मक्की के दुश्मन का नाम जान लें किसान

By: Jul 26th, 2020 12:06 am

फॉल आर्मी वर्म है कीट का नाम, महकमे के एक्सपर्ट के पास है तोड़

परागपुर क्षेत्र के किसानों द्वारा कृषि विभाग के अधिकारियों से संपर्क के उपरांत  कृषि विभाग के अधिकारी डा. अशोक कुमार,  प्रभारी, राज्य जैव नियंत्रण प्रयोगशाला पालमपुर व डा. गुलशन मनकोटिया कृषि विकाश अधिकारी डाडासिबा ने डा. प्रदीप कुमार, प्रसार विशेषज्ञ यपादप रोग, कृषि विज्ञान केंद्र, कांगड़ा के साथ कीट  ग्रषित मक्की के खेतों का ऊपर परागपुर, उपरली बढ़ल व नगल चौक गांवों में लगभग 20 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का दौरा किया और लगभग 40 किसानों इस कीट के नियंत्रण के बारे में जानकारी दी ।

कृषि विभाग के अधिकारीयों ने कीट की जांच की और इस हमलावर कीट का नाम फॉल आर्मी वर्म बताया। कृषि उपनिदेशक, कांगड़ा डा. पीव सीव सैणी ने  किसानों को सलाह दी है की इस कीट की रोकथाम के लिए किसान अपने खेतों में इस कीट का प्रकोप के शुरू में ही 5: एनव एसव केव इव  या अजेडीरेकटिन 1500 पी पी एम का 5 मिव लिव  दवाई प्रति लीटर पानी में डाल कर छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त कलोरएट्रानीलीपरोल 0.4 मिलि प्रति लीटर पानी में  या थायामिथोजेम 12.6: लेम्डा साईहेलोथ्रिन 9.5: 0.25 मिलि प्रति लिटर पानी में या स्पाइनेटोरम  11.7: एससी 0.5 मिलि प्रति लीटर पानी में या इमामेक्टिन बेन्जोऐट 5: स ज 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें ।

गिरिपार में भी मक्की संक्रमित

गिरिपार के किसान इन दिनों मक्का की फसल में लगी एक बीमारी की समस्या से जूझ रहे हैं। बीमारी खेतों में तेजी से फैल रही है। क्षेत्र में बिजी जाने वाली पारंपरिक मक्का की फसल में इन दिनों एक कीट ने हमला बोल दिया है जो पौधे का ऊपरी भाग खा जाता है। यह रोग पूरे खेत में जंगल की आग की तरह फैल रहा है। कीट द्वारा पौधे के ऊपरी भाग में हमला करने से मक्के का पौधा सूख रहा है। किसानों का कहना है कि यदि इस रोग पर काबू नहीं पाया गया तो क्षेत्र के किसानों को लाखों का नुकसान झेलना पड़ेगा। गिरिपार के गांव माशू उपमंडल में शिलाई के गांव चाकरी, कुसेनु इलाक के किसानों कि अधिकांश फसल इस रोग से खराब हो रही है।

सुंडी के शिकंजे में मक्की की फसल

किसान बोले, ऐसे तो बर्बाद हो जाएंगे

हिमाचल में इस बार मक्की की फसल पर एक के बाद एक आफत टूटकर पड़ रही है। किसान पहले ही अंग्रेजी खाद न मिल पाने से तंग हैं, और अब सुंडी ने फसल को जकड़ लिया है। प्रदेश के ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, कांगड़ा व चंबा से किसान ऐसी शिकायतें कर रहे हैं।  सुंडी के कारण फसल बर्बाद हो रही है। किसानों का कहना है कि विभाग की ओर से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिल पा रही है। इस मसले को पहले भी  दिव्य हिमाचल उठा चुका है। इसी कड़ी में कुछ दिन पहले ऊना के हरोली में  जिला  कृषि अधिकारी ऊना संतोष शर्मा के नेतृत्व में विभागीय टीम ने दौरा किया।  कृषि अधिकारी ने कहा कि किसानों की इन समस्याओं को सरकार व विभाग के समक्ष  उठाया जाएगा। खैर ऊना की तरह ही अन्य जिलों में भी अफसरों के फील्ड में आना होगा,तभी किसानों की समस्या का कुछ हद तक समाधान होगा

