मंत्री से पहले, प्रवास के बाद

By: Aug 12th, 2020 12:06 am

इससे पहले कि हिमाचल के नए-नए शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज कुछ कहते या मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपने कांगड़ा प्रवास को समाहित कर पाते, सांसद किशन कपूर ने धर्मशाला स्मार्ट सिटी का परचा खोल दिया। यहां सरकार और सांसद की प्राथमिकताओं में अतीत से भविष्य तक की राजनीति दिखाई देती है। अगर किशन कपूर संसदीय चुनाव की शरण में न जाते, तो आज भी जयराम सरकार के वरिष्ठ मंत्री होते। अब कांगड़ा से वरिष्ठ मंत्री कौन, इस पर अनिश्चितता है, तो सरकार में यहां से मंत्रियों के कद को समझने के लिए सरवीण चौधरी के आसपास खड़ा हो रहा असमंजस देखा जाएगा। ऐसा क्या है कि मुख्यमंत्री के प्रवास को तिलक लगाते विजय सिंह मनकोटिया फिर कांगड़ा के हलक में अंगूठा देते हुए ऐसी तरफदारी करते हैं, जो उनके ही अतीत को पढ़ लेता है। वीरभद्र के खिलाफ इसी तरह तथाकथित महारानी का किस्सा या फिर एक टेप को उछालकर वह इससे पहले भी अखाड़े तैयार करके विरोधी पक्ष का काम आसान करते देखे गए। इस बार उनके निशाने पर सरवीण चौधरी का सियासी अस्तित्व व सत्ता के पक्ष में योगदान गिना जाएगा।

 सियासत की परिभाषा में कभी मनकोटिया स्वयं में इतना प्रभाव रखते थे कि उनके आसपास मुख्यमंत्री पद का आभामंडल घूमता था, लेकिन उनके फलक पर न राजनीतिक समर्थन और न ही समर्पण स्थायी रह सका। इससे पहले परमार के दौर में स्व. पंडित सालिग राम और हाल ही में जीएस बाली के स्टाइल में राजनीतिक चुनौती का एहसास अगर वीरभद्र सिंह को कमजोर करता था, तो इन दोनों नेताओं ने अपनी-अपनी वजह से अवसर खो दिए। कुछ इसी तरह आग बबूला सियासत का जाम पीते डा. राजन सुशांत ने खुद को भाजपा से इतना दूर कर लिया कि आज तीसरे मोर्चे की बांसुरी बजा रहे हैं। बहरहाल कोरोना काल के बीच मुख्यमंत्री को क्यों कांगड़ा का भ्रमण करना पड़ा, इससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण विषय आज भी चस्पां हैं। कांगड़ा को छूने के लिए प्रवास की परंपरा या तपोवन में विधानसभा का शीतकालीन सत्र हमेशा शिमला सरकार की आत्मा का परिचय देता रहेगा। इस बार भी प्रवास के लक्षणों में क्या खोया-क्या पाया के सबूत हाजिर हैं। मंत्रिमंडल विस्तार और विभागों के आबंटन में लहूलुहान मंजर की सबसे बड़ी हिदायत सरवीण चौधरी को मिली, जबकि वर्तमान सरकार के ऐसे ही निर्देशों का सेंक किशन कपूर व विपिन सिंह परमार को लग चुका है। चौधरी कुछ अपनी वजह और कुछ बदली परिस्थितियों में कहां तक कसूरवार होंगी, यह राजनीति की पहेली न होकर मुंहबोली घटना होगी। सियासत को ऐसी घटना बहुत रास आती है और जहां सरकार के एक मंत्री पर आरोप चुने जा रहे हों, वहां विभागीय संपर्क और अधिकार क्षेत्र भी अपना असर बताएगा। देखना यह होगा कि अचानक राजस्व विभाग की घूमती फाइलें और मंत्रालय के दायित्व में महेंद्र सिंह कौन सी चांदमारी करते हैं। इसे यूं भी देख सकते हैं कि कांगड़ा के एक मंत्री के आसपास एक कठघरा तैयार हो रहा है, जबकि दूसरी ओर न्यायाधीश की कुर्सी पर दूसरा मंत्री अधिकार प्राप्त कर रहा है। सरवीण चौधरी से शहरी विकास छीना जाना इतनी अहमियत तो रखता ही है कि सांसद किशन कपूर अपनी महत्त्वाकांक्षा का नाता फिर से स्मार्ट सिटी को सौंप देते हैं। सरवीण चौधरी के दौर में कमांड कंट्रोल सेंटर की चाबी न केवल शिमला को सौंप दी गई थी, बल्कि सेटेलाइट टाउनशिप की फाइल भी सियासत की कब्रगाह में चली गई थी।

बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप के मोर्चे पर विपक्ष की भूमिका भी सवा सेर होना चाहती है, तो जीएस बाली ने भाजपा के छीके में दूसरी राजधानी मसले की बिल्ली बांध दी है। यह दीगर है कि मुख्यमंत्री का कोरोना काल प्रवास राजनीति के एक कक्ष में कई नेताओं को क्वारंटीन कर गया है, लेकिन सांसद किशन कपूर पर अब प्रदेश सरकार का कोई भी टेस्ट अचूक नहीं रहा। वह दुखती रगों पर हाथ रखते हुए एक साथ कई नेताओं की परेशानी बढ़ाते हुए पुनः कांगड़ा की आवाज बन रहे हैं। उनके पास कांगड़ा के मानचित्र संवारने के लिए पठानकोट-मंडी व धर्मशाला-शिमला के फोरलेन प्रोजेक्ट हो सकते हैं और केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना या कांगड़ा हवाई अड्डे के विस्तार पर वह वर्तमान सरकार को विचलित कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के समीप खड़े सांसद किशन कपूर के पास अब खोने को कुछ नहीं है, लेकिन कांगड़ा की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं का श्रीगणेश करवा कर वह बहुत कुछ पा सकते हैं या मौजूदा सत्ता में असंतुलित भू भाग पर उनकी कसौटियां फिर से काम आ सकती हैं। इस दृष्टि से वह राजन सुशांत या विजय सिंह मनकोटिया से अलग पार्टी के भीतर रहते हुए दोष मुक्त रहेंगे और अपनी ही सत्ता पर दबाव डाल पाएंगे।


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