कल के कातिल आज के मुन्सिफ

By: सुरेश सेठ Aug 13th, 2020 12:05 am

सुरेश सेठ

sethsuresh25U@gmail.com

कल जो हमारे कातिल थे, आज हमारे साथ हुए अपराधों की सज़ा सुनाने के लिए न्याय का हथौड़ा पीट रहे हैं। उनकी आंखों का रंग बदल गया है। कल तक उनसे खून बरस रहा था, वे रक्तवर्णी हो रही थीं, आज उनसे शांति के पैग़ाम आ रहे हैं, मानवधर्मी सफेद पताकाएं फहरा रही हैं। शांति कपोतों का मोल बढ़ गया। अपने दोनों हाथों से उन्हें किसी मंच से उड़ाओगे तो उस मंच की अम्यर्थना कर रही हज़ारों की भीड़ गदगद हो जाएगी। लोग लिबास बदलने की तरह अपने मूल्य और आदर्श बदल रहे हैं। इन्सानों की बस्तियां जलाने वाले लोग अब फायर ब्रिगेड के जांबाज़ कर्मचारी बन आग पर पानी की बौछार करते नज़र आते हैं। अरे यही तो थे जो कल इस जलती हुई आग पर तेल डालने का काम कर रहे थे। अमानवीयता का सैलाब गुज़र गया। पीछे घोंघे, पत्थर, कूड़ा-कर्कट ही नहीं छोड़ गया, कुछ सरकटी लाशें भी छोड़ गया। अजब मंजर था वह। लोग तिरंगे फहरा कर भारत माता की जय चिल्लाते हुए एक-दूसरे की पीठ में छुरे घोंप रहे थे। अब जब मुखौटा बदलने का वक्त आया तो लोग एक-दूसरे की पीठ थपथपा कर घायलों के जख्मों पर मरहम लगाते देखे जा रहे हैं।

दंगों का सैलाब गुज़र गया, अब सम्मान पत्र बांटने वाले या अपना अभिनंदन स्वयं ही करवा लेने वाले सामने आ रहे हैं कि देखो बंधु, हमने दंगों की इस पीड़ा को अपने बदन पर नहीं बल्कि अपनी आत्मा पर ङोला है। इसीलिए तो फसाद और खून के उन दिनों में हमने घिरे हुए अभागों की भूख-प्यास की सुध ली। उनके अटूट लंगर की कड़ी को टूटने नहीं दिया। हम उन्हें अपनी पीठ थपथपाते हुए देखते रहे कि हां, उत्पाती दिनों में इन लोगों ने दस रुपए की पानी की बाल्टी बीस रुपए में बेची है। वे मुंह मांगी कीमत प्राप्त कर सके, इसके लिए यह भी हो सकता है कि उन अशांत दिनों में उन्होंने पानी की आपूर्ति खुद ही बाधित कर दी हो। अब कारवां गुज़र जाने के बाद उसके गुब्बार को पछाड़ने के लिए जल आपूर्ति से लेकर भूख आपूर्ति तक करते हुए अब समय सारथी बन हर तरह की प्रवंचना से जूझ जाने का संदेश दे रहे हैं।

एक चेहरे पर समयानुसार दूसरा चेहरा लगा लेना और अपनी पीठ खुद ही थपथपा अपने आपको क्रांतिवीर घोषित कर देने का यह उद्घोष हम हर क्षेत्र और हर समय में देखते-सुनते आ रहे हैं। इन दिनों इसका रिवाज़ कुछ अधिक हो गया है क्योंकि सुना है जो असल हकदार थे वह तो इस पहचान और अभयर्थना के मेले में लुट गए साहिब, और तमाशबीन दुकानें सज़ा कर बैठ गए जहां आपके लिए पुरस्कार से लेकर सम्मान पत्र तक सब नीलाम हो रहे हैं। आधी रात को ‘खून का बदला खून’ चिल्लाने वाले शूरवीर सुबह होते ही सूरजमुखी बन कर शांति का सूरज उगा देने के पैरोकार बन गए क्योंकि यह बात तो उनके बड़े-बूढ़े पहले ही बता गए थे कि बरखुरदार गंगा जाओ तो गंगाराम बन जाओ और जमना जाओ तो जमना दास बनने की घोषणा कर दो। कालांतर में यह समझ उन्हें दल-बदलू बनने की प्रेरणा देती है। अपनी टोपी बदल कर वे कभी शर्मिंदा न हुए, बल्कि इसे आत्मावलोकन कह अपनी समझ का नया पड़ाव हमें समझा इसे न्यायसंगत ठहरा गए।


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