लीज पर जमीन लेकर हिमाचल में करोड़ों के निर्माण कर रहे बाहरी

By: Aug 11th, 2020 12:30 am

विशेष संवाददाता, शिमला

हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों से लीज पर जमीन लेकर शातिरों ने करोड़ों रुपए के स्ट्रक्चर खड़े कर दिए हैं, जिनमें धारा-118 को अनेदखा कर दिया गया। हालांकि बिना धारा-118 के तहत मंजूरी के प्रदेश में न तो जमीन खरीदी जा सकती है और न ही कोई निर्माण किया जा सकता है, परंतु इसकी अनदेखी करते हुए यहां पर बड़े-बड़े स्ट्रक्चर खड़े किए गए हैं।

सूत्रों के अनुसार, यह मामला राजस्व विभाग के ध्यान में आया है और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को भी इसकी जानकारी दे दी गई है। इस दौरान ग्रामीण लोगों को भी ठगा गया है, जिनकी जमीन पर अब रिजॉर्ट खड़़े हैं, जबकि उनकी हैसियत उतनी है ही नहीं। बड़ी कमाई के चक्कर में प्रदेशवासियों की उपजाऊ जमीनें पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा से लेकर दिल्ली तक के अमीरों ने कब्जा ली हैं। अधिकांश पर्यटन स्थलों के आसपास स्थानीय लोगों की जमीनें हैं। ये जमीनें नई पीढ़ी के सपनों की उड़ान की कीमत पर घर पर बैठे बुजुर्ग स्वजनों पर भारी पड़ रही हैं।

किसानों की सहमति के खिलाफ  बच्चे उत्तर भारत के धनाढ्य लोगों के चंगुल में फंस चुके हैं। जानकारी के अनुसार राज्य सरकार के सामने करीब एक हजार लीज पर जमीनें देने के मामले सामने आए हैं। होटल और दूसरे आधारभूत ढांचा खड़ा करने के लिए बाहर के लोग पैसा देते हैं। स्थानीय लोग सभी औपचारिकताएं पूरी करके 99 साल की लीज पर जमीन बाहरी लोगों के हवाले कर रहे हैं। लीज के कारण भू-राजस्व अधिनियम की धारा-118 के तहत सरकार से जमीन बेचने की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। प्रदेश में इस तरह के बढ़ते मामलों को लेकर राजस्व विभाग ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के संज्ञान में यह मामला लाया है। प्रदेश के विख्यात पर्यटन स्थलों की अधिकांश जमीन लीज पर चली गई है।

 ग्रामीण लोगों ने शिमला शहर के आसपास मशोबरा, नालदेहरा, कुफरी, नारकंडा, चायल, कंडाघाट, कसौली, राजगढ़, मनाली, कुल्लू, रोहतांग, धर्मशाला, बरोट, भागसुनाग, चंबा, डलहौजी, चिंतपूर्णी सहित देवभूमि के अधिकांश शक्तिपीठों के साथ लगती जमीनें लीज पर बाहरी लोगों के हवाले कर दी हैं। इस तरह से बाहरी लोगों के राज्य में जमने से स्थानीय संस्कृति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। कई स्थानों पर लीज के मामलों में दोनों तरफ  के रिश्तों में कड़वाहट आने से पुलिस तक जाने की नौबत आ रही है। अब देखना होगा कि इस मामले में सरकार क्या हल निकालती है, क्योंकि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ चुकी है और देरी से यह मामला राजस्व विभाग के ध्यान में आया है।


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