एक नंबर के ईमानदार

By: Aug 7th, 2020 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

वे एक नंबर के ईमानदार आदमी थे। किसी का कार्य किए बिना कुछ नहीं लेते थे। उनके ऐसा भी नहीं था कि कोई कार्य करने का पहले पैसा दे। हां, इतना अवश्य था कि काम करवाने के बाद वे अपना हक छोड़ते नहीं थे। इसलिए उनके क्षेत्रों में इन्हीं कारणों से उन्हें एक नंबर का ईमानदार माना जाता था। नाम उनका मुक्तिदास और उम्र यही कोई पचास के आसपास। नगर निगम में काम करते थे। पद से बड़े नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपनी इसी ईमानदारी के आधार पर अच्छी-खासी धाक जमा रखी थी। ऊपर तक उनके हाथ थे। कानून को कभी हाथ में नहीं लेते, बल्कि कानून को वे भली प्रकार काम में लेते थे। वे अक्सर अपने ‘क्लाइंट्स’ को डराते रहते थे कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं।

कोई भी गलत काम करने वाला उससे बच नहीं सकता। ऐसी स्थिति से निजात पाने का रास्ता उनके पास है और जो उनके पास आता था तो कानून के हाथ बहुत छोटे हो जाते थे। मेरा भी एक बार उनसे सामना पड़ा। मेरे मकान के बराबर से एक आम रास्ता था। मुझे आम आदमी और आम रास्ता दोनों ही पसंद नहीं है। मेरे पास से आम आदमी गुजरे, यह मुझे गवारा नहीं था। नगर निगम गया तो वहां सभी ने एकमत होकर कहा कि मुक्तिदास जी को पकड़ो। मैंने मालूम किया कि वे कहां मिलेंगे। पता चला कि वे कैंटीन में मिल जाएंगे। कैंटीन में पहुंचा तो वे गरमा-गरम समोसे खाते हुए किसी को नेक सलाह दे रहे थे। मुझे देखकर बोले-‘आओ भाई बैठो, समोसे खाओगे। बड़े खस्ता हैं।’

मैं बोला-‘नहीं समोसे का तेल गला पकड़ता है, इसलिए मैं समोसे नहीं खा पाऊंगा।’ वे हंसकर बोले-‘क्या नाम है आपका। खैर जो भी हो, भाई समोसे का कोई तेल नहीं हुआ करता। तेल तिलों से निकलता है। सच बताऊं उनमें तेल कोई छोड़ता भी नहीं। अब इन्हें ही देख लो।’ अपने साथ बैठे व्यक्ति की तरफ  इशारा करके बोले-‘तीन महीने से रोज मेरे साथ कैंटीन आ रहे हैं, अब इन्हीं से पूछो तेल कहां से निकलता है।’ साथ वाला व्यक्ति रुआंसा होकर बोला-‘अब कब तक होने की उम्मीद है मेरे काम की।’ मुक्तिदास ने चाय को सुड़का और मटमैले दांत निकालकर बोले-‘भाई जल्दी हो तो तुम किसी और से मिल लो।

अफसर को पकड़ लो। मेरी काम कराने की अपनी शैली है। हो जाएगा तो मैं तुमसे बात भी नहीं करूंगा।’ साथ वाला स्वयं ही चुप हो गया। चुपचाप उठा, चाय-समोसे का भुगतान कर रवाना हो गया। उसकी सीट मैंने ली तो वे बोले-‘किसने सताया है तुम्हें?’ मैं बोला-‘मुझे आम आदमी और आम रास्ते ने परेशान कर दिया है। यह कैसे भी बंद होना चाहिए।’


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