न अल्ट्रासाउंड, न ब्लड बैंक

By: Jul 15th, 2020 12:20 am

 देहरा अस्पताल में गर्भवतियों को झेलनी पड़ रहीं दिक्कतें, टांडा का चक्कर

देहरा गोपीपुर-सिविल अस्पताल देहरा हर बार सुर्खियों में रहता है और इस मर्तबा तीन दिन पहले देहरा से टांडा के लिए रैफर गर्भवती महिला की डिलीवरी 108 में होने के कारण सुर्खियों में आ है। यह कोई पहला मौका नहीं हैं, जब सिविल अस्पताल देहरा से टीएमसी के लिए रैफर गर्भवती की बीच रास्ते में प्रसव हुआ  है।  2019-20 में देहरा से टीएमसी के लिए रैफर गर्भवतियों की बीच रास्ते में दो सफल प्रसव 108 के ईएमटी और पायलट द्वारा करवाए गए थे। अब यहां प्रश्न यह खड़ा होता है कि जिस प्रसव को 108 एंबुलेंस का ईएमटी और पायलट करवा सकते है, तो मेडिकल स्टाफ क्यों नहीं। यहां यह भी बता दें कि जिला कांगड़ा  सिविल अस्पताल देहरा ही एकमात्र अस्पताल है, जहां पर ब्लड स्टोरेज यूनिट नहीं है। साथ ही गर्भ ठहरने से लेकर प्रसव तक और शून्य से एक बर्ष तक  निःशुल्क चैकअप की सुविधा हर अस्पताल में निःशुल्क होता है, लेकिन जिस अस्पताल में एक साल से अल्ट्रासाउंड मशीन धूल फांक रही हो, वहां पर यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता गर्भवतियों को कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं।  सिविल अस्पताल देहरा में एक साल से अल्ट्रासाउंड नहीं हुआ है, तो  ज्वालामुखी सिविल अस्पताल में डेपुटेशन पर रेडियो लॉजिस्ट देहरा अस्पताल में गर्भवतियोंं के अल्ट्रासाउंड करने आता था। बतातें चलें कि दो महीने पहले रेडियोलॉजिस्ट का पद भर चुका है। यहां हैरानी तो इस बात की है कि ज्वालामुखी में रेडियोलॉजिस्ट का पद भरने के बाद गर्भवतियों के निःशुल्क होने वाले अल्ट्रासाउंड के पैसे चुकाने पड़ रहें है।  उधर, इस बारे में सिविल अस्पताल के एसएमओ डा. गुरमीत का कहना कि अल्ट्रासाउंड के लिए आलाधिकारियों को  लिखा गया है। सीएमओ डा. गुरुदर्शन गुप्ता ने बताया कि अस्पताल में शीघ्र ही अल्ट्रासाउंड के लिए कोई अल्टरनेटिव सुविधा कर दी जएगी, ताकि गर्भवतियों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े। जहां तक ब्लड स्टोरेज यूनिट की बात है देहरा अस्पताल के लिए सामान मुहैया करवाया गया है। अस्पताल प्रशासन इस पर काम क्यों नहीं करवा पाया इसकी जांच करवाई जाएगी।

ब्लड स्टोरेज यूनिट तक नहीं

सिविल अस्पताल देहरा में 2009-10 में ब्लड स्टोरेज यूनिट खोलने के लिए  अस्पताल को सेंटर प्लेस देखते हुए यहां पर ब्लड स्टोरेज यूनिट खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई।  इसके लिए दो एसी, एक डी फ्रीजर की खरीद फरोख्त भी हुई और तीन चिकित्सकों और दो लैब टेक्नीशियन की ट्रेनिंग भी हुई। लेकिन नौ साल बीत जाने के बाद भी यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका। लिहाजा इसमें किसकी नाकामी रही यह समझ से परे।


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