50 फीसदी अंक-टेट जरूरी, राहत की मांग वाली याचिकाएं ठुकराईं

By: विधि संवाददाता — शिमला Sep 26th, 2020 12:08 am

जेबीटी से टीजीटी पदोन्नति पर नियमों में कोई छूट नहीं

जेबीटी से टीजीटी पदोन्नति पाने के लिए संबंधित जेबीटी अध्यापक का स्नातक परीक्षा में कम से कम 50 फीसदी अंक और टेट पास होना जरूरी। प्रदेश हाई कोर्ट ने जेबीटी अध्यापकों की वे याचिकाएं खारिज कर दीं, जिनके तहत स्नातक परीक्षा में 50 फीसदी अंकों की अनिवार्यता वाले नियम में छूट देने की गुहार लगाई थी। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने प्रार्थियों की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि यदि सरकार अपने क्षेत्राधिकार में रहते हुए बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उत्कृष्ट अध्यापक उपलब्ध करवाने हेतु कोई शर्त रखती है, तो उस शर्त को मनमानी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि पदोन्नति पाना कर्मचारी का निहित अधिकार नहीं है, बल्कि उसका अधिकार केवल पदोन्नति के लिए उस समय कंसीडर किए जाने का है, जब पदोन्नतियां की जा रही हों। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पदोन्नति नियम उस समय के लागू होते हैं, जिस समय विभागीय पदोन्नति समिति यानी डीपीसी द्वारा किसी प्रत्याशी की योग्यता देखी जानी हो।

 रिक्तियों के खाली होने के समय के नियम पदोन्नति के लिए लागू नहीं किए जाते। मामले के अनुसार शिक्षा विभाग ने 22 अक्तूबर 2009 को टीजीटी भर्ती के लिए नियम लागू किए, जिनके तहत पांच वर्ष की नियमित जेबीटी सेवाएं देने वाले अध्यापक को पात्र बनाया गया। योग्यता के तहत प्रत्याशी के पास बीएबीएड डिग्री होना जरूरी बनाया गया। जेबीटी अध्यापकों को पदोन्नति हेतु 15 फीसदी कोटा भी निर्धारित किया गया। 31 मई, 2012 को इन नियमों में परिवर्तन कर शर्त लगाई गई कि प्रत्याशी स्नातक में कम से कम 50 फीसदी अंकों से उत्तीर्ण व टेट पास होना चाहिए। प्रार्थियों का कहना था कि वे स्नातक तो हैं, परंतु 50 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण नहीं है। इसी कारण वे टेट पास भी नहीं है। प्रार्थियों का कहना था कि वर्ष 2012 से पहले उनके कोटे के तहत जो रिक्तियां उत्पन्न हुई थीं, उन्हें पुराने नियमों के तहत ही भरा जाना चाहिए। कोर्ट ने प्रार्थियों की दलीलों से असहमति जताते हुए उनकी याचिकाएं खारिज कर दी।

एसएमसी पर फैसला लागू करने को सरकार ने मांगा समय

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में एसएमसी मामले को लेकर शुक्रवार को प्रदेश सरकार के आवेदन पर सुनवाई हुई। सरकार ने हाई कोर्ट से फैसले पर अमल के लिए अतिरिक्त समय की मांग की है। सरकार का कहना है कि एसएमसी अध्यापक दुर्गम क्षेत्रों में कोरोना काल के दौरान भी निर्बाधित सेवाएं दे रहे हैं, इसलिए मौजूदा कोरोना संकट को देखते हुए इनकी सेवाएं फिलहाल जरूरी है।

 सुनवाई के दौरान इन नियुक्तियों को चुनौती देने वाले प्रार्थियों की ओर से बताया गया कि यह बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि वह भी हाई कोर्ट के फैसले को एसएलपी के माध्यम से चुनौती देने जा रही है। यहां हाई कोर्ट में फैसले पर अमल के लिए अतिरिक्त समय की मांग कर रही है। कोर्ट ने सरकार की इस विरोधाभासी स्थिति को देखते हुए सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या वास्तव में सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करने वाली है। इस कारण कोर्ट ने सरकार के आवेदन पर सुनवाई 29 सितंबर के लिए टाल दी।


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