नपोटिज्म पर अभय देओल बोले; परिवार के साथ पहली फिल्म में किया काम, बाद में खुद बनाया करियर

मुंबई –  बॉलीवुड अभिनेता अभय देओल ने फिल्म इंडस्ट्री में नपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) को लेकर कहा है कि उन्होंने परिवार के साथ पहली फिल्म में काम किया लेकिन उसके बाद उन्होंने अपना करियर खुद बनाया। अभय देओल ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत अपने अंकल धर्मेन्द्र निर्मित ‘सोचा ना था’ से की थी। अभय देओल ने इंस्टाग्राम पर नेपोटिज्‍म के मुद्दे पर पोस्ट किया है। अपनी पोस्‍ट में अभय देओल ने लिखा, “मेरे अंकल, जिन्हें मैं प्यार से डैड कहता हूं, एक बाहरी व्यक्ति थे, फिर भी उन्‍होंने फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम कमाया। मुझे खुशी है कि पर्दे के पीछे की चीजों को लेकर एक गंभीर बहस चल रही है। नेपोटिज्म तो ऊपरी सतह का सिर्फ छोटा सा हिस्‍सा है। मैंने अपने परिवार के साथ एकमात्र फिल्‍म बनाई जो मेरी पहली फिल्म थी। इसके लिए मैं आभारी हूं कि मुझे यह विशेषाधिकार प्राप्त हुआ। इसके बाद मैंने अपने करियर का रास्‍ता खुद बनाया। इस दौरान डैड ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।” अभय ने कहा ,“हमारे यहां भाई-भतीजावाद हर जगह प्रचलित है, चाहे वह राजनीति हो, व्यवसाय हो या फिल्म इंडस्ट्री हो। मैं इस बारे में अच्छी तरह से जानता था और इसी ने मुझे अपने पूरे करियर में नए निर्देशकों और निर्माताओं के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। लिहाजा मैं ऐसी फिल्में बना पाया जो ट्रैक से कुछ अलग थीं। मुझे खुशी है कि उन कलाकारों और फिल्मों में से कुछ को जबरदस्त सफलता मिली। वैसे तो हर देश में नेपोटिज्‍म होता है लेकिन भारत में इसका स्‍तर अलग ही है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां जाति भी अधिक स्पष्ट रूप से बोली जाती है। आखिरकार, यह ‘जाति’ है जो यहां यह तय करती है कि एक बेटा अपने पिता वाला काम करेगा और बेटी शादी के बाद गृहिणी बनेगी।” अभिनेता ने कहा ,“यदि हम वाकई बेहतरी के लिए बदलाव लाने को लेकर गंभीर हैं, तो केवल एक पहलू, एक उद्योग पर ध्यान केंद्रित करना और बाकी अन्य लोगों की अनदेखी करना ठीक नहीं है। हमें अपना सांस्कृतिक विकास करना चाहिए। आखिर हमारे फिल्म निर्माता, राजनेता और व्यापारी कहां से आते हैं? वे भी बाकी सभी की तरह हैं। वे भी उसी सिस्‍टम में बड़े हुए हैं, जैसे अन्‍य लोग। वे अपनी संस्कृति का प्रतिबिंब हैं। हर जगह प्रतिभा अपने माध्यम में चमकने का मौका चाहती है। जैसा कि हमने पिछले कुछ हफ्तों में देखा है कि ऐसे कई तरीके हैं जिनमें एक कलाकार या तो सफल होता है या असफलता के लिए पिटता है। मुझे खुशी है कि आज कई अभिनेता अपने अनुभवों के बारे में बोल रहे हैं। मैं सालों से खुद को लेकर मुखर रहा हूं, लेकिन एक अकेली आवाज के रूप में मैं केवल इतना ही कर सकता था। एक कलाकार को बोलने पर उसे बदनाम करना आसान है और समय-समय पर मेरे साथ ऐसा हुआ है लेकिन जब सामूहिक रूप से बोलेंगे तो ऐसा करना मुश्किल हो जाता है।”