सैनिक और सरकार

By: Aug 1st, 2020 12:05 am

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

बरसात के मौसम में मैदानों में बाढ़, पहाड़ों में भूस्खलन, दिल्ली व मुंबई की सड़कों में और यूपी व बिहार के अस्पतालों में पानी भर रहा है। राजस्थान सरकार लंगड़ी व कमजोर दिख रही है तो हिमाचल सरकार चिरप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार और नए अध्यक्ष के साथ ज्यादा मजबूत लग रही है। राफेल की पहली खेप आने से सेना व देशवासी गदगद हैं तो कोरोना का आंकड़ा 16 लाख से ऊपर होना चिंताजनक है। इसमें कोई दो राय नहीं कि शास्त्री जी के जय जवान, जय किसान के आह्वान पर अगर कोई राज्य खरा उतरता है, तो वह है हिमाचल प्रदेश। हमारे प्रदेश में लगभग हर घर में एक किसान और एक जवान मिलता है। इसी बात को आधार बनाते हुए हिमाचल सरकार ने रक्षा मंत्रालय से पिछले कई दशकों से हिमालयन रजिमेंट बनाने का मुद्दा उठा रखा है, जिसमें हिमाचली युवा अपनी सेवाएं देंगे और सरकार इस रजिमेंट को शीघ्र ही शुरू करने का दावा अक्सर करती रहती है। पर सरकार द्वारा सेना के प्रति लिए जाने वाले पिछले फैसले इस सोच के विपरीत लग रहे हैं।

पिछले वर्ष शिमला स्थित ट्रेनिंग कमांड का शिमला से मथुरा के लिए शिफ्ट होने का मुद्दा और और अब 133 इकोलॉजिकल डोगरा बटालियन को बंद करने का फैसला सरकार के सैनिक हितैषी होने के दावे पर सवाल उठाता है। हिमाचल में 15 मार्च 2006 को 133 इकोलॉजिकल डोगरा बटालियन का गठन किया गया था,  जिसमें हिमाचल के भूतपूर्व सैनिकों को सात वर्ष के लिए इस बटालियन के द्वारा रोजगार दिया जाता है। इसका मुख्य काम वन विभाग से कुछ हेक्टेयर जमीन लेकर उसमें पौधारोपण करके पांच साल के बाद वापस करना है। बटालियन का हेड क्वार्टर कुफरी में तथा इसकी एक कंपनी मंडी के थली (तत्तापानी) जिसका काम सतलुज के बेसिन में तथा दूसरी कंपनी मंडी के जलोगी में जिसका काम व्यास के बेसिन में पौधारोपण करना है। दोनों कंपनियों के पास 12 नर्सरिया हैं जिनमें हर वर्ष 900000 पौधे उगाए जाते हैं जिन्हें बरसात के मौसम में रोपित किया जाता है। पिछले कुछ सालों में डोगरा बटालियन ने प्रदेश की सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर पौधे रोपित करके पर्यावरण बचाने की मुहिम में सरकार को देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा करने में अहम योगदान दिया है।

परंतु इस वर्ष  बटालियन द्वारा तैयार किए गए नौ लाख पौधे अभी बरसात के मौसम में खराब हो रहे हैं क्योंकि हिमाचल सरकार ने फंड की आपूर्ति न होने के कारण इस बटालियन को बंद करने का फैसला लिया है। 30 सितंबर को इस बटालियन में सेवाएं दे रहे ढाई सौ के करीब भूतपूर्व सैनिकों की सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी। इस फैसले से भूतपूर्व सैनिक इस बात को सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि एक तरफ  तो सरकार नई हिमालयन रेजिमेंट को खड़ा करने का दावा कर रही है और दूसरी तरफ  हिमाचली भूतपूर्व सैनिकों के लिए गठित की गई इस डोगरा बटालियन को बंद कर रही है जो समझ से परे है।


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