विश्वविद्यालयों को चाहिए सेतु
हिमाचल में शिक्षा के विस्तार का चेहरा बेशक एक नगीने की तरह चमकता है, लेकिन प्रासंगिकता के प्रश्न पर सारी कसौटियां तिरोहित हैं। कितने स्कूल या कालेज अपने औचित्य के कक्ष में नजरअंदाज या शिक्षा के मानदंडों में भिक्षार्थी हैं, इस पर बहस हो सकती है, लेकिन सियासी दस्तावेजों ने पढ़ने के मंतव्य की सदा खिल्ली उड़ाई है। कुछ इसी रफ्तार में अब सियासत उच्चतम शिक्षा को दुर्घटनाग्रस्त करने को आतुर है। प्रदेश में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा को अगर देखा जाए तो तेरह विश्वविद्यालय स्तर के बड़े सरकारी शैक्षणिक संस्थान तथा सतरह निजी विश्वविद्यालय स्थापित हैं, इसके अलावा करीब दो दर्जन मेडिकल तथा इंजीनियरिंग कालेज और सामान्य महाविद्यालयों की संख्या मिला दी जाए तो लगभग पौने दो सौ शिक्षण संस्थानों की एक बड़ी फेहरिस्त में हम हिमाचल की उच्चशिक्षा का मूल्यांकन कर सकते हैं। सर्वप्रथम अगर हम विश्वविद्यालय स्तर के तेरह प्रमुख संस्थानों को देखें, तो इनके बीच कोई ऐसा सेतु ने जो हिमाचल शिक्षा के मानक दर्ज करता हो। आईआईटी मंडी और कुछ हद तक एनआईटी हमीरपुर भले ही आगे नजर आएं, लेकिन राज्य का अपना ढांचा दिशाहीन है। शिमला, सोलन व पालमपुर विश्वविद्यालय के अलावा सेंट्रल यूनिवर्सिटी, तकनीकी विश्वविद्यालय, मंडी में क्लस्टर व मेडिकल यूनिवर्सिटी, एनआईटी, आईआईटी, आईआईएम, ट्रिपल आईटी व संस्कृत विद्यापीठ (गरली) जैसे संस्थानों पर हर साल करीब बारह सौ करोड़ खर्च होते हैं। उच्च शिक्षा के तेरह संस्थानों के बीच किसी भी समन्वय का न होना अपने आप में आश्चर्य पैदा करता है। यह इसलिए भी आवश्यक हो जाता है कि क्योंकि सभी संस्थानों की न तो पाठ्यक्रम समीक्षा हो रही है और न ही ऐसे कार्यक्रम चुने जाते हैं, जो शिक्षा के स्तर व अनुसंस्थान की दिशा तय कर सकें। केंद्रीय शिक्षण संस्थानों को छोड़ दें, तो विश्वविद्यालय स्तर पर कार्य बोध या लक्ष्य आधारित संचालन व समन्वय की कमी है। उदाहरण के लिए कृषि व बागबानी विश्वविद्यालय अगर आपसी सामंजस्य पैदा कर पाएं, तो फैकल्टी एक्सचेंज, अनुसंधान केंद्रित सहयोग, पाठ्यक्रमों में मूल्य संवर्द्धन, फील्ड प्रसार व गतिविधियों में नई ऊर्जा व वित्तीय संसाधनों में किफायत बरती जा सकती है। इसी तरह हिमाचल व केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ मंडी के क्लस्टर में विकसित हो रही यूनिवर्सिटी को जोड़ कर चलें, तो कम से कम राज्य के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा की दृष्टि, सोच व जिम्मेदारी बढ़ेगी। इससे सुविधाओं का आदान-प्रदान, संगोष्ठियों-सेमिनारों के आयोजन, वर्कशॉप तथा उच्च अध्ययन के तौर-तरीके व जवाबदेही बढ़ेगी। हम इन्हीं कालमों में बार-बार उच्च शिक्षा परिषद के गठन या 1925 में स्थापित भारतीय विश्वविद्यालय संगठन(ए आई यू) की तर्ज पर हिमाचल स्तरीय किसी संस्था की स्थापना का सुझाव देते रहे हैं ताकि ज्ञान को बढ़ाने की चेतना पैदा हो और राज्य के परिप्रेक्ष्य में अनुसंधान व प्रकाशन सामग्री को बढ़ावा मिले। प्रदेश के उच्च शिक्षा संस्थान अगर अपनी सुविधाओं का बेहतर व समन्वित इस्तेमाल करें, तो इनकी प्रशासनिक, वित्तीय, अनुसंधानित, छात्र सूचना सेवाओं, खेल व पुस्तकालयों के जरिए शिक्षा के कारण व उद्देश्य समवेत हो जाएंगे। हिमाचल भर में कृषि एवं बागबानी विज्ञान केंद्रों को अगर बदलते संदर्भों में देखें और अंगीकार करें, तो वहां दोनों तरह के विस्तार व अनुसंधान कार्य एक साथ चल सकते हैं। उदाहरण के लिए जाच्छ में बागबानी के साथ कृषि संबंधी प्रयोग व प्रसार हों, तो भौगोलिक परिस्थितियों को जानने-समझने की वैज्ञानिक दृष्टि बढ़ जाएगी। प्रदेश की उच्च शिक्षा के कारणों व लक्ष्यों की समीक्षा होनी चाहिए ताकि कोर्स, पाठ्यक्रम तथा क्रेडिट स्टैंडर्स पर समरूपता बने। प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों के जरिए मानव संसाधन का विकास, राष्ट्रीय रैंकिंग का उत्थान तथा राज्य स्तरीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अध्ययन-अध्यापन की परिपाटी, पुस्तकों का प्रकाशन, अनुसंधान व परीक्षा का ढर्रा बदलते हुए बौद्धिक व व्यावहारिक प्रकाशनों को बढ़ावा देना होगा।
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