वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

By: Jul 28th, 2020 8:10 am

देश में लाखों ऐसी जगहें हैं, जहां शिव जी के मंदिर या धाम मिल जाएंगे। लेकिन इनमें से जिनका सबसे ज्यादा महत्त्व है वो हैं ज्योतिर्लिंग। पूरे देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव भक्त आराधना के लिए जाते हैं। इनमें से नौंवा ज्योतिर्लिंग है वैद्यनाथ। यह झारखंड के देवघर में स्थित है। श्रावण के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। हर साल श्रावण माह में यहां श्रावणी मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से गेरूआ वस्त्रधारी कांवडि़यों का हुजूम उमड़ता है। कोरोना महामारी की वजह से इस वर्ष देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम में श्रावणी मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा। कहा जाता है कि यहां पर जो भी आता है शिव शंकर उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इस ज्योतिर्लिंग को वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। वहीं, जहां पर ज्योतिर्लिंग स्थित है उसे देवद्यर कहा जाता है। इसे कामना लिंग भी कहते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने हिमालय पर कठोर तपस्या की थी। इसके लिए रावण ने अपने दस सिरों को काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर दिया। जैस ही वो अपना दसवां सिर चढ़ाने लगा तब रावण को शिव जी ने दर्शन दे दिए। रावण की साधना से शिव जी बहुत खुश थे। शिवजी ने रावण को वारदान मांगने को कहा। तब रावण ने वरदान के रूप में शिवलिंग को लंका में स्थापित करने के लिए कहा। शिव ने रावण की बात मान ली और एक चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि अगर इसे रास्ते में कहीं भी रख दिया , तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।

शिव जी की अनुमति और आशीर्वाद लेकर रावण शिवलिंग को लंका में स्थापित करने के लिए निकल गया। रास्ते में उसे भूख-प्यास लगी, तो वो एक जगह रुका और बैजनाथ नाम के एक व्यक्ति को शिवलिंग कुछ देर थामने के लिए दे गया। सभी कामों से निवृत्त होकर जब वो वापस आया, तो उसने देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा है। बैजनाथ ने शिवलिंग भारी होने के कारण उसे जमीन पर रख दिया था। शिवलिंग वहां जड़ चुका था। यह देखकर रावण परेशान हो गया। शिवलिंग को वहां से निकालने की रावण ने बहुत कोशिश की, लेकिन शिवलिंग टस का मस नहीं हुआ। आखिर में थक हारकर शिवलिंग पर अपना अंगूठा गड़ाकर लंका के लिए निकल गया। ब्रह्मा और भगवान विष्णु समेत अन्य देवताओं ने रावण के जाने के बाद यहीं पर शिवलिंग की पूजा की। जैसे ही उन्हें शिवजी के दर्शन हुए सभी देवताओं ने यहीं पर शिवलिंग की स्थापना कर दी। यहां पर मौजूद पंचशूल पांच त्रिशूल को छूना बेहद शुभ माना जाता है।


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