बेटियों पर सोच बदलेगी क्या?

By: -राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा Aug 14th, 2020 12:06 am

-राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा

21वीं सदी में भी हमारे देश में बेटियों को पराया समझा जाता है, इसलिए इन्हें लोग अपनी संपत्ति का हकदार नहीं मानते हुए अपनी संपत्ति को बेटों के नाम कर देते हैं। लेकिन शादी के बाद किस लड़की पर क्या मुसीबत आ जाए कि उसे अपनी पैतृक संपत्ति की कब बेहद जरूरत पड़ जाए, यह कोई नहीं विचारता है। लेकिन हमारे देश में पैतृक संपत्ति के विवाद के जितने मामले, लड़ाई-झगड़े भाइयों के सामने आते हैं, उतने या यूं कहें कि भाई-बहनों के नामात्र के ही होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को उनकी पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर हकदार बनाने के लिए हाल ही में एक शानदार फैंसला सुनाया है, लेकिन हमारे देश की लड़कियां अपने माता-पिता की संपत्ति पर कभी भी हक जमाने की कोशिश नहीं करतीं। हां, कुछ लड़कियां शादी के बाद दहेज लोभियों के दबाव में अपनी पैतृक संपत्ति से अपना हिस्सा मांगने की मांग करती हों। लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उन लड़कियों को राहत मिल सकती है जो किसी मजबूरी के कारण अपनी पैतृक संपत्ति पाना चाहती हो या फिर उनकी पैतृक संपत्ति के गलत रिश्तेदारों, पथभ्रष्ट हो चुके भाइयों द्वारा इसका दुरुपयोग का खतरा हो।

अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कितने लोग अमल करते हुए बेटा-बेटी में अंतर न समझते हुए, अपनी बेटी या बेटियों को भी पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाते हैं?


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