न ढोल की थाप, न ही सुरीले भजनों की तान

जन्माष्टमी पर अंबोटा में नहीं निकली श्रीकृष्ण लल्ला की शोभायात्रा, झंडा रस्म के साथ ही पर्व संपन्न

स्टाफ रिपोर्टर—गगरेट-न कहीं ढोल की थाप पर थिरकते लोग और न ही भजन मंडलियों द्वारा कान्हा के गुणगान में छेड़ी जा रही सुरीले भजनों की तान….। श्रीकृष्ण लल्ला प्रकट जरूर हुए लेकिन वैसी ही काली-वीरान रात जैसे मथुरा में नंदलाल के इस धरती पर प्रकट होते रही होगी। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उल्लास ऐसा फीका पहले कभी नहीं था जैसे मंगलवार को देखने को मिला। उपमंडल गगरेट के अंबोटा गांव में सदियों बाद श्रीकृष्ण लल्ला को पालकी में बिठाकर पूरे गांव की फेरी लगाने की रस्म अदा नहीं हुई। लोग सोच भी नहीं सकते कि कोरोना वायरस महज आम आदमी के रास्ते का पत्थर बनकर आगे नहीं खड़ा है बल्कि इस वायरस ने भगवान के रास्ते तक रोक लिए। पहली बार ऐसा हुआ है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर चंद लोग एकत्रित हुए और महज झंडा रस्म से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व संपन्न हो गया। उपमंडल गगरेट के अंबोटा गांव की जन्माष्टमी समूचे उपमंडल में मशहूर है।

यहां पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर निकलने वाली शोभायात्रा मथुरा-वृंदावन की झांकी प्रस्तुत करती है। श्रीकृष्ण के रंग में रंगे इस गांव के लोग महज नंदलाल को ही याद नहीं करते बल्कि धर्मनिरपेक्षता की यहां ऐसी अनूठी मिसाल पेश की जाती है कि यहां धर्म हिंदू, मुस्लिम, सिख व इसाई से नहीं जाना जाता बल्कि यहां सभी का धर्म श्रीकृष्ण ही लगता है। अंबोटा गांव के नंबरदार मुरारी लाल कहते हैं कि जीवन के अस्सी बसंत देख लिए लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर गांव में शोभायात्रा नहीं निकल रही है। हालांकि कुछ लोग मायूस जरूर थे, लेकिन नंदलाल को झूला झुलाए बिना कहां मानने वाले थे इसलिए कई लोगों ने अपने घरों में ही झूले लगाकर श्रीनंद लाल जी का प्रकाश उत्सव मनाया। अंबोटा की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी समारोह समिति के मोहिंद्र सिंह टीओ ने बताया कि सरकार के आदेश के चलते इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी समारोह आयोजित नहीं किया जा सका है।