पूरे विश्व में चंद्रधर गुलेरी का नाम… अपने ही गांव में खोई पहचान

By: Jul 8th, 2020 12:20 am

गुलेर में साहित्यकार चंद्रधर गुलेरी की जयंती पर कोई कार्यक्रम नहीं, शुभकामनाओं के चंद शब्द तक नहीं कह पाया विभाग

 जयंती पर विशेष

भटेहड़ बासा-उसने कहा था बुद्धू का कांटा, हीरे की हार जैसी कालजयी रचनाओं से सबको अपना बना लेने वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती पर अपने ही पैतृक गांव गुलेर ने उन्हें उनकी जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित न कर बेगाना कर दिया। या यूं कहें कि बेटे की जयंती को घर वाले ही भूल गए, ऐसा कहना भी बिलकुल गलत नहीं होगा। भाषा और संस्कृति विभाग यहां शुभकामनाओं के चंद शब्द भी उनके पैतृक गांव में आकर नहीं कह पाया, जो कि बेहद दुख का विषय है। सात जुलाई को चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती मनाई जाती है, लेकिन उनके पैतृक गांव गुलेर में मंगलवार का दिन आम दिनों की तरह आकर गुजर गया। हिंदी के महान साहित्यकार व पुरोधा की न तो गुलेर वासियों को याद आई और न ही अपने नाम के पीछे गुलेरी लगाने वालों को उनका रत्ती भर भी ख्याल आया। उसने कहा था बुद्धू का कांटा हीरे की हार सुखमय जीवन जैसी अनेकों कहानियां लिखने वाले महान साहित्यकार गुलेर में जन्मे उस बेटे को यूं भुला देना कहां तक उचित है । सरकार हर बार विभिन्न माध्यमों से गुलेरी जयंती को प्रदेश के कोने-कोने में मनाती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हिमाचल सरकार को गुलेर में जन्मे चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती को गुलेर में मनाने की कभी याद ही नहीं आई । लगभग पांच साल पहले स्थानीय युवाओं द्वारा एक छोटे से प्रयास के तहत गुलेर में गुलेरी जयंती को मनाया गया था, लेकिन उसके बाद सरकार इस मुहिम को आगे नहीं बढ़ा पाई है और इस बार तो सुनने में यह भी आया है कि फेसबुक लाइव के माध्यम से इस बार गुलेरी जयंती को मनाया जा रहा है। इससे साफ  तौर पर देखा गया कि भाषा और संस्कृति विभाग व सरकार की नजर अंदाजी  एक बार फिर से गुलेर के जख्म कुरेद गई है। बता दें कि चंद्रधर शर्मा गुलेरी साहित्य जगत के वह योद्धा है, जिनकी रचनाओं को पूरे विश्व ने सम्मान दिया है, लेकिन अपने ही प्रदेश व अपने ही गांव में नजरअंदाज होना उनकी तौहीन से कम नहीं आंका जा सकता । पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी मूलतः गुलेर के ही रहने वाले  थें उनके नाम के साथ गुलेरी शब्द इसी का प्रतीक है, लेकिन उनका पैतृक गांव, सरकार व भाषा और संस्कृति विभाग लाचार नजर आया। हैरत की बात तो यह है कि  उनके पैतृक गांव में आज उनकी कोई भी समृद्धि मौजूद नहीं है।

अनदेखी से खो रहे पहचान

बता दें कि गुलेर एक गांव ही नहीं गुलेर एक सभ्यता है, यहीं से कांगड़ा कला का उद्गम हुआ है। यहीं पर नयनसुख और मंनकू जैसे चितेरों का जन्म हुआ, जिनकी कलाकृतियां आज विश्व भर में गुलेर की शोभा बढ़ा रही हैं और करोड़ों रुपए में बिक रही हैं। यहीं से राजकवि बृजराज का जन्म हुआ और 1971 के योद्धा सुभाष गुलेरी का पैतृक घर भी सरकार से अपने जीर्णोद्धार की राह ताक रहा है।

मुंबई में रह रहा गुलेरी का परिवार

भाषा और संस्कृति विभाग आज दिन तक गुलेर में उनके नाम का कोई भी स्मारक तक नहीं बना पाया है और न ही गुलेर में उनके नाम का कोई पुस्तकालय है। उनके वंशज भी मुंबई में जाकर बस गए हैं। अब उनका पैतृक घर भी बंद ही रहता है। दुख तो इस बात का है कि एक बड़ी आबादी का हिस्सा कहे जाने वाले हरिपुर गुलेर के पास चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती पर उनके बारे में बधाई देने के लिए दो शब्द भी कम पड़ गए हैं। स्थानीय लोगों की मांग है कि विश्व साहित्य जगत में हिमाचल का नाम रोशन करने वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी की याद में भाषा और संस्कृति विभाग गुलेर में उनके नाम से पुस्तकालय व स्मारक का निर्माण करवाएं, ताकि गुलेरी जी की यादों को जीवंत रखा जा सकें ।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App