साइबर जासूस है चीन

By: Sep 16th, 2020 12:06 am

चीन की जासूस कंपनियां सिर्फ  भारत का ही डाटा इकट्ठा नहीं कर रही हैं, बल्कि 10 से ज्यादा देशों में करीब 2.5 लाख लोगों की जासूसी की है। एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अकेली ज़ेन्हुआ डाटा कंपनी करीब 30 लाख वैश्विक हस्तियों पर निगरानी रखे हुए है। अमरीका में सबसे अधिक करीब 52,000 लोगों, ब्रिटेन में शाही परिवार समेत 40,000 से अधिक लोगों, ऑस्टे्रलिया के करीब 35,000 नागरिकों और संगठनों की जासूसी कर चीनी कंपनी ने एक पुख्ता डाटाबेस तैयार कर लिया है। चीन में ऐसा डाटा सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी को मुहैया कराना कंपनियों की बाध्यता है। सरकार में चीन की सेना भी शामिल है। चीन ने जासूसी के तरीके बदले हैं और फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्स एप सरीखे सोशल मीडिया के जरिए सूचनाएं, समाचार, विचार, आलेख, नीतिगत फैसलों और चीन के बारे में देश का औसत अभिमत आदि का डाटा इकट्ठा किया गया है। चीन के लिए ऐसी जासूसी भी सामरिक रणनीति से कमतर नहीं है। आजकल युद्ध सिर्फ मैदान पर ही सेनाओं के बीच नहीं लड़े जाते, बल्कि साइबर से अंतरिक्ष तक युद्ध के मैदान खुले हैं।

भारत में जासूसी के जरिए जिस तरह लक्षित डाटा जुटाया गया है, यकीनन यह रवैया चिंताजनक है। जिन्हें निशाना बनाकर उनके बारे में डाटा चुराया गया है, उससे कई महत्त्वपूर्ण सवाल पैदा होते हैं। मुद्दा राजनेताओं और संवैधानिक हस्तियों तक ही सीमित  नहीं है, सरपंच और पंच स्तर पर भी जासूसी की जाती रही है, उद्यम पूंजीवादियों और देश में सक्रिय विदेशी निवेशकों, आईआईटी के निदेशकों, विभिन्न स्वास्थ्य एवं भुगतान एप्स, तकनीकी स्टार्टअप से लेकर नई अर्थव्यवस्था के प्रत्येक प्रारूप पर चीन निगरानी रखे हुए है। यहां तक कि फूड, शॉपिंग, ई-कॉमर्स, यातायात और डिलीवरी चेन तक की जासूसी की जाती रही है। ऐसा लगता है मानो चीन भारत के कारोबार को तबाह करना चाहता है। क्रिकेट के ‘भगवान’ सचिन तेंदुलकर, प्रख्यात फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल सरीखों को भी छोड़ा नहीं गया है। अब सवाल है कि क्या भारत सरकार जागरूक और चौकस है कि उसके हजारों नागरिकों पर, परंपरागत तरीके के पार जाकर, निगरानी रखी जा रही है? सरकार ने अपने स्टाफ  और अन्य कम्प्यूटर, इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की ‘साइबर सुरक्षा’ के लिए क्या बंदोबस्त किए हैं? क्या हमारा साइबर कानून इतना छिद्रदार है कि कोई भी घुसकर जासूसी कर सकता है? क्या हमारा सिस्टम सुरक्षित नहीं है? क्या यह सुरक्षा संबंधी बड़ा जोखिम है? अंततः भारत सरकार इसका जवाब किस तरह देगी? कांग्रेस ने लोकसभा में तार्किक मांग की है कि विदेश मंत्रालय को दिल्ली में चीन के राजदूत को तलब करना चाहिए और अपना शुरुआती विरोध दर्ज कराना चाहिए।

हैरानी है कि चीनी कंपनियों ने पूर्वोत्तर के सातों राज्यों के प्रमुख 180 नेताओं के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भी जासूसी की है। बेशक इस तरह इकट्ठा किए गए डाटा का दुरुपयोग किया जा सकता है और चीन दुष्प्रचार का खेल नए सिरे से शुरू कर सकता है। प्रौद्योगिकी की भाषा में जिसे ‘संकर युद्ध’ करार दिया जाता रहा है, उसके तहत चीन हमारी आर्थिक गतिविधियों को गड़बड़ा सकता है, सामाजिक अशांति फैला सकता है, संस्थानों को कमजोर या नष्ट किया जा सकता है और हमारे राजनीतिक नेतृत्व को बदनाम कर सकता है, लिहाजा इस साइबर हमले और और संभावित दुष्प्रचार अभियान को रोकने के लिए भारत सरकार को तुरंत कदम उठाने पड़ेंगे। चीन की जासूस हरकतों के मद्देनजर भारतीय सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। यह भी आकलन किया जा रहा है कि कितना व्यापक डाटा चुराया जा चुका है और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कितना घातक साबित हो सकता है? भारत अपने स्तर पर तो कार्रवाई करेगा ही, लेकिन इस विषय को दुनिया के बहुविध मंचों पर भी साझा किया जाना चाहिए, क्योंकि चीन कई देशों में जासूसी का खतरनाक अभियान छेड़े हुए है। सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी और आमतौर पर संचार से जुड़ी चीनी कंपनियों या चीनी भागीदारी की कंपनियों पर पाबंदी थोप देनी चाहिए। समीक्षा बाद में होती रहेगी। अब देशहित में लगता है कि 200 चीनी एप्स को बंद करना अथवा 4 जी या 5 जी के कार्यों में चीन की भागीदारी को खत्म करना कितना जरूरी था? क्योंकि ये मामले राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधा जुड़े हैं।


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