श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा

By: Aug 8th, 2020 12:22 am

मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर मुख्य तीर्थ स्थान माना जाता है। ये सदियों पुराना मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र यानी प्रद्युम्न के बेटे अनिरुद्ध के पुत्र ने करवाया था। मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में जन्माष्टमी मनाने के लिए देश और दुनिया से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं…

हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन 11 और 12 अगस्त को मनाई जा रही है। मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में जन्माष्टमी महोत्सव 12 अगस्त को मनाया जाएगा। मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर मुख्य तीर्थ स्थान माना जाता है। ये सदियों पुराना मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र यानी प्रद्युम्न के बेटे अनिरुद्ध के पुत्र ने करवाया था। मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में जन्माष्टमी मनाने के लिए देश और दुनिया से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। इस दिन मथुरा में दिवाली जैसा माहौल रहता है।

चार बार बनाया जा चुका है ये मंदिर- श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के अंदर जेल कक्ष नुमा गर्भगृह बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर कंस द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता देवकी और वासुदेव को कैद करके रखा गया था और यहीं भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। परिसर के अंदर एक छोटा तीर्थ मंदिर है, जो गहनों से सजे भगवान कृष्ण को समर्पित है। यहां से जेल कैदियों को पानी दिया जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थल पर मंदिर सर्वप्रथम कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ द्वारा बनावाया गया था। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। वर्तमान मंदिर में भगवान कृष्ण के जीवन से संबंधित दृश्यों के चित्र और भगवान कृष्ण व उनकी प्यारी राधा की मूर्तियां हैं।

पुष्प और रत्नों से सजाया जाता है गर्भगृह

जन्माष्टमी के अवसर पर जन्मभूमि परिसर में स्थित श्रीकेशवदेव मंदिर में विविध प्रकार के पुष्प, पत्र एवं वस्त्रों से निर्मित भव्य बंगले में ठाकुरजी विराजित किए जाते हैं। भगवान की प्राकट्य भूमि एवं कारागार के रूप में प्रसिद्ध गर्भगृह की सज्जा चित्ताकर्षक होती है। इस बार भी मंदिर के प्राचीन वास्तु के अनुरूप गर्भगृह के भीतरी भाग को सजाया जाएगा।

जन्म के बाद होता है महाअभिषेक

जन्म महाभिषेक का कार्यक्रम रात्रि लगभग 11ः00 बजे श्रीगणेश,नवग्रह आदि पूजन से शुरू होता है। रात्रि 12ः00 बजे भगवान के प्राकट्य के साथ भगवान के जन्म की महाआरती शुरू होती है, जो रात्रि लगभग 15 से 20 मिनट तक चलती है। ढोल एवं मृदंग अभिषेक स्थल पर तो बजते ही हैं साथ ही साथ संपूर्ण मंदिर परिसर में स्थान-स्थान पर भी इनका वादन होता है। तदोपरांत केसर आदि सुगंधित द्रव्यों से लिपटे हुए भगवान श्रीकृष्ण के चल विग्रह मोर्छलासन में विराजमान होकर अभिषेक स्थल पर आते हैं। ठाकुरजी के श्रीविग्रह का दूध, दही, घी, शहद और अन्य गंध द्रव्यों आदि सामग्रियों से दिव्य महाअभिषेक किया जाता है। जन्माभिषेक के बाद इस महाप्रसादी का वितरण जन्मभूमि के निकास द्वार के दोनों ओर वृहद मात्रा में किया जाता है।


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