रिपोर्टः सिटी रिपोर्टर, ऊना

कांगड़ा घाटी की गर्म पट्टी पर उगा डाला हींग, धीरा के किसान ने कर दिया कमाल

अपनी माटी बुलेटिन में हम हर सप्ताह किसान भाइयों की मुलाकात एक होनहार फार्मर से करवाते हैं।  इसी कड़ी में इस बार हम पहुंचे हैं कांगड़ा जिला के धीरा गांव। धीरा के गांव उलेहड़ प्रगतिशील किसान पूर्ण आलोहिया ने नया प्रयोग किया है। पूर्ण ने विपरीत परिस्थितियों में हींग का पौधा उगाकर कमाल कर दिया है। उन्होंने बताया कि दो साल पहले वह हींग का पौधा एक नर्सरी से लाए थे।  उन्होंने देसी खाद डालकर इस पौधे को तैयार किया है।

उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत से यह संभव हो पाया है।  उन्होंने कहा कि बारिश में इस पौधे को बचाना होता है। गौर रहे कि हींग ठंडे इलाकों में होता है। बहरहाल  यदि कोई भी किसान हींग के बारे में कोई जानकारी लेना चाहे तो  वह पूर्ण चंद के मोबाइल नंबर 98165 35 957 पर संपर्क कर सकता है

रिपोर्ट निजी संवाददाता, धीरा

रस्म अदायगी से आगे बढ़े़ पौधारोपण

प्रदेश में हर साल पौधारोपण अभियान चलता है। यह अभियान रस्म अदायगी तक सिमट गया है।  बेशक बरसात का मौसम पौधे रोपने के लिए सही होता है, लेकिन जहां तक प्रदेश की बात है तो वन, आयुष  विभाग और समाजसेवी संस्थाएं  पौधे रोपती हैं। वन विभाग भी ऐसे आयोजन करता है, लेकिन यह अभियान कागजी साबित  हुए हैं। यह  अभियान कामयाब होते तो आज प्रदेश में पेड़ ही पेड़ होते। होना तो यह चाहिए था कि किस जमीन पर कैसे पौधे रोपे जाएं, यह बातें एक्सपर्ट तय करें। पौधे रोपने के बाद भी  उनकी देखभाल की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए, तभी सही मायने में पौधा रोपण कामयाब होगी।

डा. चिंरजीत परमार फल वैज्ञानिक

हमीरपुर ब्लॉक में हाथों हाथ बिक रहे फलदार पौधे

उद्यान विभाग हमीरपुर में फलदार पौधे हाथोंहाथ बिक रहे हैं। बागबानों को बेहतर क्वालिटी के पौधे सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। बागबान भी इन्हें खरीदने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं। हालांकि पौधों के दामों में इस बार पांच से 10 रुपए की बढ़ौतरी हुई है।

रिपोर्टः कार्यालय संवाददात, हमीरपुर

कैंसर के लिए रामबाण है लेमन ग्रास

बिलासपुर में 25 साल से प्रोडक्शन कर रहे हैं बिलासपुर के सुरेंद्र गुप्ता

देवभूमि  हिमाचल  में  ऐसी कई जड़ी.बूटियां मिलती हैं, जिनसे कई रोग ठीक होते हैं। इन्ही में से एक है लेमन ग्रास।  लेमन ग्रास इम्यूनिटी को बढ़ाता है तथा कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से भी लड़ता है। अपनी माटी टीम आपको ऐसे किसान से मिलाने जा रही है,जो पिछले 25 साल से लेमन ग्रास उगा रहे हैं।

इनका नाम है सुरेंद्र गुप्ता। सुरेंद्र बिलासपुर शहर के रहने वाले हैं। लेमन ग्रास  रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ाता ही है, साथ ही  महिलाओं के मासिक धर्म में आने वाली परेशानियों से निजात पाने सहित पाचन तंत्र मजबूत करने व वजन कम करने में मदद करता है। लैमन ग्रास की चाय बनाई जा सकती है। साथ ही सब्जियों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। बहरहाल  सुरेंद्र गुप्ता अब तक 500 से अधिक लोगों को लैमन ग्रास के पौधे बांट चुके हैं। यह पौधा वह कहां से लेकर आए और कैसे इसका सफल उत्पादन कर रहे हैं ।

