सुरंग से आगे नई राह

By: Sep 26th, 2020 10:06 am

रोहतांग टनल का उद्घाटन इस दौर की उपलब्धि से कहीं ज्यादा पर्वतीय पृष्ठभूमि के परिवर्तन का अनूठा अंदाज भी है। जश्न के दूसरी तरफ पर्यटन के आकाश को चूमने की तड़प से लाहुल-स्पीति क्षेत्र का शृंगार और इससे भी बड़ी ब्रांडिंग और क्या हो सकती है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके साक्षी बन रहे हैं। उत्साह के जिस छोर पर नया सवेरा हो रहा है, वहां लाहुल की नई तकदीर लिखी जाएगी। मात्र दो घंटे में मनाली से रोहतांग का सफर, प्रगति की गति के मायने चुनेगा तो ट्राइबल टूरिज्म की नई संस्कृति भी पसर जाएगी। ऐेसे में यह बदलाव कुछ हिदायतों के साथ पर्यटन का प्रोत्साहन करेगा। लाहुल-स्पीति की घाटियों में पर्यटन अगर भीड़ बन गया, तो एक दिन रोहतांग सुरंग भी थक जाएगी। ऐसे में मनाली के विकल्प अगर लाहुल में तराशने हैं, तो वहां के अनुभव में कबाइली महक का बरकरार रखना अनिवार्य होना चाहिए। कुछ  दशक पहले तक मनाली ने अपने भीतर के पर्यटन को पहचानना शुरू किया, लेकिन इसकी मंजिल तय नहीं हो सकी। नतीजतन पर्यटन के फैलते अंदाज ने ऐसी खरौंचे पैदा कर दीं, जो वक्त के दामन में धब्बों की तरह हैं।

 बेशक पर्यटक बढ़े और व्यापार भी, लेकिन मनाली खुद पर पश्चाताप करती होगी। अगर कल इसी तरह पर्यटन की पैमाइश ने सारा लाहुल-स्पीति आ गया या पर्यटन के मायनों में होटलों की कतारें जीत गईं, तो नई चांदनी की चादर के नीचे परिवेश की मिट्टी का क्या होगा। हिमाचल के परिदृश्य में रोहतांग सुरंग का वास्तविक अलंकरण आर्थिकी के बदलते स्वरूप से होगा और इस तरह लाहुल-स्पीति की नकदी फसलों को संबल मिलेगा, लेकिन परिवहन की रफ्तार के साथ नजरिया भी बदलेगा। मानवीय व्यवहार की कसौटियां विकास के साथ बदली हैं और इसके कई उदाहरण हिमाचल की दुरुहता का उत्तर दे रहे हैं। दुनिया कितना नजदीक आती है या लाहुल इस सुरंग के माध्यम से दुनिया के कितना करीब होता है,यह रोचक उपलब्धि उद्घाटन समारोह का रोमांच बढ़ा रही है। यह लाहुल घाटी को तय करना है कि उसे घटती दूरी का इस्तेमाल केवल सुविधा मानकर करना है या कबाइली जिम्मेदारी में विकास का संरक्षण भी करना है। हमारा मानना है कि लाहुल की जड़ों में रची बसी सभ्यता को अगर सुरंग के जरिए संबल मिलता है, तो यह हिमाचल का अति विशिष्ट पर्यटन केंद्र होगा। किसी भी सूरत में रोहतांग का नया पर्यटन मनाली का प्रतिरूप नहीं होना चाहिए।

 कबाइली पर्यटन की सामुदायिक जिम्मेदारी व जवाबदेही तय करते हुए ऐसी अधोसंरचना का निर्माण अति आवश्यक है, जो प्रकृति व संस्कृति के अनुरूप हो। कम से कम सांगला घाटी की तरह लाहुल का पर्यटन विकास नहीं होना चाहिए। यहां एग्रो पर्यटन की तहजीब में कृषि व बागबानी का संरक्षण चाहिए, तो सांस्कृतिक धरा पर जीवन शैली व मूल्यों की हिफाजत भी चाहिए। हिमाचल को सालों के इंतजार के बाद आर्थिकी का नया द्वार मिला है। यह भविष्य के मॉडल की तरह हिमाचल के अति दुर्गम इलाकों को राह दिखा सकता है और सुरंग पर्यटन की नई परिभाषा में नए सपने उगा सकता है। वाजपेयी के इस सपने को पूरा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे की राह कैसे खोलते हैं, इसका इंतजार भी रहेगा। कम से कम ऐसी आधा दर्जन सुरंग परियोजनाएं केंद्रीय मदद की  बाट जोह रही हैं।


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