मार्ग की बाधाएं

By: Jul 18th, 2020 12:20 am

प्रेम का मार्ग बनाने का एक ही अर्थ होता है कि प्रेम के नैसर्गिक प्रवाह में जो पत्थर डाल दिए गए हैं, वह हटा दो। प्रेम का मार्ग नहीं बनाना होता, सिर्फ बाधाएं हटानी होती हैं। जैसे कि दर्पण है, धूल जमी है, दर्पण नहीं बनाना है, सिर्फ  धूल हटा देनी है, दर्पण तो है ही। जैसे पानी का झरना फूटने को तैयार है, मगर एक चट्टान पड़ी है और झरना नहीं फूट पाता और चट्टान को नहीं तोड़ पाता। चट्टान हटा दो, झरना कहीं से लाना नहीं है चट्टान के हटते ही झरना बह पड़ेगा। तो मार्ग बनाने का अर्थ विधायक नहीं है, नकारात्मक है। सिर्फ  मार्ग की बाधाएं हटा दो। बाधाओं के हटते ही प्रेम सध जाता है।

प्रेम साधा कैसे जा सकता है – प्रेम साधा नहीं जाता, सिर्फ  बाधा हटा दो, फिर प्रेम सध जाता है। सिर्फ  बीच-बीच में जो चीजें अटकाव डाल रही हैं, उनको दूर कर दो। जैसे सुबह तुम उठे हो, द्वार-दरवाजे बंद हैं, पर्दे पड़े हैं, सूरज ऊगा है, लेकिन न तो तुम्हें सूरज का उगना दिखाई पड़ रहा है। तुम्हारे कमरे में अंधकार है, न पक्षियों के गीत सुनाई पड़ रहे हैं। जरा पर्दे खोलो, जरा खिड़कियां खोलो आ जाएंगी सूरज की किरणें नाचती हुई भीतर और पक्षियों के गीत फुदकते हुए तुम्हारे भीतर आ जाएंगे। मार्ग नहीं बनाना पड़ा, मार्ग तो था ही और द्वार पर मेहमान आकर खड़ा था, सिर्फ  मार्ग की बाधा हटा देनी पड़ी। बाधा हट जाए कि बस प्रेम सध गया।

कठिन हमने बना लिया है, कठिन है नहीं। सुगम है, सरल है, स्वाभाविक है। मगर अगर ऐसा कहा जाए कि सरल है, सुगम है, स्वाभाविक है, तो डर है कि तुम शायद कुछ करो ही नहीं।  तुम सोचो, फिर क्या करना है! इसलिए मैं रहीम की बात ही दोहराता हूं कि प्रेम पंथ ऐसो कठिन! तुम्हें देख कर कहना पड़ रहा है। मुझे कठिन नहीं है, रहीम को कठिन नहीं है, तुम्हें देख कर कहना पड़ रहा है और तुम्हें ही देख कर कही जाएगी बात।

बुद्ध को कठिन नहीं है, कृष्ण को कठिन नहीं है, मीरा को कठिन नहीं है, जीजस को कठिन नहीं है, तुम्हें कठिन है और उपचार तो तुम्हारे लिए लिखा जा रहा है! दवा तो तुम्हारे लिए सुझाई जा रही है और तुम धीरे-धीरे हटाओगे पत्थरों को, तो ही हटा पाओगे।  पत्थर भी ऐसे हैं कि जन्मों-जन्मों से जमे हैं और पत्थर भी ऐसे हैं कि सबने जमाने में सहयोग दिया है और पत्थर ऐसे हैं कि तुमने जीवन भर जमाने में मेहनत की है। जब एक दिन अचानक कोई कहेगा, हटाओ इसको इसी के कारण तुम्हारा जीवन दुखी है, नरक बना है तो तुम राजी नहीं हो, तुम नाराज होओगे।

राजी होना दूर, तुम उस आदमी पर नाराज होओगे जो इस तरह की बात कहे। क्योंकि तुम्हारे सारे जीवन के श्रम को व्यर्थ किए दे रहा है। तुम्हारे पूरे जीवन का श्रम क्या है? निष्पत्ति क्या है? यही कि तुम एक कारागृह में कैद होकर रह गए हो। अपने ही हाथों से ढाले हुए सींकचे हैं तुम्हारे और अपने ही हाथों से बनाई गई जंजीरें हैं तुम्हारी।  प्रेम की भाषा तो विनम्रता और सादगी की तरह है। तुम अपने मन को सकारात्मक बनाओ, प्रेम स्वयं ही तुम्हारे जीवन में बहने लगेगा। सारी बाधाएं तुम्हारी अपनी ही बनाई हुई हैं। जितने भी महापुरुष और ज्ञानी हुए हैं उन्होंने अपने हृदय से प्रेम की धारा को ही बहाया।


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