सियासी बधाई की गलती

By: Jul 11th, 2020 12:05 am

चर्चाओं के बीच इंदु गोस्वामी ने कई सियासी बिंदु अपने इर्द-गिर्द खड़े कर लिए हैं। भले ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विजय वर्गीय ने ट्वीट करके उन्हें हिमाचल भाजपाध्यक्ष बनाने की प्रथम सूचना दी और फिर यही बधाई, ‘गलती’ में बदल दी, लेकिन एक छोटे से प्रदेश के लिए चर्चाओं का इतना सफर भी महत्त्वपूर्ण है। इसे मात्र सोशल मीडिया की गलती मानकर चलता इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह सियासत के वर्तमान शोर के बीच एक अनुगूंज की तरह उभरी है। पहले राज्यसभा और अब राज्य के उद्घोष में इंदु गोस्वामी को ऐसी शख्सियत में बदल देती है जो शिमला से दिल्ली तक पार्टी के कई बिंदुओं का विमर्श है। राष्ट्रीय महासचिव विजय वर्गीय का बधाई संदेश या तो किसी जल्दबाजी में आ गया या बाद में भूल सुधार के पीछे एक बड़ा राज पैदा कर रहा है। जो भी हो, कहीं न कहीं भाजपा की राहों पर एक नया कारवां प्रयासरत है। फिजाएं तब भी बदली थीं जब डा. राजीव बिंदल के हाथ हिमाचल भाजपा की कमान आई थी और अब भी जब यकायक इंदु गोस्वामी के पक्ष में सोशल मीडिया उतावला हो गया। राजनीति में ऐसे कयास लगते रहे हैं और सोशल मीडिया आने के बाद तो सियासत के उलटे पांव भी चलने लगे हैं, फिर भी इंदु गोस्वामी का किस्सा केवल विजय वर्गीय की गलती में ही नहीं सिमट सकता। सोचना यह होगा कि इंदु क्योें नहीं और इंदु ही क्यों? भाजपा का रथ अगर बार-बार इंदु के पास आकर रुक रहा है, तो इसके मायने, संदर्भ और केंद्र बिंदु समझने होंगे। भाजपा अगर चाहती है कि अगले चुनाव तक कांगड़ा की सशक्त भागीदारी रहे, तो इंदु गोस्वामी का जिला से ताल्लुक और केंद्र से संपर्क काफी महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं और अगर यह नियुक्ति होते-होते अटकी है, तो प्रदेश के घाघ अभी परास्त नहीं हुए हैं। यह एक स्पष्ट अध्याय है कि भाजपा के भीतर कांगड़ा  अशांत है और यह भी कि कई वरिष्ठ नेता पवन राणा के कद से खुद को बौना व अपमानित महसूस करते हैं। कांगड़ा के हालिया घटनाक्रम के भले ही भाजपा ने आंसू पौंछने की कोशिश की, लेकिन सियासी मुद्दे अपनी कब्र नहीं खोजते। हिमाचल के दो बड़े नेताओं की खामोशी या उनके अतीत का गुम हो जाना अगर भाजपा की विडंबना है, तो दो अन्य विषयों पर छाई खामोशी से पार्टी संतुलन का बिगड़ जाना असंभव नहीं। इंदु की चर्चाओं में शांता कुमार के युग का समाप्त होना तय है, तो प्रेम कुमार धूमल के वर्तमान को पार्टी अध्यक्ष के अगले चेहरे का इंतजार रहेगा। क्या वर्तमान भाजपा को साधने वाला फिर से सतपाल सत्ती सरीखा कोई युवा मिलेगा, जो सारे धु्रवों को मिला कर चल पाएगा। यह रहस्य इंदु के नाम पर हुई चर्चा में इंगित है कि इसके उछलते ही किसका पतन और हटने के पीछे किनका नाम रहा होगा। हैरानी यह कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के गृह राज्य में पार्टी का अहम ओहदा काफी समय से विलुप्त सियासत का शिकार हो रहा है। इस बीच एड़ी चोटियों के प्रयास भले ही कुछ चेहरों पर मुस्कराने का अवसर दें, लेकिन पार्टी प्रबंधन का यह तजुर्बा प्रशंसनीय नहीं है। काफी अरसे से सरकार में रिक्त मंत्री पदों पर छाई विरानी का भी सीधा असर पार्टी को निरुत्साहित करता है। मंत्रिमंडल के विभागीय आबंटन व क्षेत्रीय संतुलन में न भाजपा की संगठनात्मक सौम्यता नजर आती है और न ही सरकार की पैरवी में सारा प्रदेश दिखाई देता है। हो सकता है इंदु की चर्चाओं में हास-परिहास रहा हो, लेकिन हिमाचल की दृष्टि से राजनीति अगर सोशल मीडिया के आडंबर में अपनी तैयारियों या रणनीति का परिचय देगी, तो हर स्थिति में पार्टी के ही अंदरूनी घाव दिखाई देंगे। हिमाचल मंत्रिमंडल विस्तार व राज्य भाजपाध्यक्ष का चयन जल्दी से जल्दी होने से जगत प्रकाश नड्डा के रुतबे और मंशा का पता प्रदेश को चलेगा।


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