझे वो किसी भी तरह से चाहिए ही है।

शिव की तीसरी आंखःयौगिक पहलू

इस आधार पर शिव और काम की कहानी का एक यौगिक पहलू भी है। शिव योग के लिए प्रयास कर रहे थे, जिसका मतलब ये है कि वे सिर्फ  पूरा होने का ही नहीं, बल्कि असीमित होने का भी प्रयास कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली, तो काम के रूप में, अपनी खुद की वासना को देखा और उसे जला डाला। इसके कारण उनके शरीर में से धीरे-धीरे राख बाहर निकली। इससे यह पता चलता है कि उन्होंने अपने अंदर उस पहलू का अनुभव किया जो भौतिकता से परे है। इससे उनकी शारीरिक मजबूरियां बाकी न रहीं।

शिव की तीसरी आंख क्या है- तीसरी आंख का मतलब है वो आंख जो सब कुछ देख सकती है, पर जो भौतिक रूप में नहीं है। आप जब अपने हाथ पर नजर डालते हैं, तो उसे देख सकते हैं क्योंकि ये रोशनी को रोकता है और वापस भेजता है। आप हवा को नहीं देख पाते क्योंकि वो रोशनी को नहीं रोकती, पर अगर हवा में थोड़ा धुआं हो, तो आप उसे देख सकेंगे क्योंकि आप वही देख सकते हैं जो रोशनी को अपने में से हो कर गुजरने न दे, रोक ले। आप वो चीज नहीं देख सकते, जो रोशनी को अपने में से हो कर गुजरने देती है। देखने का काम करने वाली हमारी दो आंखों का यही स्वभाव है क्योंकि वे सब कुछ स्वीकार कर लेती हैं। तीसरी आंख का मतलब है वो आंख जो सब कुछ देख सकती है, पर जो भौतिक रूप में नहीं है। हमारी ये ग्रहणशील आंखें बाहर की ओर ही देखती रहती हैं। तीसरी आंख आपका और आपके अस्तित्व का स्वभाव जानने के लिए, आपके अंदर देखने के लिए है। ये कोई माथे पर लगा हुआ एक और अंग नहीं है, न ही माथे पर पड़ी हुई कोई दरार है। अनुभव करने का वो आयाम, जिससे आप भौतिकता से परे की चीजों का अनुभव कर सकें, उसी को हम तीसरी आंख कहते हैं।

जीवन को तीसरी आंख से देखना – एक और पहलू ये है कि हमारी ग्रहणशील, भौतिक आंखों पर कर्म का असर होता है। कर्म का अर्थ है हमारे पिछले कामों की बची हुई यादें। हर वो चीज जो आप इन आंखों से देखते हैं, उस पर कर्म का असर होता है। आप इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते। किसी को देखने पर आप सोचेंगे, वो बढिय़ा है, वो बढिय़ा नहीं है, वो अच्छा है, वो खराब है। आप किसी चीज को उस तरह नहीं देख पाएंगे जैसी वह है, क्योंकि कर्मों की यादें आपकी नजर पर और आपकी देखने की योग्यता पर असर डालती हैं। ये आपको सिर्फ  उसी तरह सब कुछ दिखाएंगी जैसे आपके कर्म हैं, जैसी आपकी पिछली यादें हैं।  सच्ची तरह से जानना तभी होगा जब आपकी तीसरी आंख खुलेगी।


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