सर्वपितृ अमावस्या: पितृपक्ष के लिए उत्तम तिथि

By: Sep 12th, 2020 12:23 am

सर्वपितृ अमावस्या आश्विन माह की अमावस्या को कहा जाता है। आश्विन माह का कृष्ण पक्ष वह विशिष्ट काल है जिसमें पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध आदि किए जाते हैं। यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की तिथि होती है, किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृपक्ष के लिए उत्तम मानी गई है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या या पितृविसर्जनी अमावस्या या महालय समापन या महालय विसर्जन आदि नामों से जाना जाता है। यूं तो शास्त्रोक्त विधि से किया हुआ श्राद्ध सदैव कल्याणकारी होता है, परंतु जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर सकें, उन्हें कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए।

पितरों का काल

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितरों का काल आरंभ हो जाता है। यह सर्वपितृ अमावस्या तक रहता है। जो व्यक्ति पितृपक्ष के पंद्रह दिनों तक श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं और जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सबके श्राद्ध, तर्पण इत्यादि इसी अमावस्या को किए जाते हैं। इसलिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितर अपने पिंडदान एवं श्राद्ध आदि की आशा से विशेष रूप से आते हैं। यदि उन्हें वहां पिंडदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं, जिससे आगे चलकर पितृदोष लगता है और इस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

पितर विदा करने की अंतिम तिथि

सर्वपितृ अमावस्या पितरों को विदा करने की अंतिम तिथि होती है। 15 दिन तक पितृ घर में विराजते हैं और हम उनकी सेवा करते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी भूले-बिसरे पितरों का श्राद्ध कर उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है। सर्वपितृ अमावस्या के साथ ही 15 दिन का श्राद्ध पक्ष खत्म हो जाता है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की समाप्ति के बाद अगले दिन से नवरात्र प्रारंभ होते हैं। सर्वपितृ अमावस्या पर हम अपने उन सभी प्रियजनों का श्राद्घ कर सकते हैं जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान हमें नहीं है। वे लोग जो किसी दुर्घटना आदि में मृत्यु को प्राप्त होते हैं या ऐसे लोग जो हमारे प्रिय होते हैं किंतु उनकी मृत्यु तिथि हमें ज्ञात नहीं होती, तो ऐसे लोगों का भी श्राद्ध इस अमावस्या पर किया जाता है।

महालय श्राद्ध

इस अमावस्या पर महालय श्राद्ध भी किया जाता है। ‘महा’ से अर्थ होता है ‘उत्सव दिन’ और ‘आलय’ से अर्थ है ‘घर’, अर्थात कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है। इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं जो महालय भी कहलाता है। यदि कोई परिवार पितृदोष से कलह तथा दरिद्रता से गुजर रहा हो और पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध-तर्पणादि करना चाहिए जिससे पितृगण विशेष प्रसन्न होते हैं और यदि पितृदोष हो तो उसके प्रभाव में भी कमी आती है।


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