सती से जुड़ा है मित्तियां मंदिर का इतिहास

By: Jul 11th, 2020 12:26 am

हिमाचल को देवभूमि कहा जाता है, क्योंकि यहां पर हर गांव या क्षेत्र में कोई ना कोई देवस्थान रहता है, जिसका क्षेत्र में एक विशेष महत्त्व होता है। हिमाचल में अनेक शक्तिपीठ हैं और यहां पर पूरे भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी अनेक श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। इसके अतिरिक्त कई ऐसे भी स्थान हैं, जो दुर्गम क्षेत्र होने के कारण दुनिया की नजरों में नहीं आ सके। जैसे ही वहां आने-जाने के साधन सुलभ हुए, वे स्थान भी तेजी से श्रद्धा के केंद्र बन गए। ऐसा ही एक शक्तिपीठ सोलन जिले में नालागढ़ से 20 किमी. दूर मित्तियां नामक स्थान में स्थित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि एक स्वयं प्रकट पिंडी है, जिसे लोग माता सती से भी जोड़ते हैं।  लोगों का मानना है कि यह स्थान लगभग 400 वर्ष पुराना है। कहते हैं यहां पहले एक खेत था। एक दिन किसान अपने बैलों से खेत जोत रहा था, तो अचानक हल  जमीन में किसी चीज में फंस गया। किसान ने सोचा कि शायद पत्थर होगा, लेकिन जैसे ही उसने देखा, तो लगभग सवा हाथ के करीब ऊंची स्वर्णिम पिंडी जमीन में से बाहर प्रकट हुई थी, जिसमें हल फंसा हुआ था। किसान ने इसकी जानकारी गांव के अन्य लोगों को दी। लोगों ने इसे देवी का चमत्कार मानकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी और वहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर दिया। लोगों का मानना है कि जब भगवान शिव सती के जले शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तो जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां 51 शक्ति पीठ स्थापित हो गए। इसी तरह मित्तियां मंदिर के बारे में भी लोगों का मानना है कि यहां भी सती का कोई अंग अवश्य गिरा होगा, जो बाद में यहां पिंडी के रूप में स्वयं प्रकट हुआ। इस मंदिर में भी कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि उसी पिंडी रूप में माता की पूजा होती है। काफ ी समय तक यहां लोग छोटे से मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। 18वीं शताब्दी में नालागढ़ रियासत में जब राजा राम शरण सिंह गद्दी पर बैठे, तो एक दिन स्वप्न में उनकी कुलदेवी ने उन्हें दर्शन दिए और आदेश दिया कि मित्तियां गांव में मेरा छोटा मंदिर है, आप वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण करो, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। देवी मां की आज्ञा का पालन करते हुए राजा ने इस मंदिर के भवन का निर्माण करवाया, जोकि कला का बेजोड़ नमूना है। यह स्थान बहुत दुर्गम क्षेत्र में था, जिसके कारण लोगों की नजरों से सदियों तक ओझल रहा। यहां तक कि राजा के परिवार ने अपनी कुलदेवी का एक मंदिर रामशहर किले के पास रिवालसर नामक स्थान पर बना लिया था और वहीं पर पूजा-अर्चना  इत्यादि करते थे, लेकिन चंदेल वंश के सभी राजपूतों की कुलदेवी होने के कारण कुछ श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पैदल चलकर आते थे। जब वर्ष 1984 में मित्तियां गांव के लिए बस सेवा शुरू हुई, उसके बाद यहां धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि होने लगी। वर्ष 1994 में यहां पर मंदिर कमेटी का गठन किया गया ताकि श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं की व्यवस्था की जा सके। हर वर्ष मंदिर में कथा का आयोजन होता है तथा नवरात्रों के दौरान वर्ष में दो बार भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु यहां माथा टेकने आते हैं।

    — हरिराम धीमान, नालागढ़


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