शूलिनी विश्वविद्यालय को अब तक 25 पेटेंट

By: Jul 12th, 2020 12:15 am

नौणी-शूलिनी विवि को एक और उपलब्धि हासिल हुई है। भारतीय पेटेंट कार्यालय (आईपीओ), जो कि भारत में पेटेंट देते है, के द्वारा हाल ही में शूलिनी विवि को दो पेटेंट दिए गए हैं , जिससे विश्वविद्यालय को दी गई इनकी संख्या 25 हो गई है। शूलिनी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पीके खोसला ने कहा कि यह विश्वविद्यालय के लिए एक अदभुत उपलब्धि है जो सिर्फ एक दशक पुराना है। उन्होंने कहा कि विवि की स्थापना के बाद से फैकल्टी और छात्रों ने अब तक कुल 415 पेटेंट दायर किए हैं। इन्हें विभिन्न श्रेणियों जैसे डिजाइन, ड्रग्स और उत्पादों में दायर किया गया है। निकट भविष्य में लगभग 20-25 और पेटेंट दाखिल किए जाने है। प्रो. खोसला ने कहा कि शूलिनी विश्वविद्यालय देश के उन तीन शीर्ष संस्थानों में शामिल है, जिन्होंने पिछले साल लगभग 180 पेटेंट दायर किए थे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अब पेटेंट के अनुदान पर ध्यान देना चाहेगा। उन्होंने बताया कि पेटेंट कराने के लिए तीन चरण हैं। पहला चरण पेटेंट के लिए पेटेंट या पंजीकरण दाखिल करना। 18 महीने की अवधि के बाद, शोध पत्रिकाओं में पेटेंट के प्रकाशन के रूप में दूसरा चरण शुरू होता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि पेटेंट का दावा सही  है या नहीं। प्रकाशन के बाद, तीसरा चरण शुरू होता है जो अंत में दिए गए पेटेंट से पहले परीक्षा के लिए अनुरोध है। पेटेंट पंजीकरण दाखिल करने की तारीख से पूरी प्रक्रिया में लगभग तीन साल का समय लगता हैं। शूलिनी विश्वविद्यालय द्वारा  अब तक दायर कुल पेटेंट में से 175 को  प्रकाशित किया गया है जबकि 11 ्रप्रतिशत परीक्षा के अनुरोध के चरण में  है। प्रो. खोसला ने कहा कि शूलिनी विश्वविद्यालय का अपना बौद्धिक संपदा अधिकार सेल है। यह सेल विश्वविद्यालय के माध्यम से उत्पन्न बौद्धिक संपदा जैसे पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि को प्रोत्साहित करने, उसके संरक्षण, प्रबंधन और व्यावसायीकरण करने के लिए समर्पित है। शूलिनी विश्वविद्यालय ने अपने एच-इंडेक्स के रूप में एक और मील का पत्थर हासिल किया है, जो अनुसंधान की गुणवत्ता पर आधारित है,वो अब 55 तक बढ़ गया है। यह न केवल राज्य में विश्वविद्यालयों के बीच सबसे अधिक है, बल्कि इस क्षेत्र में भी सर्वश्रेष्ठ है। एच-इंडेक्स 55 बताता है कि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के 55 शोध पत्रों का 55 बार या उससे अधिक बार उल्लेख किया गया है। प्रत्येक शोध पत्र की गुणवत्ता को दो कारकों में गिना जाता है पहला है संबंधित पत्रिका का प्रभाव जिसमें पेपर प्रकाशित हुआ  है और दूसरा वैज्ञानिक समाज के लिए पेपर की प्रासंगिकता। ये शोध वैज्ञानिकों  के साथ-साथ सामान्य समाज के लिए भी बहुत उपयोगी  हैं।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App