सुरेंद्र गुप्ता, संपर्क नंबर 919459920004

रिपोर्टः सिटी रिपोर्ट, बिलासपुर

ऊना में ड्रैगन फ्रूट की खेती

नगदी फसल के तौर पर देखा जाए तो ऊना जिला में सेब की खेती न के बराबर है, लेकिन शौकिया तौर पर कई बागबानों ने सेब को अपने बगीचे में लगाया है।  इसके तहत पूरे जिलाभर में करीब चार हैक्टेयर क्षेत्र में सेब की खेती किचन गार्डन के रूप में की जा रही है। इसमें सेब की अन्ना, माइकल, हरमन-99 व गोल्डन डोरसेट किस्म शामिल है।

उपमंडल हरोली के गांव सलोह में तथा उपमंडल अंब में बागबानों ने 20 से 25 पौधों का एक-एक बगीचा तैयार किया है। इसमें फल भी लगते हैं, लेकिन ये फल ज्यादा समय तक टिकते नही है और इनके स्वाद में भी काफी अंतर होता है। ऊना के बागबान सियाकत अली ड्रैगन फू्रट की खेती कर रहे हैं, जो कि जिला में एक नया प्रयोग है।

रिपोर्ट : दिव्य हिमाचल ब्यूरो, ऊना

क्या है ड्रैगन फू्रट

ड्रैगन फ्रूट कैक्टस परिवार से संबंधित है। गुलाबी रंग का ये फल स्वाद में बेहद मीठा व ताजगी भरा होता है। आमतौर पर ये फल थाईलैंड, वियतनाम, इजरायल व श्रीलंका में काफी लोकप्रिय है। भारतीय बाजार में इसका मूल्य 300 से 400 रुपए किलो है। जिससे अब भारत में भी इसकी खेती का बढ़ाया दिया जा रहा है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। वहीं स्वास्थ्य के नजरिए से भी यह फल काफी लाभदायक है।

भट्टाकुफर फल मंडी में पहाड़ी से गिरा मलबा

प्रदेश की सबसे बड़ी फल मडी भट्टाकुफर में लैडस्लाईड होने से अफरा-तफरी का माहौल रहा।  चंद रोज पहले सुबह के समय अचानक पेश आई उक्त घटना से फल मडी में हड़कंप मच गया है। हालांकि  भूस्खलन होने से फल मड़ी में कोई जानी नुकसान नहीं हुआ है। मगर पहाड़ी से मलवा फल मड़ी के छत पर गिरने से वहां रखी सेब की पेटियों को नुकसान पहुचां है। रिपोर्टः नगर संवाददाता, शिमला

जामुन ने अनफ्रेंड किया हिमाचल पहाड़ पर इस बार आम की बल्ले बल्ले

ईवन ईयर होने के चलते हिमाचल में इस बार आम की फसल भरपूर है। लोगों को जी भरके आम चूसने को मिल रहे हैं। कांगड़ा जैसे जिलों में तो आलम यह कि आम मंडियां न सजने से फलों के राजा की बेकद्री भी खूब हो रही है। अब आते हैं जामुन पर। इस बार प्रदेश में जामुन ढूंढे नहीं मिल रहा। अपनी माटी टीम ने ऊना जिला के तहत कुटलैहड़ का दौरा किया। यहां पता चला कि जामुन यहां न के बराबर है। जामुन के बड़े बड़े पेड़ खाली नजर आ रहे हैं। यही हाल कांगड़ा, चंबा, बिलासपुर और हमीरपुर का भी है। लोगों को चखने तक को जामुन नहीं मिल रहे।  लोगों का कहना है कि जामुन के फल कम होने की वजह से बाजारों में इनकी कीमत  सौ रुपये से ज्यादा हो गई है । गौर रहे कि आम के रस के अलावा इसकी  गुठली तक से देसी दवाई बनाई जाती है।  इस मसले पर बागवानी विकास अधिकारी बंगाणा संगीता का कहना है कि क्लाइमेट का भी असर रहा है,जिसके चलते जामुन के फलों की पैदावार में कमी आई है

रिपोर्टः निजी संवाददाता थानाकलां

सीधे खेत से

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आपके सुझाव बहुमूल्य हैं। आप अपने सुझाव या विशेष कवरेज के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। आप हमें व्हाट्सऐप, फोन या ई-मेल कर सकते हैं। आपके सुझावों से अपनी माटी पूरे प्रदेश के किसान-बागबानों की हर बात को सरकार तक पहुंचा रहा है।  इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।  हम आपकी बात स्पेशल कवरेज के जरिए सरकार तक  ले जाएंगे।

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