नंदोत्सव : ब्रजमंडल का प्रमुख उत्सव
नंदोत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के दूसरे दिन समूचे ब्रजमंडल में मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। ब्रज क्षेत्र के गोकुल और नंदगांव में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव का विशेष आयोजन होता है। शास्त्रों के अनुसार कंस की नगरी मथुरा में अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद सभी सैनिकों को नींद आ जाती है और वसुदेव की बेडि़यां खुल जाती हैं। तब वसुदेव कृष्णलला को गोकुल में नंदराय के यहां छोड़ आते हैं।
नंदराय जी के घर लला का जन्म हुआ है, धीरे-धीरे यह बात पूरे गोकुल में फैल जाती है। अतः श्रीकृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में नंदोत्सव पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद मास की नवमी पर समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है। इस दिन सुप्रसिद्ध लठ्ठे के मेले का आयोजन किया जाता है। मथुरा जिले में वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव की धूम रहती है।
उत्सव
अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में होने के बाद उनके पिता वसुदेव कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी पार कर नंद बाबा के यहां गोकुल में छोड़ आए थे। इसीलिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में नंदोत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है।
दधिकांदो
यह उत्सव ‘दधिकांदो’ के रूप मनाया जाता है। दधिकांदो का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परंपरा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नंद बाबा और जसोदा के वेष में भगवान कृष्ण को पालने में झुलाते हैं। मिठाई, फल, मेवा व मिश्री लुटाई जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।
रंगनाथजी मंदिर
वृंदावन में विशाल उत्तर भारत के श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव की धूम रहती है। नंदोत्सव में सुप्रसिद्ध लठ्ठे के मेले का आयोजन किया जाता है। धार्मिक नगरी वृंदावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है। उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नंदोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है।
दक्षिण भारतीय शैली में बने प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नंदोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठे के मेले की एक झलक पाने को खड़े होकर देखते रहते हैं। जब भगवान ‘रंगनाथ’ रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दंडवत कर विजयश्री का आशीर्वाद लेते हैं और लठ्ठे पर चढ़ना प्रारंभ करते हैं। 35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं, उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-बाल लठ्ठे पर गिराते हैं जिससे पहलवान फिसलकर नीचे जमीन पर आ गिरते हैं।
इसको देखकर श्रद्धालुओं में रोमांच की अनुभूति होती है। भगवान का आशीर्वाद लेकर ग्वाल-बाल पहलवान पुनः एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते हैं और तेज पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे यत्न के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटे की मेहनत के बाद आखिर ग्वाल-बालों को भगवान के आशीर्वाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु श्रद्धा से अभिभूत हो जाते हैं।
ग्वाल-बाल खंभे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरूद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं। इसी प्रकार वृंदावन में ही नहीं, भारत के अन्य भागों में भी भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नंदोत्सव मनाया जाता है।
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