स्वामी जी का स्वागत

By: Jul 11th, 2020 12:20 am

गतांक से आगे…

देहरदून में खेतरी राज्य से निमंत्रण पर निमंत्रण आने लगे। वहां जाने के लिए सहारनपुर होकर दिल्ली पधारे। यहां चार दिन तक ठहरे, उसके बाद अलवर को चल दिए। अलवर से जयपुर और वहां से खेतरी के लिए यात्रा की। राजा साहब ने खेतरी से बारह मील आगे बढ़कर स्वामी जी का राजोचित समारोह सम्मान किया। सारा शहर इस उपलक्ष्य में आमोद-प्रमोद के कार्यक्रम में व्यस्त रहा। रात को आतिशबाजी हुई। गरीब और भिखारियों को खाना खिलाया गया। स्वागत समारोह में अभिनंदन पत्र पढ़ा गया और स्वामी जी का भाषण भी हुआ। यहां कुछ दिन रहकर वे अजमेर, किशनगढ़, जोधपुर तथा इंदौर होकर खंडवा पहुंचे। यहां फिर स्वास्थ्य खराब हो गया। इस वजह से आगे जाने का इरादा रद्द कर दिया। वे वापस कलकत्ता लौट आए। यह 1881 ई. के जनवरी महीने का मध्य था। भागीरथी के किनारे मठ बनाने का उनका विचार था। सभी लोगों ने इस स्थान की बड़ी तारीफ की। कई दिनों से स्थान की तलाश हो रही थी तब भागीरथी के पश्चिमी किनारे पर बेलूड़ गांव में इस जगह का पता चला था। फिर यह जमीन खरीद ली गई। इसको खरीदने के लिए धन शिष्य कुमार हेनरिता मुलर ने दिया था। इससे पहले यह स्थान नौका घाट के काम आता था। इस जगह को समतल बनाने और मठ का निर्माण  करने में एक साल का समय लगा। श्रीमति ओलीबुल ने ठाकुर घर के निर्माण का सारा खर्च देने के अलावा मठ का खर्च चलाने के लिए बेलूड़ मठ के संचालक को एक लाख रुपए से भी कुछ ज्यादा नगद दिया। इस तरह एक महान संकल्प साकार हुआ। उधर हिमालय में मठ की स्थापना के लिए सेवियार दंपत्ति उपयुक्त जगह की तलाश कर रहे थे। बेलूड़ का निर्माण कार्य शुरू होने के साथ ही मठ को आलम बाजार से बेलूड़ गांव में नीलांबर मुखोपध्याय के बागीचे वाले मकान में स्थानांतरित कर दिया गया। स्वामी जी अपने शिष्यों और गुरुभाइयों के साथ उस मकान में आकर रहने लगे। इससे उन्हें नए वन रहे मठ के निर्माण कार्य की देखभाल करने में सुविधा हो गई। इन्हीं दिनों श्री स्वामी सारदानंद जी अमरीका से किसी काम के लिए मठ में लौट आए। श्री स्वामी शिवानंद भी एक साल श्रीलंका में रहकर मठ लौट आए थे। श्री स्वामी त्रिगुणातीतानंद जी दीनाजपुर  में दुर्भिक्ष पीडि़तों की सहायता करने के लिए गए हुए थे। इस कार्य को करने के बाद वे भी मठ में आ गए। श्री परमहंस की जन्म तिथि आ रही थी। उस दिन स्वामी जी ने पचास के लगभग ब्रह्मचारियों का संस्कार किया। उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा दी। इनमें ब्राह्मण, वैश्य सभी वर्णों के लोग थे। फरवरी के महीने में कुमारी मैकलीओड अमरीका से गुरुदेव की जन्मभूमि देखने के लिए और भारतीय संस्कृति के साथ परिचित होने के लिए यहां आई। संध्या कार्य में मदद करने की उनकी भी बड़ी ख्वाहिश थी। कुमारी  मुलर और मागरिट पहले से ही यहां आ पहुंची थीं।  मुखोपाध्याय के मकान के अलावा भी यहां कुछ कुटीर बनाकर आवास की व्यवस्था की गई थी।


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