राजगीर मलमास मेला

By: Sep 26th, 2020 12:23 am

एक प्रचलित मान्यता है कि मलमास मेले के दौरान हिंदू धर्म के समस्त 33 कोटि देवी-देवता धरती पर इसी स्थान पर निवास करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें पूरी दुनिया में केवल यही एक ऐसी जगह है, जहां मलमास का मेला लगता है। मगर इतने वर्षों में शायद ये पहला मौका होगा जब ये भव्य आयोजन यहां नहीं होगा। न ही प्रत्येक साल की तरह यहां रौनक और चहल-पहल देखने को मिलेगी…

कोरोना के चलते इस बार कई बडे़ उत्सवों और त्योहारों के रंग फीके पड़ गए। बिहार के राजगीर में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध मलमास मेला भी इस बार कोरोना वायरस के चलते सूना नजर आ रहा है।  हर चार साल में एक बार मलमास के मौके पर लगने वाला यह मेला इस बार 18 सितंबर को शुरू हो चुका है। पुरुषोत्तम मास के शुभारंभ के साथ वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच इस मेले की शुरुआत हुई है। लेकिन कोरोना के चलते कुछ संसाधनों और बाध्यताओं के कारण इस मेले का रंग फीका नजर आ रहा है। आइए जानते हैं मेले से जुड़ी कुछ मान्यताएं और खास बातें।

धार्मिक दृष्टि से देखें तो इस मेले का अधिक महत्त्व है। बताया जाता है जिस तरह से अर्ध कुंभ की शास्त्रों में विशेषता बताई गई है। ठीक उसी प्रकार नालंदा जिला का राजगीर में लगने वाला ये मेला अपने पर्यटन के लिए केवल बिहार में ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है। कहा जाता है कि प्रत्येक वर्ष यहां लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। राजगीर पर्यटकों के लिए रमणीय स्थल तो है ही साथ ही इसकी अपनी धार्मिक महत्ता भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

दरअसल एक प्रचलित मान्यता है कि मलमास मेले के दौरान हिंदू धर्म के समस्त 33 कोटि देवी-देवता धरती पर इसी स्थान पर निवास करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें पूरी दुनिया में केवल यही एक ऐसी जगह है, जहां मलमास का मेला लगता है। मगर इतने वर्षों में शायद ये पहला मौका होगा जब ये भव्य आयोजन यहां नहीं होगा। न ही प्रत्येक साल की तरह यहां रौनक और चहल-पहल देखने को मिलेगी। इस मेले की एक और खास बात यह है कि यहां एक महीने तक राजगीर के आसमान में कौए नजर नहीं आते हैं।

इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। इसमें बताया गया है कि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा वसु ने राजगीर के ब्रह्मकुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में राजा वसु ने सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया था और वे सभी यहां पधारे भी थे, लेकिन काले काग (कौआ) को निमंत्रण देना राजा वसु भूल गए। उसके बाद से मलमास मेले के दौरान राजगीर के आसपास काग महाराज कहीं दिखाई नहीं देते। ब्रह्माजी ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था। यहां भगवान विष्णु जी की शालिग्राम के रूप में पूजा की जाती है। मेले के पहले दिन यहां हर साल संत गर्म कुंड में डुबकी लगाते थे और भगवान विष्णु जी की पूजा करते थे। मगर इस साल कोरोना के चलते ऐसा कुछ नहीं हो पाया है। यहां स्नान को लेकर ऐसी मान्यता है कि अधिकमास के दौरान यहां जो भी स्नान करता और भगवान विष्णु जी की पूजा करता है, उसके सभी पाप कट जाते हैं और सीधा स्वर्ग को जाता है। यहां हिंदू, जैन और बौद्ध तीनों धर्म के धार्मिक स्थल हैं। खास कर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है। बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे, बल्कि कई महत्त्वपूर्ण उपदेश भी यहां की धरती पर दिए थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया था और पहली बौद्ध संगति भी यहां हुई थी।


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