अधिक मास में वर्जित हैं मांगलिक कार्य

By: Sep 12th, 2020 12:24 am

भारतीय पंचांग (खगोलीय गणना) के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। यह सौर और चंद्र मास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं और इसी आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित 12 माह होते हैं। हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है…

अधिक मास क्या है?

जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती हैं, वह क्षय मास कहलाता है। इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं। सौर वर्ष 365.2422 दिन का होता है जबकि चंद्र वर्ष 354.327 दिन का होता है। इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का फर्क आ जाता है और तीन वर्ष में यह अंतर एक माह का हो जाता है। इस असमानता को दूर करने के लिए अधिक मास एवं क्षय मास का नियम बनाया गया है।

अधिक मास क्यों व कब

यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 माह के बाद एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जाएं तो क्षय माह होता है। क्षय मास कभी-कभी होता है।

अधिक मास में क्या करें

इस माह में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने से पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और किए गए पुण्यों का फल कई गुणा प्राप्त होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मलमास में किए गए सभी शुभ कर्मों का अनंत गुना फल प्राप्त होता है। इस माह में भागवत कथा श्रवण की भी विशेष महत्ता है। पुरुषोत्तम मास में तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी महत्त्व है।

गणना का आधार

काल निर्धारण में वर्ष की गणना का मुख्य आधार सूर्य के चारों ओर पृथ्वी का भ्रमण है। इससे ऋतुएं बनती हैं। अतः सौर वर्ष का स्पष्टतः ऋतुओं के साथ संबंध है। एक वर्ष में प्रायः 365.256363 दिन होते हैं। सौर मान के अनुसार एक सौर संक्रांति से दूसरी सौर संक्रांति तक का समय एक सौर मास होता है, किंतु भारतीय पद्धति के अनुसार चंद्रमा से मास गणना को निर्धारित किया जाता है, जिसका मान एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक (अमांत मान के अनुसार) अथवा एक पूर्णमासी से दूसरी पूर्णमासी तक (पूर्णिमांत मान के अनुसार) होता है।

सावन के दिनों में चंद्रमान की अवधि लगभग 29.5306 दिन होती है। अतः बारह चंद्र मास वाले चंद्र वर्ष में प्रायः 354.3672 दिन होते हैं। इस प्रकार चंद्र वर्ष निरयण सौर वर्ष से लगभग 11 दिन कम होता है, किंतु वर्ष की गणना सौर वर्ष से ही की जाती है। भारतीय आचार्यों ने खगोलीय वैज्ञानिक विधि से चंद्र एवं सौर मानकों में सामंजस्य करने के लिए अधिमास या मलमास जोड़ने की विधि का विकास किया जिससे हमारे व्रत, पर्वोत्सव आदि का संबंध ऋतुओं और चंद्र तिथियों से ही बना रहा। इस पद्धति का प्रचलन वैदिक काल से ही प्राप्त होता है। वहां बारह मासों के साथ तेरहवें मास की कल्पना स्पष्टतया प्राप्त होती है। उस समय में भी सौर मास और चंद्र मास थे। वर्ष गणना का सहज साधन ऋतुओं का एक परिभ्रमणकाल और मास गणना का सहज साधन चंद्रमा के दो बार पूर्ण होने की अवधि है। यही चंद्र सौर प्रणाली विकसित रूप में हमारे यहां के परंपरागत पंचांगों में मिलती है।

पुरुषोत्तम मास कैसे हुआ

हमारे पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र एवं योग के अतिरिक्त सभी मास के कोई न कोई देवता या स्वामी हैं, परंतु मलमास या अधिक मास का कोई स्वामी नहीं होता। अतः इस माह में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, शुभ एवं पितृ कार्य वर्जित माने गए हैं।

पुराण में

अधिक मास स्वामी के न होने पर विष्णुलोक पहुंचे और भगवान श्रीहरि से अनुरोध किया कि सभी माह अपने स्वामियों के आधिपत्य में हैं और उनसे प्राप्त अधिकारों के कारण वे स्वतंत्र एवं निर्भय रहते हैं। एक मैं ही भाग्यहीन हूं जिसका कोई स्वामी नहीं है। अतः हे प्रभु, मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए। अधिक मास की प्रार्थना को सुनकर श्री हरि ने कहा, ‘हे मलमास, मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं, वे मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं और मेरा विख्यात नाम ‘पुरुषोत्तम’ मैं तुम्हें दे रहा हूं और तुम्हारा मैं ही स्वामी हूं।’ तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हो गया और भगवान श्री हरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्री हरि धाम को प्राप्त होते हैं।

पूजन विधि

पवित्र स्थान पर अक्षत से अष्ट दल बनाकर जल का कलश स्थापित करना चाहिए। भगवान राधा-कृष्ण की प्रतिमा रखकर पोडरा विधि से पूजन करें और कथा श्रवण की जाए। संध्या समय दीपदान करना चाहिए। माह के अंत में धातु के पात्र में 30 की संख्या में मिष्ठान्न रखकर दान किया जाए। पुरुषोत्तम मास में भक्त भांति-भांति का दान करके पुण्य फल प्राप्त करते हैं। मंदिरों में कथा-पुराण के आयोजन किए जाते हैं। दिवंगतों की शांति और कल्याण के लिए पूरे माह जल सेवा करने का संकल्प लिया जाता है। मिट्टी के कलश में जल भर कर दान किया जाता है। खरबूजा, आम, तरबूज सहित अन्य मौसमी फलों का दान करना चाहिए। माह में स्नान कर विधिपूर्वक पूजन-अर्चन तथा कथा श्रवण करना चाहिए।


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