‘शोले’ में गब्बर के लिए पहली पसंद नहीं थे अमजद खान

By: Jul 27th, 2020 12:05 am

मुंबई– बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘शोले’ में क्रूर खलनायक ‘गब्बर सिंह’ के किरदार के जरिये अमजद खान ने सिने प्रेमियों के दिल में अपनी अमिट पहचान बनाई लेकिन फिल्म निर्माण के समय इस भूमिका के लिये डैनी का नाम प्रस्तावित था । फिल्म ‘शोले’ में ‘गब्बर सिंह’ के किरदार के लिये फिल्म निर्माता रमेश सिप्पी ने पहले डैनी को अपरोच किया था। डैनी ने फिल्म के लिए हां भी कर दी थी, लेकिन वो उस वक्त फिरोज़ खान की बड़े बजट की फिल्म ‘धर्मात्मा की शूटिंग कर रहे थे, ऐसे में एक साथ दोनों फिल्में करना मुश्किल था। डैनी ने ‘शोले’ में काम करने से मना कर दिया और बाद में यह फिल्म अमजद खान को मिली। फिल्म शोले प्रदर्शित हुयी तो अमजद खान का निभाया किरदार ‘गब्बर सिंह’ दर्शको में इस कदर लोकप्रिय हुआ कि लोग गाहे बगाहे उनकी आवाज और चाल ढ़ाल की नकल करने लगे। गब्बर सिंह फिल्म ‘शोले’ का विलेन होने के बावजूद लोगों के लिए हीरो बन गया। खूंखार डकैत का रोल निभाकर अमजद खान सिनेमाई दुनिया में छा गए। निर्देशक रमेश सिप्पी की शोले के इस गब्बर सिंह ने ऐसे ऐसे दमदार डायलॉग कहे कि वो फिल्मीं इतिहास में दर्ज हो गए। कहते हैं हिंदुस्तानी सिनेमा में गब्बर सिंह से पहले ऐसा दमदार विलेन कभी नहीं हुआ और न ही गब्बर सिंह के बाद वैसा कोई विलेन सिनेमा में नज़र आया। डैनी ने भी बाद में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि ‘यदि मैंने शोले की होती तो भारतीय सिनेमा अमजद खान जैसे एक अद्भुत कलाकार को खो देता। डाकू गब्बर सिंह की कल्पना उस खाकी वर्दी के बिना नहीं की जा सकती। वो खाकी वर्दी किसी कॉस्ट्यूम डिजाइनर ने नहीं, बल्कि खुद अमजद खान ने सुझाई थी जिसे वे मुंबई के चोर बाजार से खरीदकर लाए थे। गब्बर सिंह, हिंदी सिनेमा का पहला खलनायक था जिसने नायक-सी लोकप्रियता हासिल की। ब्रिटैनिया ने गब्बर को अपने ग्लूकोज बिस्किट के विज्ञापन के लिए चुना। यह विज्ञापन ‘गब्बर की असली पसंद’ की पंचलाइन के साथ लोकप्रिय हुआ था। यह पहली बार था जब किसी कंपनी ने अपने प्रोडक्ट के प्रचार के लिए किसी खलनायक को चुना था। 12 नवंबर 1940 जन्में अमजद खान को अभिनय की कला विरासत में मिली। उनके पिता जयंत फिल्म इंडस्ट्री में खलनायक रह चुके थे। अमजद खान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं से की । इस फिल्म में अमजद खान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी। वर्ष 1965 में अपनी होम प्रोडक्शन मे बनने वाली फिल्म पत्थर के सनम के जरिये अमजद खान बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरूआत करने वाले थे लेकिन किसी कारण से फिल्म का निर्माण नहीं हो सका। सत्तर के दशक में अमजद खान ने मुंबई से अपनी काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर अभिनेता काम करने के लिये फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया । वर्ष 1973 में बतौर अभिनेता उन्होंने फिल्म हिंदुस्तान की कसम से अपने करियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। इसी दौरान अमजद खान को थियेटर में अभिनय करते देखकर पटकथा लेखक सलीम खान ने अमजद खान से शोले में गब्बर सिंह के किरदार को निभाने की पेशकश की जिसे अमजद खान ने स्वीकार कर लिया। फिल्म शोले की सफलता से अमजद खान के सिने कैरियर में जबरदस्त बदलाव आया और वह खलनायकी की दुनिया के बेताज बादशाह बन गये। वर्ष 1977 मे प्रदर्शित फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के जरिये भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा ।
अपने अभिनय में आई एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिये अमजद खान ने अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया । इसी क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिरोज खान की सुपरहिट फिल्म कुर्बानी में अमजद खान ने हास्य अभिनय कर दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। वर्ष 1981 में अमजद खान के अभिनय का नया रूप दर्शकों के सामने आया ।प्रकाश मेहरा की सुपरहिट फिल्म लावारिस में वह अमिताभ बच्चन के पिता की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। हालांकि अमजद खान ने फिल्म लावारिस से पहले अमिताभ बच्चन के साथ कई फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभायी थी पर इस फिल्म के जरिये भी अमजद खान दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे । वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म याराना .में उन्होंने सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभायी। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गाना बिशन चाचा कुछ गाओ बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ । इसी फिल्म मे अपने दमदार अभिनय के लिये अमजद खान अपने सिने कैरियर में दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार के फिल्म पेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये। इसके पहले भी वर्ष 1979 में भी उन्हें फिल्म दादा के लिये सर्वश्रेष्ठ सह कलाकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । इसके अलावा वर्ष 1985 में फिल्म मां कसम के लिये अमजद खान सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये । वर्ष 1983 में अमजद खान ने फिल्म चोर पुलिस के जरिये निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गयी। इसके बाद वर्ष 1985 में भी अमजद खान ने फिल्म अमीर आदमी-गरीब आदमी .का निर्देशन किया लेकिन यहां पर भी उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा। वर्ष 1986 में एक दुर्घटना के दौरान अमजद खान लगभग मौत के मुंह से बाहर निकले थे और इलाज के दौरान दवाइयों के लगातार सेवन करने से उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आती रही। उनका शरीर लगातार भारी होता गया । नब्बे के दशक में स्वास्थ्य खराब रहने के कारण अमजद खान ने फिल्मों में काम करना कुछ कम कर दिया । अपने फिल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह अपने मित्र अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म लंबाई चौड़ाई नाम से फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन उनकी ख्वाहिश पूरी नहीं हा सकी। अपनी अदाकारी से लगभग तीन दशक तक दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करने वाले अजीम अभिनेता अमजद खान 27 जुलाई 1992 को इस दुनिया से रूखसत हो गये।


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