भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है रक्षाबंधन

By: Aug 1st, 2020 12:30 am

रक्षाबंधन हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह भाई-बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला त्योहार है। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है…

रक्षासूत्र

भारतीय परंपरा में विश्वास का बंधन ही मूल है और रक्षाबंधन इसी विश्वास का बंधन है। यह पर्व मात्र रक्षासूत्र के रूप में राखी बांधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता, वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बांधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए किसी को भी रक्षासूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’ अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षासूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है तब ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बांधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुःख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

रक्षाबंधन का अर्थ

रक्षाबंधन का अर्थ है रक्षाबंधन, अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। इसीलिए राखी बांधते समय बहन कहती है ‘भैया! मैं तुम्हारी शरण में हूं, मेरी सब प्रकार से रक्षा करना।’ आज के दिन बहन अपने भाई के हाथ में राखी बांधती है और उन्हें मिठाई खिलाती है। फलस्वरूप भाई भी अपनी बहन को रुपए या उपहार आदि देते हैं। रक्षाबंधन स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन तो क्या, सर्वस्व देकर भी नहीं चुकाया जा सकता।

शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन

श्रावण की पूर्णिमा को अपरान्ह में एक कृत्य होता है, जिसे रक्षाबंधन कहते हैं। श्रावण की पूर्णिमा को सूर्योदय के पूर्व उठकर देवों, ब्राह्मणों एवं पितरों का तर्पण करने के उपरांत अक्षत, तिल, धागों से युक्त रक्षा बनाकर धारण करना चाहिए। राजा के लिए महल के एक वर्गाकार भूमि-स्थल पर जल-पात्र रखा जाना चाहिए, राजा को मंत्रियों के साथ आसन ग्रहण करना चाहिए, वेश्याओं से घिरे रहने पर गानों एवं आशीर्वचनों का तांता लगा रहना चाहिए, देवों, ब्राह्मणों एवं अस्त्र-वस्त्र का सम्मान किया जाना चाहिए, तत्पश्चात राजपुरोहित को चाहिए कि वह मंत्र के साथ ‘रक्षा’ बांधे और कहे, ‘आपको वह रक्षा बांधता हूं जिससे दानवों के राजा बलि बांधे गए थे।’ सभी लोगों को, यहां तक कि शूद्रों को भी, यथाशक्ति पुरोहितों को प्रसन्न करके रक्षा-बंधन बंधवाना चाहिए। जब ऐसा कर दिया जाता है तो व्यक्ति वर्ष भर प्रसन्नता के साथ रहता है।

पौराणिक कथा

भविष्य पुराण में एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर-संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं की हार हो रही थी। दुःखी और पराजित इंद्र, गुरु बृहस्पति के पास गए। वहां इंद्र पत्नी शचि भी थीं। इंद्र की व्यथा जानकर इंद्राणी ने कहा, ‘कल ब्राह्मण शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी। उसे आप स्वस्तिवाचनपूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। आप अवश्य ही विजयी होंगे।’ दूसरे दिन इंद्र ने इंद्राणी द्वारा बनाए रक्षाविधान का स्वस्तिवाचनपूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया, जिसके प्रभाव से इंद्र सहित देवताओं की विजय हुई। तभी से यह रक्षाबंधन पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें भी भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र बांधती हैं और उनके सुखद जीवन की कामना करती हैं।

रानी कर्णावती और हुमायूं की कथा

मध्यकालीन इतिहास में भी ऐसी ही एक घटना मिलती है। चित्तौड़ की हिंदू रानी कर्णावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी। हुमायूं ने उसकी राखी स्वीकार कर ली और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह बहादुरशाह से युद्ध किया। महारानी कर्णावती की कथा इसके लिए अत्यंत प्रसिद्ध है, जिसने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा के लिए आमंत्रित किया था। राखी के पवित्र बंधन ने दोनों को बहन-भाई के पवित्र रिश्ते में बांध दिया था। मर्मस्पर्शी कथानुसार, राजपूत राजकुमारी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को गुजरात के सुल्तान द्वारा हो रहे आक्रमण से रक्षा के लिए राखी भेजी थी। यद्यपि हुमायूं किसी अन्य कार्य में व्यस्त था, वह शीघ्र ही बहन की रक्षा के लिए चल पड़ा। परंतु जब वह पहुंचा तो उसे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि राजकुमारी के राज्य को हड़प लिया गया था तथा अपने सम्मान की रक्षा हेतु रानी कर्णावती ने ‘जौहर’ कर लिया था।

महाभारत की कथा

इस त्योहार का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में मिलता है। महाभारत में कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई तो भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दुःशासन द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से ‘रक्षाबंधन’ का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।

रक्षाबंधन का धार्मिक महत्त्व

रक्षाबंधन का पर्व प्रत्येक भारतीय घर में उल्लासपूर्ण वातावरण से प्रारंभ होता है। राखी, पर्व के दिन या एक दिन पूर्व खरीदी जाती है। पारंपरिक भोजन व व्यंजन प्रातः ही बनाए जाते हैं। प्रातः शीघ्र उठकर बहनें स्नान के पश्चात भाइयों को तिलक लगाती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बांधती हैं। इसके पश्चात भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है। बहन अपने भाइयों को राखी बांधते समय सौ-सौ मनौतियां मनाती हैं।


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