रूह को राहत देने वाला शायर रुखसत 

By: दिव्य हिमाचल ब्यूरो— नई दिल्ली Aug 12th, 2020 12:06 am

दिव्य हिमाचल ब्यूरो— नई दिल्ली

‘मैं अब ठीक नहीं हो पाऊंगा’, डाक्टरों से बार-बार यही कह रहे थे राहत इंदौरी। बेबाक अंदाज में अपनी बात रखने के लिए मशहूर शायर राहत इंदौरी का मंगलवार को निधन हो गया है। रूह को राहत देने वाला शायर राहत इंदौर सदा के लिए इस दुनिया से रूखसत हो गया। रविवार को तबीयत बिगड़ने के बाद वह इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे। उसके बाद उनका कोविड टेस्ट हुआ था। कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उन्हें अरबिंदो अस्पताल में शिफ्ट किया गया। अरबिंदो में भर्ती होने के बाद उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई। उन्हें शायद यह अहसास होने लगा था कि अब वह ठीक नहीं हो पाएंगे। मंगलवार शाम उन्होंने 70 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।

अरविंदो अस्पताल के डायरेक्टर विनोद भंडारी ने कहा कि वह लगातार अस्पताल में कह रहे थे कि मैं अब ठीक नहीं हो पाऊंगा। उसके बाद डाक्टरों की टीम उन्हें लगातार समझा रही थी। डा. राहत इंदौरी को पहले से ही कई बीमारी थीं। उन्हें किडनी में भी दिक्कत थी। इसके साथ ही हाइपर टेंशन, डायबिटिक, हर्ट और लंग्स में इंफेक्शन था। इसकी वजह से अस्पताल में भर्ती होने के बाद उन्हें हार्ट अटैक आया और उसके बाद स्थिति बिगड़ गई। जानकारी के अनुसार डा. डॉक्टर राहत इंदौरी को चार दिन पहले से बेचैनी हो रही थी। उसके बाद वह इलाज के लिए अस्पताल गए थे।

राहत इंदौरी की खासियत थी कि वह महफिल के हिसाब से ही शायरी पढ़ते थे। उन्होंने एक टीवी शो रोमांटिक शायरी को लेकर खुलासा किया था। राहत इंदौरी ने कहा था कि ‘आदमी बूढ़ा दिमाग से होता है, दिल से नहीं। ‘आसमां लाए हो, ले आओ, जमीं पर रख दो, क्या आपकी वाइफ भी पूछती हैं कैश लाए हो, तो कपबोर्ड पर रख दो।’ बेबाक अंदाज की वजह से वह हमेशा सत्ता पक्ष के लोगों को खटकते थे। बेखौफ होकर राहत इंदौरी अपनी बातों को रखते थे।

उन्हें कभी किसी से डर नहीं लगा। शायरी के जरिए सत्ता पक्ष के लोगों पर तीखा प्रहार करते थे। सीएए को लेकर प्रदर्शन के दौरान भी उनका एक शायरी काफी मशहूर हुआ था। ‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है, जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे, किराएदार हैं, जाती मकान थोड़ी है, सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।’

आखिरी पोस्ट

कोरोना वायरस संक्रमित होने की खबर के साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया पर यह लिखा था कि ‘शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम, कोरोना से कोई कह दे कि औकात में रहे।

अब ना मैं हूं, ना बाकी हैं जमाने मेरे

फिर भी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे

हम से पहले भी मुसाफिऱ कई गुजऱे होंगे

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

जनाज़े पर मिरे लिख देना यारो

मोहब्बत करने वाला जा रहा है

अपने दम पर पाया मुकाम

राहत इंदौरी का असली नाम राहत कुरैशी था, बाद में ये नाम पूरी दुनिया में राहत इंदौरी के नाम से जाना गया। राहत इंदौरी का जन्म पहली जनवरी, 1950 को इंदौर में रफतुल्लाह कुरैशी के घर हुआ। राहत एक कपड़ा मिल मजदूर के बेटे थे। पूरी दुनिया में उन्होंने अपना नाम अपने दम पर बनाया था।

उनकी मां मकबूल उन निसा बेगम घरों में काम करती थी। राहत अपनी मां के चौथे बच्चे थे। राहत इंदौरी ने अपनी स्कूली शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर से की, जहां से उन्होंने अपनी हायर सेकंडरी पूरी की। उन्होंने 1973 में इस्लामिया करीमिया कालेज, से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल (मध्य प्रदेश) से उर्दू साहित्य में एमए पास किया। राहत को भोज विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई।

इन फिल्मों के लिए लिखे गीत

राहत इंदौरी ने कई फिल्मों के लिए गीत लिखे। इनमें सबसे खास मुन्ना भाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, जानम, सर, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मिशन कश्मीर, करीब, बेगम जान, घातक, इश्क, आशियां और मैं तेरा आशिक, दरार, गली गली में चोर है, हमेशा, द जेंटजलमेन, पहला सितारा, जुर्म, हनन, इंतेहा, प्रेम अगन, हिमालयपुत्र, पैशन, दिल कितना नादान है, वैपन, बेकाबू, याराना, गुंडाराज, नाजायज, टक्कर, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी और तमन्ना, जैसी फिल्में शामिल हैं।


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